17 दिसंबर, 1928 को पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी.
पूरा देश कर रहा है शहीद-ए-आजम को शत् शत् नमन | Twitter
8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में धमाके कर अगर शहीद भगत सिंह चाहते तो भाग सकते थे. लेकिन उन्होंने जानबूझकर अपनी गिरफ्तारी दी.
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भगत सिंह को अंग्रेजों ने महज 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिया था. लाहौर के सेंट्रल जेल में भारत मां सच्चे लाल ने आखिरी सांस ली.
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सेशन कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई में भगत सिंह ने माना था कि उन्होंने बम फेंका है, क्योंकि इंग्लैंड को जगाने के लिए बम फेंकना जरूरी था.
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7 अक्टूबर, 1930 को सांडर्स की हत्या का दोषी पाते हुए कोर्ट ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई.
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भगत सिंह का मकसद देश और दुनिया को संदेश देना था, जिसमें वो पूरी तरह से सफल भी रहे थे.
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तय तारीख से एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दे दी गई.
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यंग इंडिया में महात्मा गांधी ने लिखा था कि वायसराय ने उनसे कहा कि फांसी खत्म करना तो मुश्किल है, लेकिन उसे अभी के लिए टाला जा सकता है.
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हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली. ये मुश्त-ए-खाक है फानी, रहे-रहे न रहे. अपनी जेल डायरी में भगत सिंह ने यह लिखा था.
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देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज 114वीं जयंती है. आज पूरा भारत देश के इस सच्चे सपूत को कर रहा है शत शत नमन.
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