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जिनपिंग-नरेंद्र मोदी नेतृत्व के सहयात्री

चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों से ही नहीं दुनिया के अन्य नेताओं से होती है. हालांकि, अभी प्रधानमंत्री मोदी का समग्र मूल्यांकन संभव नहीं है, लेकिन विश्व के अन्य राष्ट्र प्रमुखों की जीवन यात्रा, व्यक्तित्व, चुनौतियों और कार्यशैली जैसी कसौटियों पर मोदी को अवश्य ही […]

चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों से ही नहीं दुनिया के अन्य नेताओं से होती है. हालांकि, अभी प्रधानमंत्री मोदी का समग्र मूल्यांकन संभव नहीं है, लेकिन विश्व के अन्य राष्ट्र प्रमुखों की जीवन यात्रा, व्यक्तित्व, चुनौतियों और कार्यशैली जैसी कसौटियों पर मोदी को अवश्य ही परखा जा सकता है. और, ऐसी किसी भी तुलना में नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सबसे पास दिखते हैं. पढ़िए एक विश्‍लेषण.
ऑस्ट्रेलिया से रवि दत्त बाजपेयी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, जहां भारत में नरेंद्र मोदी की तुलना कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों से होती है, वहीं मोदी को विश्व के अन्य नेताओं के समक्ष भी परखा जाता है. वैसे तो इतने आरंभिक दिनों में प्रधानमंत्री मोदी का समुचित मूल्यांकन संभव नहीं है, पर विश्व के अन्य राष्ट्र प्रमुखों की जीवन यात्रा, व्यक्तित्व, चुनौतियों व कार्यशैली जैसी कसौटियों पर मोदी को अवश्य ही परखा जा सकता है. ऐसी किसी भी तुलना में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, नरेंद्र मोदी के सबसे करीब हैं. दोनों ने अपने बचपन में साधनहीनता का सामना किया, पर इनमे एक अंतर है, जहां मोदी एक मध्य वित्त परिवार से हैं, वहीं जिनपिंग समृद्ध राजनीतिज्ञ परिवार से आते हैं.
माओ की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान जिनपिंग के पिता को उनके पद से हटा दिया गया और स्वयं शी जिनपिंग को अत्यंत गरीबी में कठोर परिश्रम करना पड़ा. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान शी जिनपिंग ने औपचारिक शिक्षा के अलावा स्वाध्याय पर अधिक ध्यान दिया; संघ, भाजपा में अपने आरंभिक दिनों में मोदी का स्वाध्याय भी अब बहुप्रचारित है.
अपने राजनीतिक जीवन की शुरु आत में शी जिनपिंग ने चीन के छोटे राज्यों में काम किया, जिनपिंग की कार्य कुशलता और ईमानदारी से प्रभावित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें प्रशासनिक भ्रष्टाचार से जूझ रहे शंघाई प्रांत का प्रमुख नियुक्त किया.
शंघाई के उच्च पदस्थ लोगों के वैभवशाली और विलासितापूर्ण जीवन के स्थान पर शी जिनपिंग ने सादगीपूर्ण जीवन का उदाहरण पेश किया. 2001 में गुजरात राज्य में आंतरिक राजनीतिक संघर्ष व अक्षमता से जूझ रही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी नरेंद्र मोदी की कार्य कुशलता और ईमानदारी का कायल होना पड़ा और मोदी मुख्यमंत्री नियुक्त हुए.
प्रांतीय दायरे से निकल कर राष्ट्रीय नेतृत्व के पटल पर उभरने में भी मोदी और जिनपिंग में बहुत समानता है. जिनपिंग को चीन की राष्ट्रीय राजनीति में लाने में उनके वरिष्ठ सहयोगियों का योगदान है, जिनपिंग को एक परंपरावादी मान कर पोलित ब्यूरो में स्थान दिया गया.
गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मोदी के सबसे बड़े सहयोगी भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी बने. राष्ट्रीय राजनीति में अपना स्थान बनाने के बाद भी अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचने में मोदी व जिनपिंग को भारी संघर्ष करना पड़ा. चीन में शी जिनपिंग का सीधा मुकाबला बो जिलाई के साथ था लेकिन भ्रष्टाचार, दमन व घोटालों के अनेक मामलों में नाम उजागर होने के बाद बो जिलाई न सिर्फ नेतृत्व की दौड़ से बाहर हो गये, बल्कि अपनी आपराधिक गतिविधियों के कारण जेल भेज दिये गये. सौभाग्यवश भारत में नरेंद्र मोदी का राजनीतिक संघर्ष इतना नाटकीय नहीं रहा.
मोदी और जिनपिंग के ठीक पहले उनके देश के राष्ट्र प्रमुख अपनी अक्षमता, अकर्मण्यता और अनिर्णय के लिए अधिक जाने गये हैं, चीन में हू जिंताओ के कार्यकाल को एक निर्थक दशक कहा जाता है. शी जिनपिंग ने सारे प्रशासनिक व सैन्य अधिकारों को अपने पास रखा है और पूर्व प्रशासन में चल रहे सामूहिक निर्णय (अनिर्णय) की प्रक्रि या को समाप्त कर दिया है. समूची राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली पर शी जिनपिंग के एकाधिकार के कारण उन्हें माओ और डेंग जियाओ पेंग की तरह एक अधिनायक के रूप में देखा जाता है.
शी जिनपिंग, कम्युनिस्ट पार्टी, सेना एवं प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर बेहद चिंतित है. उन्होंने पूरे चीन में व्यापक भ्रष्टाचार विरोधी अभियान छेड़ा है, जिसके बाद कम्युनिस्ट चीन के इतिहास में पहली बार पोलित ब्यूरो सदस्यों को भी कारावास, संपत्ति की जब्ती जैसे कठोर कदम उठाये गये हैं.
इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की सफलता के लिए शी जिनपिंग ने अपना नेतृत्व, अपनी प्रतिष्ठा और शायद जीवन तक दावं पर लगा दिया है. भारत में नरेंद्र मोदी ने भी सारी प्रशासनिक-राजनीतिक व्यवस्था का एकाधिकार अपने पास रखा है और प्रधानमंत्री के रूप में उनकी सबसे बड़ी चुनौती भी भारत की अकर्मण्य व भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारना है.
चीन के अब तक के अधिकतर नेता औपचारिक, शुष्क सरकारी प्रोटोकॉल पर चलने वाले, निर्जीव, नीरस, निरुत्साह, भावशून्य-से दिखते रहे है; मनमोहन सिंह का कार्यकाल भी इसका उदाहरण है. इन पूर्व चीनी नेताओं के उलट शी जिनपिंग, अपनी भाषण शैली और जीवंत व्यवहार से आम लोगों के साथ सीधे जुड़ने में कामयाब हुए हैं.
शी जिनपिंग राष्ट्रवादी नेता हैं और आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार चाहते हैं, लेकिन वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र नियंत्रण बनाये रखना चाहते हैं. चीन की समुद्री सीमा विवाद, शिनिजयांग, तिब्बत, जैसे मसलों पर जिनपिंग ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है. नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रवादी नेता हैं, लेकिन एक लोकतंत्रीय व्यवस्था में मोदी को शी जिनपिंग जैसी आजादी नहीं है और भारत चीन जितना समृद्ध-सशक्त भी नहीं है.
इन दोनों नेताओं की सबसे बड़ी समानता इनके नेतृत्व से बंधी आशाएं हैं. चीन के लोग कम्युनिस्ट पार्टी के निरंकुश भ्रष्टाचार व अन्याय से व्यथित हैं, भारत में नरेंद्र मोदी भी जनता की आशाओं के रथ पर चढ़ कर सत्ता में आये है.
मोदी व जिनपिंग दोनों ही अपनी पार्टी की विचारधारा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं लेकिन वे अपनी प्रशासनिक, राजनीतिक, आर्थिक व वैदेशिक नीतियों को अपनी पार्टी की रूढ़ियों के अधीन नहीं रख सकते है. आज भारत और चीन दोनों वैश्विक शक्ति बनने की कगार पर खड़े है, नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग दोनों जानते है कि या तो दोनों देश मिल कर एक-दूसरे का मार्ग प्रशस्त करें या पारस्परिक वैमनस्यता के चलते एक-दूसरे को विश्व व्यवस्था के हाशिये पर रोके रखें. क्या व्यावहारिक जिनपिंग व व्यावसायिक मोदी अपनी समानताओं को भारत-चीन के समावेशी सामंजस्य के लिए भी उपयोग में ला सकेंगे?

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