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वैश्विक बाल दिवस : स्लम बस्ती की कनक संसद में करेंगी ”मन की बात”

रचना प्रियदर्शिनी 20 नवंबर को वैश्विक बाल दिवस मनाया जायेगा. इस यादगार अवसर पर देशभर से चुने गये 30 बच्चे भारतीय संसद भवन में अपनी बात रखेंगे. इनमें कर्नाटक की बाल मजदूर कनक भी हैं. उन्हें आठ मिनट तक संसद भवन में अपनी बात कहने का मौका मिलेगा. इन सभी बच्चों का चयन यूनिसेफ ने […]

रचना प्रियदर्शिनी
20 नवंबर को वैश्विक बाल दिवस मनाया जायेगा. इस यादगार अवसर पर देशभर से चुने गये 30 बच्चे भारतीय संसद भवन में अपनी बात रखेंगे. इनमें कर्नाटक की बाल मजदूर कनक भी हैं. उन्हें आठ मिनट तक संसद भवन में अपनी बात कहने का मौका मिलेगा. इन सभी बच्चों का चयन यूनिसेफ ने किया है.
तमाम तरह के कानून और जन जागरण अभियान के बावजूद बाल श्रम भारत की सर्वाधिक गंभीर समस्या है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार पूरे विश्व में 10.3 मिलियन बच्चे इस दुष्चक्र का शिकार हैं, जिनमें से 70 फीसदी लड़कियां हैं.
दुनियाभर में सबसे ज्यादा बंधुआ बाल मजदूर भारत में हैं. अकेले राजधानी दिल्ली में ही करीब एक लाख बच्चे घरेलू नौकरों या बंधुआ मजदूरों के रूप में काम कर रहे हैं. 5-14 साल के करीब 12 करोड़ बच्चे खतरनाक माने जानेवाले कार्यों, जैसे कि- बीड़ी निर्माण, पटाखा निर्माण, चूड़ी उद्योग, कालीन उद्योग आदि क्षेत्रों में कार्यरत हैं.
ऐसी ही एक लड़की हैं कनक, जिन्होंने अपने जीवन के 12 साल बाल मजदूर के रूप में गुजारे हैं.मां की बीमारी ने बना दिया बाल श्रमिक : बेंगलुरु के झुग्गी-बस्ती में पैदा हुई इस बच्ची को बचपन में ही कई तरह की मुसीबतों और परेशानियों से जूझना पड़ा. घर में खाने के लाले थे. पिता शारीरिक रूप से अक्षम थे. मां चार-पांच घरों में बाई का काम करती थी. गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता था.
उसके बावजूद उन्होंने कनक को चौथी क्लास तक पढ़ाया. बदकिस्मती से जब कनक नौ साल की थी, तो उसकी मां को कैंसर हो गया. ऐसे में पूरे घर-परिवार की जिम्मेदारी नन्ही कनक पर आ गयी. उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और मां की तरह तीन-चार घरों में नौकरानी के रूप में काम करना पड़ा.
कैंसर के कारण कनक की मां चल बसीं. तब कनक को न चाहते हुए भी मजबूरी में अपने एक रिश्तेदार के यहां रहना पड़ा. वे लोग उसे शादियों-पार्टियों में साफ-सफाई, बर्तन धोने आदि का काम करने भेजने लगे. ऐसे ही किसी एक कार्यक्रम में कनक पर ‘स्पर्श’ एनजीओ के एक कार्यकर्ता की नजर पड़ी. ‘स्पर्श’ बेंगलुरु स्थित एक गैर-सरकारी संस्थान है, जो बाल श्रम के विरुद्ध कार्य करता है.
इस संस्था के प्रयासों से कनक को 2011 में इस विपरीत परिस्थिति से बाहर निकाला गया. आज कनक 17 साल की है और बेंगलुरु के एक प्राइवेट कॉलेज में प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स कर रही है. वह पढ़ने में बेहद होशियार है. उसने दसवीं की परीक्षा में 80% अंक हासिल किये थे. कनक का सपना बड़ी होकर साइंटिस्ट बनने का है. कुल 30 बच्चों में से कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की रहनेवाली कनक ही एकमात्र ऐसी हैं, जिन्हें यूनिसेफ द्वारा आयोजित थ्री-राउंड ऑडिशंस को क्वालिफाई करने के बाद चुना गया है. कनक इस आयोजन में शामिल होने को लेकर बेहद उत्साहित हैं.
1954 में शुरू हुई अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस की परंपरा: संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1954 में अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस की शुरुआत की गयी थी. इसे हर साल 20 नवंबर को मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय भाईचारे और बाल कल्याण मुद्दों एवं कार्यक्रमों के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाना है.
इस खास दिन के लिए 20 नवंबर की तारीख इसलिए चुनी गयी, क्योंकि इसी दिन वर्ष 1959 में यूएन जनरल एसेंबली द्वारा बाल-अधिकारों से संबंधित घोषणा-पत्र को अपनाया गया था. वर्ष 1990 में इसी दिन इसे व्यावहारिक रूप से लागू किया गया. इस लिहाज से पूरे विश्व में यह दिन बच्चों के लिए बेहद खास माना जाता है.

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