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खुले में शौच : जरूरी है कि आदत भी बदले

‘पहले शौचालय तब देवालय-परस्पर प्रतिस्पर्धी खेमों के दो राजनेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कम से कम एक बात पर सहमत हैं. और इसी सोच के अनुकूल दोनों ने अपने तई युद्धस्तर पर शौचालय के निर्माण के लिए निवेश की योजना बनायी. लेकिन, प्रोफेसर डीन स्पीयर्स के नेतृत्व में नामचीन […]

‘पहले शौचालय तब देवालय-परस्पर प्रतिस्पर्धी खेमों के दो राजनेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कम से कम एक बात पर सहमत हैं. और इसी सोच के अनुकूल दोनों ने अपने तई युद्धस्तर पर शौचालय के निर्माण के लिए निवेश की योजना बनायी.

लेकिन, प्रोफेसर डीन स्पीयर्स के नेतृत्व में नामचीन अर्थशास्त्रियों के एक समूह द्वारा प्रस्तुत अध्ययन का निष्कर्ष है कि नये शौचालयों का निर्माण भले जरूरी हो परंतु जहां तक शौचालयों के इस्तेमाल का सवाल है, इस मामले में संस्कृतिगत सोच कहीं ज्यादा असर रखती है.

अध्ययन में बताया गया है कि खुले में शौच का मामला जितना शौचालयों के निर्माण से जुड़ा है उतना ही मन के माने यानी आदत से भी.

मिसाल के लिए इन तथ्यों पर गौर करें : साल 2011 की जनगणना के अनुसार शौचालय विहीन 89 प्रतिशत भारतीय परिवार ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और अगर ऐसे प्रत्येक परिवार के लिए शौचालय बनवा भी दिया जाय, जैसा कि हाल के दिनों में बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में देखने में आया है, तो भी इन परिवारों के ज्यादातर लोग खुले में शौच करना पसंद करेंगे. वजह है, शौचालय निर्माण की सरकारी योजना में लोगों की शौच विषयक आदत और सोच को बदलने के बारे में बरती गयी अनदेखी. यह तथ्य एक शोध अध्ययन में सामने आया है. शोध अध्ययन का शीर्षक है रिविल्ड प्रीफेरेंस ऑर ओपन डिफेक्शन : एवीडेंस फ्रॉम अ न्यू सर्वे इन रूरल इंडिया. यह अध्ययन बिहार, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश के कुल 22,787 परिवारों के सर्वेक्षण पर आधारित है.इस शोध अध्ययन का एक निष्कर्ष यह है कि शौचालय की सुविधा से संपन्न 40 प्रतिशत से ज्यादा परिवार ऐसे हैं, जहां घर का एक ना एक सदस्य खुले में शौच करता है. खुले में शौच करने वाले तकरीबन 47 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे अपनी सुविधा और आराम के ख्याल से ऐसा करते हैं. बहरहाल, खुले में शौच को आराम और सुविधा की बात मानने वाले लोगों में शौचालय के इस्तेमाल से होने वाले फायदे की जानकारी बहुत कम है.अध्ययन के अनुसार खुले में शौच करने के अभ्यस्त तकरीबन 51 प्रतिशत लोगों का कहना है कि बच्चे के स्वास्थ्य के लिहाज से खुले में शौच करना उतना ही फायदेमंद है जितना कि इस काम के लिए शौचालय का इस्तेमाल करना. अध्ययन से पता चलता है कि शौचालय के इस्तेमाल से संबंधित आदत और सोच को बदलना खुले में शौच की प्रवृति को रोकने के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. यदि भारत साल 2019 तक खुले में शौच की परिघटना को समाप्त करना चाहे तो ग्रामीण इलाकों में शौचालय के निर्माण के साथ-साथ उसके उपयोग को बढ़ावा देना बहुत जरूरी होगा.

(आइएम फॉर चेंज डॉट ओआरजी

वेबसाइट से साभार.)

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