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Friday, March 29, 2024

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मुश्किल होता मधुमेह का इलाज

सालाना 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा मधुमेह पर होनेवाला खर्च आज के समय में डायबिटीज, यानी मधुमेह एक बड़ी समस्या बन चुकी है. दुनिया की एक-तिहाई आबादी इससे पीड़ित है, जिसमें बूढ़े और जवान से लेकर बच्चे तक शामिल हैं. भारत इस बीमारी का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है और इसका सबसे […]

सालाना 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा मधुमेह पर होनेवाला खर्च
आज के समय में डायबिटीज, यानी मधुमेह एक बड़ी समस्या बन चुकी है. दुनिया की एक-तिहाई आबादी इससे पीड़ित है, जिसमें बूढ़े और जवान से लेकर बच्चे तक शामिल हैं. भारत इस बीमारी का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है और इसका सबसे बड़ी वजह हमारी अनियमित और असंतुलित दिनचर्या है.
बहरहाल, चिंता की बात यह है कि इसका इलाज दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है़ आंकड़ों के मुताबिक भारत में मधुमेह के इलाज पर होनेवाला सालाना खर्च 1़ 5 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा छू चुका है़ गौरतलब है कि यह राशि, इस वित्तीय वर्ष सरकार द्वारा पूरे स्वास्थ्य मद में आवंटित 32 हजार करोड़ रुपये की राशि से 4़ 7 गुणा ज्यादा और कुल सेवा कर संग्रह की तीन-चौथाई है़ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि मधुमेह के इलाज पर होनेवाला खर्च साल-दर-साल 20 से 30 प्रतिशत बढ़ता जा रहा है़
इसी क्रम में लांसेट जर्नल के एक अध्ययन में इस बात पर चिंता जताते हुए लिखा गया है कि इंसुलिन की बढ़ती कीमतों ने, दुनियाभर में मधुमेह की राजधानी माने जानेवाले भारत में, इस बीमारी का इलाज मुश्किल बना दिया है. गौरतलब है कि भारत में फिलहाल सात करोड़ लोग मधुमेह के मरीज हैं, जिनमें से छह करोड़ ऐसे हैं जिनके लिए इन्सुलिन मयस्सर नहीं है़ यहां यह जानना जरूरी है कि रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित कर चयापचय की प्रक्रिया को सुचारू रखनेेवाले इन्सुलिन की जरूरत टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित सभी लोगों और टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित एक-चौथाई लोगों को पड़ती है़ ऐसे में अगर मरीज को मल्टीपल मन्सुलिन इंजेक्शंस की जरूरत प़ड़ती है, तो इलाज के खर्च में बढ़ोेतरी होना लाजिमी है़
बताते चलें कि हमारे देश में अधिकांश आयातित इन्सुलिन का इस्तेमाल होता है और उसमें भी अगर कोई मरीज नवीनतम और उन्नत किस्म की इन्सुलिन के इंजेक्शन लगवाता है, तो यह खर्च चार गुणा तक बढ़ जाता है़
बहरहाल, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्ल्थ मीट्रिक्स एंड एवैल्यूएशन के मुताबिक, वर्ष 1990 और 2013 के बीच लोगों में डायबिटीज जहां वैश्विक रूप से 45 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, वहीं इसी अवधि में भारत के मामले में यह आंकड़ा 123 प्रतिशत का रहा़ इसी बीच, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सहयोग से वर्ल्ड इकोनाॅमिक फोरम की ओर से पेश एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2012-2030 के दौरान मधुमेह की वजह से भारत को 10 हजार करोड़ का आर्थिक बोझ उठाना पड़ेगा़ इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस समय स्वास्थ्य सेवा का जो कुल सालाना बजट है, उसकी तुलना में मधुमेह की सालाना लागत 1.6 गुना ज्यादा है और यह मधुमेह के लिए वर्तमान बजट से 45 गुणा ज्यादा है़
इसके अलावा, सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारत में हर मरीज के लिए डायबिटीज की लागत लगभग छह हजार रुपये सालाना अनुमानित है. इस मामले में समय से पहले मौतें होने की वजह से उत्पादकता में कमी एक बड़ा मसला है. दूसरा मसला यह है कि इस रोग का इलाज करने, अस्पताल जाने, भर्ती होने, दवाएं लेने, ब्लड शुगर वगैरह की जांच कराने का खर्च भी बढ़ता जा रहा है और मधुमेह की वजह से होने वाली दूसरी समस्याएं जैसे हाइपरटेंशन, दिल के रोग और डायबिटिक रेटिनोपैथी इत्यादि के खर्च में भी दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है़
हमारे देश में महामारी का रूप ले रही मधुमेह की बीमारी, आबादी को तेजी से अपनी चपेट में ले रही है़ चेन्नई के एमवी हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज के मुख्य डायबीटोलॉजिस्ट डॉ विजय विश्वनाथन के मुताबिक वर्ष 2014 में जहां भारत में 6़ 68 करोड़ लोग मधुमेह के मरीज थे, वहीं 2035 तक यह आंकड़ा 10.9 करोड़ होने की आशंका है.
ऐसे में मधुमेह के इलाज के लिए दिन-प्रतिदिन हर मरीज पर खर्च बढ़ता जा रहा है और समग्र रूप से पूरे देश पर भी आर्थिक बोझ बढ़ रहा है़ इन हालात में यह बहुत जरूरी हो गया है कि शुरू से ही मधुमेह के इलाज के महत्व पर पूरा ध्यान केंद्रित किया जाये़ इसे राष्ट्रीय स्तर पर इसके बारे में पर्याप्त जागरूकता फैलाने और इसे सरकारी और प्रशासनिक एजेंडे में शामिल किये जाने की दरकार है़
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