सूर्य उपासना करने से हम अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्तर बेहतर बनाये रख सकते हैं. इसके अलावा शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं.
छठ पर्व के वैज्ञानिक पहलू | Prabhat Khabar
षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं. उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में रहा है.
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मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से कई तरह के रोग होने का खतरा बना रहता है. ऐसे में सुबह के समय सूर्यदेव को अर्ध्य देने से शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से रंग संतुलन बना रहता है.
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सूर्य के प्रकाश और इस पर रंगों के प्रभाव के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधात्मकता क्षमता बढ़ जाती है. साथ ही सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी भी शरीर को मिलता है.
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छठ पूजा की विधि द्वारा ही वे भोजन-पानी से अप्रत्यक्ष तौर पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बजाय सूर्य के संपर्क से सीधे ऊर्जा प्राप्त कर लेते थे.
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इस मौसम में सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है. व्रत करने के दौरान सूर्य की किरणों से मिलने वाली ऊर्जा का शरीर में संचय होता है, ताकि हम सर्दी में स्वस्थ रहें.
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अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान सूर्य की रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है.
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