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कोई बीमारी नहीं है मेनोपॉज, इसके बाद भी संभव है गर्भधारण

-भावना शेखर- (लेखिका व वरिष्ठ शिक्षिका नोट्रेडम एकेडमी) परिवर्तन चाहे जिंदगी में हो या फिर शरीर में, यह हमारे जीवन के विकास का अहम हिस्सा है. कुछ परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं. उन्हें हम बदल नहीं सकते. मेनोपॉज भी स्त्रियों के शारीरिक विकास से जुड़ा ऐसा ही एक प्रमुख प्राकृतिक बदलाव है. इसकी पृष्ठभूमि साल-दो साल […]

-भावना शेखर-

(लेखिका व वरिष्ठ शिक्षिका नोट्रेडम एकेडमी)

परिवर्तन चाहे जिंदगी में हो या फिर शरीर में, यह हमारे जीवन के विकास का अहम हिस्सा है. कुछ परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं. उन्हें हम बदल नहीं सकते. मेनोपॉज भी स्त्रियों के शारीरिक विकास से जुड़ा ऐसा ही एक प्रमुख प्राकृतिक बदलाव है.
इसकी पृष्ठभूमि साल-दो साल पहले से ही बननी शुरू हो जाती है, लेकिन जानकारी के अभाव में कई महिलाएं इस दौरान खुद को बीमार, लाचार और अयोग्य समझने लगती हैं. अगर वे खुद को पहले से ही इसके लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर लें, तो इस बदलाव के साथ वे न केवल बेहतर तरीके से सामंजस्य स्थापित कर सकती हैं, बल्कि इसके प्रभावों को भी काफी हद तक नियंत्रित कर सकती हैं.
आठवीं की छात्रा मिनी क्लास में अकेले बैठी थी़. सारी लड़कियां खेलने के लिए मैदान में गयी थीं. तभी कॉरीडोर से गुजरती टीचर ठिठकी -‘मिनी ! क्या बात है बेटा?’
‘ मिस, पीरियड्स की वजह से पेट में दर्द हो रहा है. आखिर क्यों होता है यह हर महीने!’ रुआंसी मिनी के सर पर हाथ फेरते हुए टीचर ने कहा- ‘बेटा, यह कुदरत का वरदान है. यह न हो, तो एक स्त्री का स्त्रीत्व अधूरा माना जाता है.’सच ही कहा था टीचर ने़. 12-13 साल की बच्ची का रजस्वला होना किसी भी माता-पिता के लिए इत्मीनान की बात होती है. यह उसकी सृजन क्षमता की पुष्टि जो करता है.
यह न हो तो मासूम किशोरियों को कई तरह की चिकित्सकीय समस्याओं से गुजरना पड़ता है. फिर 45-50 वर्ष बाद एक ऐसी अवस्था आती है, जब जीवन भर के इस झंझट से मुक्ति मिल जाती है. इस अवस्था को रजोनिवृति या मेनोपॉज (menopause) कहते हैं. आमतौर से हर औरत को इससे गुजरना पड़ता है, इसलिए उन्हें इस वक्त को खुशी से एन्जॉय करना चाहिए. मिनी तो एक मासूम बच्ची हैं, लेकिन वे तो परिपक्व और समझदार हैं. फिर भी अफसोस इस बात है कि अधिकांश महिलाएं इस अवस्था को अपने जीवन की त्रासदपूर्ण स्थिति के तौर पर देखती हैं.
इसकी एक बड़ी वजह शायद यह है कि इस कुदरती प्रक्रिया की विदाई कोई एक-दो दिनों में नहीं होती. अमूमन इसमें चार-पांच साल का लंबा समय लग जाता है. कुछ महिलाओं के लिए यह शारीरिक कारणों से पीड़ादायक भी होता है, तो कईयों के लिए यह मानसिक तौर से दुखदायी होता है.
अनिश्चित और अतिरिक्त स्राव के चलते कुछ महिलाओं को समय से पहले सर्जरी करवा कर अपना गर्भाशय निकलवाना पड़ जाता है. ऐसे में बेहतर यही है कि हर महिला अपनी रजोनिवृत्ति से पूर्व उसकी मानसिक तैयारी कर ले और इसके लिये सबसे जरूरी है कि वे इसके लक्षणों, इस दौरान होनेवाले शारीरिक और मानसिक बदलावों और इससे उबरने के उपायों के बारे में पर्याप्त एवं पूर्व जानकारी रखें.
जीवन की संधिबेला में खड़ी स्त्री समझदार और जागरूक होती है. उसे पता होना चाहिए कि 40-45 वर्ष पार होते-होते उसे इस स्थिति से गुजरना ही होगा. अब उसके पीरियड्स कभी भी अनियमित हो सकते हैं.
स्राव कम या ज्यादा हो सकता है. मेनोपॉज में सिरदर्द, कमर दर्द, थकान आदि होना आम बात है. सबसे बड़ी परेशानी हॉट फ्लेशेज का आना है, जिसकी वजह से अचानक शरीर में अत्यधिक गरमी या उबाल-सा महसूस होता है. हॉर्मोनल परिवर्तन के कारण मानसिक और सांवेगिक स्थितियों में भी बदलाव होता है. शारीरिक समस्याओं के लिए तो डॉक्टर और दवाइयां हैं, पर मानसिक उलझनों के मकड़जाल से खुद उबरना होगा.
मेनोपॉज से गुजरती स्त्री के मन में सबसे बड़ा अंतर्द्वंद इस बात को लेकर होता है कि वह खुद को अधूरा महसूस करती है. उसे लगता है अब उसकी प्रजनन योग्यता खत्म हो जायेगी. पेशाब जल्दी-जल्दी आने लगा है, योनि सूखने लगा है.
उसे लगने लगता है कि अब मेरी बेड रूम लाइफ शिथिल हो जायेगी. मैं किसी लायक नहीं रही. पति मुझमें रुचि नहीं लेगें, ब्ला-ब्ला… वह खुद को असुरक्षित व अयोग्य समझने लगती है. स्वभाव में तुनकमिजाज़ी और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है. आस-पास के लोग उसके इन व्यवहारों को स्वीकार नहीं कर पाते और प्रायः उसे अकेला छोड़ देते हैं. ऐसे में अपने वजूद को तलाशती उस औरत की जिंदगी थम-सी जाती है. इन नकारात्मक बातों की वजह से मेनोपॉज की सामान्य प्रक्रिया एक बेहद जटिल और बाधित प्रक्रिया बन जाती है.
कहते हैं तूफान आये, तो उसके गुजर जाने तक हमें झुक जाना चाहिए. यही बात रजोनिवृत्ति से गुजरती औरत पर भी लागू होती है. जीवन की मध्यावस्था में यह प्रक्रिया उसके लिए किसी तूफान की तरह ही होती है. ऐसी स्थिति में उसे भी स्थिर और शांत रहते हुए इस प्राकृतिक अवस्था के साथ सहयोग करना चाहिए. सकारात्मक सोच, संतुलित भोजन और अनुशासित जीवनचर्या इसका कारगर उपाय है. ‘मुझे कुछ नहीं हुआ है. मुझे सब प्यार करते हैं. मेरी गरिमा बढ़ने जा रही है.
अब हर महीने का झंझट खत्म. अब महीने के तीसों दिन बेडरूम में आजादी होगी. हिरनी की तरह कुलांचे मारने के दिन फिर से लौटनेवाले हैं. अब सेनेटरी नैपकिंस को ठेंगा दिखाने का मौसम आ रहा है…’ ऐसी सोच को कवच बना कर हर औरत मेनोपॉज से लड़ाई जीत सकती है. योग, व्यायाम, संगीत, कला, बागवानी, फोटोग्राफी जैसे मनपसंद कामों में खुद को बिजी रख कर वह काफी हद तक खुद को संयत और खुश रख सकती है. वास्तव में जीवन भर घर को सींचनेवाली औरत को दोनों हाथों से थामने की बेला है
– मेनोपॉज!परिवार का सहयोग जरूरी
इस समय एक स्त्री को अपने पति, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों के प्यार और सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इससे वह खुद को सुरक्षित महसूस करती है. अत: पारिवारिक सदस्यों को चाहिए कि वे इस मुश्किल घड़ी में उसे अकेला छोड़ने के बजाय उसकी मनोशारीरिक स्थिति को समझते हुए उसके साथ सहयोग करें. मेनोपॉज स्त्री के जीवन का एक अहम हिस्सा है. अत: इस दौर में आनेवाली परेशानियों के प्रति सकारात्मक रवैया रखे. जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से उचित राय लें. सोच बदलें, जिंदगी अपने आप बदल जायेगी.
मुझे लगा था अब नहीं बचूंगी : हेमा सिन्हा, होममेकर
जब मेरे शरीर में रजोनिवृति के लक्षण उभरने शुरू हुए, तो मुझे लगा कोई गंभीर बीमारी हो गयी है. लगा अब नहीं बचूंगी. रात भर सो नहीं पाती थी.
डॉक्टर से कंसल्ट करने और घर की बुजुर्ग महिलाओं से बात करने पर पता चला कि ऐसी परेशानी हर महिला को जीवन की मध्यावस्था में झेलनी पड़ती है. यह जान कर सुकून मिला. शारीरिक तकलीफ अब भी होती है, पर मानसिक तौर से मैंने खुद को इसके लिए तैयार कर लिया है, इसलिए डर नहीं लगता. कुछ भी एब्नॉर्मल फील होने पर तुरंत डॉक्टर से कसंल्ट कर लेती हूं.
अचानक से काफी घबरा गयी थी :संगीता, होममेकर
मुझे रजोनिवृति के लक्षणों के बारे में पूर्व में जानकारी नहीं थी. बस इतना पता था कि एक निश्चित आयु के बाद हर स्त्री को ऐसी एक अवस्था से गुजरना पड़ता है.
इसी वजह से जब अचानक से लक्षण उभरने शुरू हुए, तो काफी घबरा गयी. खुद को असुरक्षित और बीमार महसूस करने लगी, लेकिन जब डॉक्टर से कंसल्ट किया, तो पता चला कि ये सब सामान्य है. उसके बाद इस बारे में किताबों व पत्र-पत्रिकाओं से जानकारी हासिल की. कुछ बातें फैमिली और फ्रेंड्स से पता चलीं. अब मैं इन सारी चीजों को नॉर्मली हैंडल करती हूं.
मेनोपॉज के बारे में डॉक्टर ज्योत्सना मिश्रा की राय
स्त्रियों के प्रजनन तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. ओवरी या अंडाशय. जीवन की शुरुआत में जब अंगों का निर्माण होता है. उस वक्त अंडाशय में एक निर्धारित संख्या में ओवम या अंडे भी निर्मित होते हैं.
किशोरावस्था में शरीर में कुछ हॉर्मोनल परिवर्तन के कारण जब मासिक धर्म आरंभ होता है, तो हर महीने जो अंडे निषेचित नहीं हो पाते, वे मासिक स्राव के साथ फूट कर बह जाते हैं. इस प्रकार हर महीने कुछ अंडों के बाहर निकलते जाने से अंतत: शरीर के सभी ओवम समाप्त हो जाते हैं. इसी स्थिति को मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति कहते हैं.
रजोनिवृत्ति से पहले की अवस्था को प्री-मेनोपॉज़ कहा जाता है. इस अवस्था में अंडाशय का काम धीमा पड़ जाता है. शरीर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन का स्तर कम होने लगता है. सभी महिलाओं में रजोनिवृत्ति की उम्र भिन्न हो हो सकती है.
रजोनिवृत्ति के कुछ लक्षण हैं, जिनके आधार पर इसकी पहचान की जा सकती हैं, जैसे- मासिक अनियमितता, सिर दर्द, अनिद्रा, थकान, चिड़चिड़ापन, अवसाद, भय, तेजी से दिल धड़कना, योनि में सूखापन या खुजली, संभोग की इच्छा में कमी, वजन बढ़ना, स्तनों में भारीपन, गुप्तांगों के बालों में कमी आना, त्वचा में रूखापन व झुर्रियां, बाल झड़ना, शारीरिक जलन आदि.
हालांकि हर महिला का व्यक्तिगत अनुभव भिन्न हो सकता है. पीरियड्स के दौरान ये लक्षण उतने परेशान नहीं करते, लेकिन कई-कई महीनों तक जब पीरियड्स नहीं आता, उस दौरान ज्यादा परेशानी महसूस होती है. इसके बारे में अवेयर रहने की और खुद को इसके लिए तैयार रखने की. वर्ष 1995 में इस दिशा में महिलाओं को जानकारी देने के लिए ‘Indian Menopause Society’ का गठन दिया गया है. इस बार इसके वार्षिक बैठक की थीम है- “Menopause … creating a new horizon for a new beginning”
क्यों होता है प्री-मैच्योर मेनोपॉज
द इंस्टिच्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज (ISEC) के हाल के एक सर्वेक्षण में यह खुलासा पता चला है कि ज्यादातर भारतीय महिलाएं समयपूर्व रजोनिवृति की प्रक्रिया से गुजर रही हैं. इनमें से तकरीबन 4 फीसदी महिलाएं 29 से 34 आयु वर्ग की के बीच की हैं, जबकि 8 फीसदी महिलाएं 35 से 39 आयु वर्ग के बीच की हैं.
आमतौर पर यूरोपियन स्त्रियों में मेनोपॉज की औसत उम्र 51-55 वर्ष होती है, जबकि भारतीय स्त्रियों को 46-48 वर्ष में इस अवस्था से गुजरना पड़ता है. जब मेनोपॉज 45 वर्ष से पूर्व ही हो जाता है, तब उसे समयपूर्व या प्री-मैच्योर मेनोपॉज कहते हैं. हालांकि इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं है. बदलते सामाजिक परिवेश, भागदौड़ भरी जिंदगी, पर्यावरणीय विकिरण आदि कारणों से आजकल लड़कियों में प्यूबर्टी के लक्षण भी पहले की तुलना में जल्दी देखने को मिल रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि मेनोपॉज भी जल्दी ही होगा.
किसी कारणवश बच्चेदानी निकलवा देने से या फिर उससे संबंधित किसी बीमारी के कारण भी मासिक रक्तस्राव होना बंद हो सकता है. अंडाशय या ओवरी अगर समयपूर्व काम करना बंद कर देने को प्री-मैच्योर ओवेरियन फेल्योर कहते हैं.
ऐसा जींस के स्तर पर, डाउन सिंड्रोम जैसी जन्मजात स्थितियों के कारण, कैंसर या उसके इलाज के लिए प्रयोग की गयी कीमोथेरेपी अथवा रेडियोथिरेपी आदि के कारण भी हो सकता है. भारतीय स्त्रियों में पिछले कुछ वर्षों में प्री-मैच्योर ओवेरियन फेल्योर की दर बढ़ती हुई देखी जा रही है. इसकी एक बड़ी वजह महिलाओं के जीवन-यापन के तरीकों में बदलाव आना है. भाग-दौड़ भरी जिंदगी, हाइ मेंटल प्रेशर, लेट मैरिज, लेट कंसीविंग, वातावरणीय प्रदूषण एवं विकिरण आदि भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
मेनोपॉज के बाद भी संभव है गर्भधारण
अगर आप यह सोचती हैं कि मेनोपॉज की स्थिति में आप गर्भवती नहीं हो सकती, तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. पिछले साल दिल्ली में रहनेवाली 70 वर्षीय एक महिला दलजिंदर कौर ने एक बेटे को जन्म देकर इस आंशका को पूरी तरह गलत साबित कर दिया.
चिकित्सकों की मानें तो गर्भवती नहीं होने की संभावना केवल तभी होती है, जब एक साल तक लगातार पीरियड्स न आयें. हाल के कुछ प्रमुख चिकित्सकीय शोधों में यह पाया गया है कि अगर कम उम्र की किसी महिला के गर्भाशय के टिश्यूज को फ्रीज करके रख दिया जाये, तो मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति के बाद भी उस महिला की प्राकृतिक उर्वरता को बरकरार रखा जा सकता है. मतलब वह बड़ी उम्र में भी आसानी से मां बन सकती है.
अब तक इस प्रयोग से गुजरनेवाली 10 में से 4 महिलाओं में पॉजिटिव रिजल्ट देखने को मिला है. यूएस के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल कैंसर सेंटर में हुई एक खोज के मुताबिक यह प्रक्रिया एग फ्रीज करने की तुलना में ज्यादा बेहतर है क्योंकि यह मेनोपॉज प्रक्रिया को उल्टा करके दोबारा नेचुरल फर्टिलिटी पाने में मददगार हो सकती है. इसके लिए किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करें.
दुनिया में पहली बार कुटलक ओकटे नामक व्यक्ति ने वर्ष 1999 में इस दिशा में प्रयोग किया था. यह प्रक्रिया कितनी सफल है, इसकी पुष्टि करने के लिए शोधकर्ताओं ने वर्ष 1999 से 2016 के बीच के जुटाये गये आंकड़ों का परीक्षण किया. इस आधार पर वे मेनोपॉज प्रक्रिया को रिवर्स ऑर्डर में लाने में सफल हुए. फलस्वरूप 3 में से 2 महिलाओं में रजोनिवृति के पश्चात भी प्रजनन प्रक्रिया दोबारा शुरू करने में सफलता प्राप्त हुई. इसमें मासिक धर्म भी शामिल है.

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