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मानव तस्करी रोकने बनाया

सखी सहेली क्लबनामकुम प्रखंड की 53 लड़कियों के गायब होने पर की पहल लता रानीझारखंड के गांवों की लड़कियां सखी सहेली क्लब से जुड़ कर मानव तस्करी के खिलाफ महिलाओं को जागरूक कर रही हैं. यह पहल महिला व लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए की गयी. दरअसल आशा नामक संस्था के सर्वे में पता […]

सखी सहेली क्लब
नामकुम प्रखंड की 53 लड़कियों के गायब होने पर की पहल

लता रानी
झारखंड के गांवों की लड़कियां सखी सहेली क्लब से जुड़ कर मानव तस्करी के खिलाफ महिलाओं को जागरूक कर रही हैं. यह पहल महिला व लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए की गयी. दरअसल आशा नामक संस्था के सर्वे में पता चला कि रांची जिले के नामकुम प्रखंड की चार पंचायतों की 53 लड़कियां गायब हैं. सर्वे में यह पता चला कि गांव की लड़कियां किसी बहकावे में ही गांव से बाहर जाती हैं. ऐसे में इस स्थिति को रोकने के लिए सखी सहेली क्लब की स्थापना की गयी है. इस क्लब से 400 लड़कियां अब तक जुड़ चुकी हैं. यह क्लब नामकुम प्रखंड में जागरूकता फैला रहा है. प्रखंड के नया भूंसूर, कोचबांग, सदर बगान, लाल खटंगा, ठुंगरी, हुड़वा, भागोबांध, चंदाघासी, खिजरी, टोनको में इनका सुरक्षा अभियान चल रहा है.

आने-जानेवालों पर नजर
हर गांव में क्लब की दो सदस्य आनेवाली बाहरी लोगों पर नजर रखती हैं. वैसी लड़कियों का ख्याल रखती हैं, जिसे पलायन या ट्रैफिकिंग के लिए उकसाया जाता है. यदि कोई किसी को ले जाने की बात करता है, तो क्लब उस व्यक्ति का सही नाम, पता व पूरी जानकारी लेकर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है. घरवालों एवं पंचायत के आदेश के बाद ही कोई किसी को ले जाने की अनुमति पाता है.

क्षमता विकास का प्रशिक्षण
क्लब सदस्यों सेंट्रल फॉर वर्ल्ड सोलिटरी के सहयोग से क्षमतावर्धन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. उनको स्वास्थ्य, शिक्षा, लिंगभेद पर कानून की जानकारी दी जाती है. लड़कियां प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने-अपने गांवों में लोगों को उनके अधिकार व हक की जानकारी देती हैं.

नियमित बैठक
प्रत्येक सप्ताह आशा क्लब की सदस्यों की नियमित बैठक होती है. इसमें युवतियां अपने-अपने गांव की समस्या के बारे में चर्चा करती हैं. शिक्षा, शादी व पलायन के बारे में एक-दूसरे को बताती हैं. यदि घर या बाहर वालों को लेकर किसी को समस्या होती है तो उसका समाधान ढूंढा जाता है. क्लब की सदस्यों को गांव के लोगों को जागरूक करने के लिए छह गानों की सीडी दी गयी है. अबतक ऐसी 400 सीडी वितरित की जा चुकी है.

महिलाओं के लिए शेल्टर होम नहीं
राजधानी रांची में महिलाओं के लिए शेल्टर होम नहीं है. इसका सीधा असर दूर दराज के इलाकों और अन्य शहरों से सब्जी बेचने के लिए रांची आनेवाली महिलाओं को होता है. उन्हें रात में ठहरने के लिए जगह नहीं मिलती है. ऐसे में वे स्टेशन पर रात गुजारती हैं.

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