Independence Special: कोठी हयात बख्श यूं बनी राजभवन, जानें क्यों नहीं रह पाए नवाब, अंग्रेजों ने बनाया आशियाना

Sanjay Singh

<a href="https://www.prabhatkhabar.com/topic/lucknow-news">लखनऊ</a> का राजभवन इन्हीं में से एक है. सैकड़ों वर्ष पुरानी इस ऐतिहासिक इमारत का नाम कोठी हयात बख्श था. इसकी रूपरेखा जनरल क्लाड मार्टिन ने बनायी थी जो अवध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. क्लाड मार्टिन का जन्म फ्रांस के लिओंस नामक शहर में 4 जनवरी, 1735 को हुआ था. वे 1785 में काउंट डिलेली के अंगरक्षक बन कर हिन्दुस्तान आये थे और कुछ अर्से तक भारत के दक्षिण व पूर्वी भाग में रहे, उसके बाद लखनऊ आये.

Raj Bhavan | Social Media

लखनऊ स्थित सैकड़ों वर्ष पुरानी ऐतिहासिक कोठी हयात बख्श कभी अंग्रेजों की गतिविधियों का केंद्र थी, आज लोग इसे राजभवन के नाम से जानते हैं.

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हयात बख्श की रूपरेखा जनरल क्लाड मार्टिन ने बनायी थी जो अवध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं

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सन् 1798 में नवाब सआदत अली खां को ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने लखनऊ के तख्त पर बिठा दिया. नये नवाब को मार्टिन की बनवाई हुई सुन्दर इमारतें बहुत पसन्द आईं.

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1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्रम में लखनऊ के रेजिडेन्ट हेनरी लारेंन्स की बहुत अहम भूमिका रही है. उनका भी इस कोठी में आना जाना था.

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कोठी हयात बख्श एक हवादार आलीशान इमारत है जिसके चारों ओर ऊंची छत वाले शानदार बरामदे हैं. कोठी के अन्दर का राजदरबार ही भारतीय स्थापत्य और कला शिल्प में बना हुआ है.

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हयात बख्श का अर्थ ही 'जीवन दायिनी' जगह है. इस तरह की इमारतें यहां कोठियां कहलायीं, जो कि यहां की परंपरागत भवन शैली से बिल्कुल अलग हुआ करती थीं.

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स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से ही कोठी हयात बख्श को यूनाइटेड प्रोविन्सेज आगरा एंड अवध के गवर्नर का सरकारी आवास बना दिया गया था

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स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले इसमें ब्रिटिश गवर्नर और आजादी के बाद यहां भारतीय राज्यपाल रहने लगे. स्वाधीन भारत में इस भवन को राजभवन का नाम दिया गया.

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उत्तर प्रदेश की प्रथम राज्यपाल सरोजनी नायडू का निधन इसी राजभवन में अप्रैल 1948 में हृदयाघात से हो गया था. पंडित नेहरू उनकी बेटी पदमजा नायडू को सांत्वना देने यहीं आए थे.

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