27.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सिंह की मांद में घुस आया है सियार, जागो फिर एक बार

कुजात अच्छे दिनों की आस में भाजपा कार्यकर्ताओं के बुरे दिन : भाग-2 भाजपा में आज रकीबुल कल्चर उफान पर है. धोखाधड़ी, तस्करी, जाल-फरेब व सेटिंग गेटिंग से पैसा बना कर मोटे हो गये रकीबुल टिड्डी दल की तरह भाजपा की ओर विधायक-टिकट पाने की लिप्सा लेकर दौड़ रहे हैं. इनकी हर अदा, निराली है. […]

कुजात
अच्छे दिनों की आस में भाजपा कार्यकर्ताओं के बुरे दिन : भाग-2
भाजपा में आज रकीबुल कल्चर उफान पर है. धोखाधड़ी, तस्करी, जाल-फरेब व सेटिंग गेटिंग से पैसा बना कर मोटे हो गये रकीबुल टिड्डी दल की तरह भाजपा की ओर विधायक-टिकट पाने की लिप्सा लेकर दौड़ रहे हैं. इनकी हर अदा, निराली है. शर्ट-पैंट या कुर्ता-पायजामा से लेकर मोजा-जूता तक धवल उज्ज्वल लिबास ! बगुले के पंख के समान सफेद! गले और बाजू में रस्सी के समान मोटे सोने के चेन! उंगलियों में कीमती रत्नजड़ित मुद्रिका मनोहर! हाथ में सफेद टैब!
लेटेस्ट मॉडल सफेद स्कॉर्पियो या सफारी की सवारी! लंबा टीका, मधुरी वाणी! यूं कहिए कि मन और चाल-चरित्र को छोड़ कर रकीबुलों का सब कुछ श्वेत, चमकदार और आकर्षक! (कुछ रकीबुलों ने तो अपनी दाढ़ी मोदी स्टाइल में सजा रखी है).
‘मन मलिन तन सुंदर कैसे. विषरस भरा कनकघट जैसे.’ लेकिन भाजपा के कर्णधारों को तुलसी बाबा की इस पंक्ति में छिपे मर्म से क्या लेना देना? केंद्र से प्रदेश तक के नेता रकीबुलों पर लट्ट हैं. आप प्रदेश कार्यालय या संघ कार्यालय जाइए, रकीबुलों की मंडली प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रांत प्रचारक के कक्ष के इर्द-गिर्द मंडराती मिलेगी.
बड़े मोहक अंदाज में ‘नमस्कार’ करते हुए! रकीबुलों का बायोडाटा भी देखते बनता है! केंद्र व प्रदेश के नेता तथा प्रचारकगण विशेष वात्सल्य के साथ रकीबुलों के बायोडाटा और मेवे-मिठाई के पॉकेट ग्रहण करते हैं. इनके लिए दिल्ली व प्रदेश के नेताओं एवं संघ के अधिकारियों के दरवाजे 24 घंटे खुले मिलेंगे. भले पुराने, निष्ठावान, समर्पित स्वयंसेवकों-कार्यकर्ताओं के लिए अपॉयंटमेंट की लक्ष्मणरेखा खिंची हो.
वह तो भला हो प्रदेश प्रभारी विनोद पांडेयजी का जो मौकापरस्तों, दलालों, बिचौलियों एवं टिकट के भूखे रकीबुलों के इरादे को तुरंत भांप लेते हैं. लेकिन कुछ रकीबुल जब राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री श्री सौदान सिंह के प्रभामंडल में पहुंचने में सफल हो जाते हैं, तो सिर पीटने के अलावा और बचता क्या है?
श्री सौदान सिंह जी आत्मुग्ध जान पड़ते हैं. वे दल-बदलुओं को भाजपा में शामिल कराके पार्टी को विस्तार दे रहे हैं. विस्तार कितना हो रहा है, यह तो वे ही जानें, लेकिन पार्टी की शुचितारूपी गहराई जरूर घट रही है, जिसका ख्याल तो उन्हें करना ही चाहिए, क्योंकि वे राज्य भाजपा के मार्गदर्शक की भूमिका में हैं.
अगर माननीय सौदान सिंह जी का यह मानना है कि कार्यकर्ताओं के बूते पार्टी कभी भी राज्य विधानसभा में तीस का आंकड़ा पार नहीं कर सकी तो इसमें दोष परस्पर टांग-खिंचाई करनेवाले प्रदेश के नेताओं का है, कार्यकर्ताओं का नहीं. यहां के कार्यकर्ता उतने ही क्षमतावान हैं जितने की अन्य प्रदेशों के. उफ! जिनसे दल के सिद्धांतों-आदर्शो एवं विचारधारा के तराजू पर तौल कर निर्णय लेने की अपेक्षा है, वे ही अगर दंडीमारी को उचित ठहराने लगें, तो यह घोर निराशाजनक है.
हवा का रुख भांप कर रंग-ढंग बदलने में माहिर ये ‘गिरगिट’ किसी एक दल या विचारधारा से चिपके रहने की मूर्खता नहीं करते. ये तो घाट-घाट का पानी पीकर मस्त रहनेवाले जीव हैं. इनका यकीन ‘राजनीतिक वसुधैव कुटुंबकम’ में ही होता है. जैसे सांप केंचुल बदलता रहता है, वैसे ही ये दल बदलते रहते हैं.
गीता में भगवान कृष्ण की वाणी को ये इस प्रकार विस्तार देते हैं – ‘जैसे मनुष्य वस्त्र बदलता रहता है एवं आत्मा शरीर बदलते रहती है, वैसे ही शातिर नेता सफलता की मंजिल तक पहुंचने के लिए सुविधानुसार दल बदलते रहते हैं.’ दलीय निष्ठा की डोरी से बंधने के प्रति इनकी निष्ठा नहीं होती. यही वजह है कि ये भाजपा की ओर मचलते चले आ रहे हैं.
06 अप्रैल 1980 को भाजपा-स्थापना के समय अटलजी ने कहा था, ‘राष्ट्र को संकटों से उबारने की पहली शर्त यह है कि हमारा सार्वजनिक जीवन नैतिक मूल्यों पर अधारित हो.’ क्या हमने पार्टी की पंचनिष्ठाओं में शामिल मूल्याधारित राजनीति को तिलांजलि दे दी है? स्थापना के समय पार्टी ने गांधी के सपने को पूरा करने, लोकनायक जयप्रकाश के टूटे सपनों को जोड़ने और पं दीनदयाल उपाध्याय के सपनों को साकार करने की वचनबद्धता दुहराई थी.
गांधी ने सिद्धांतहीन राजनीति को सामाजिक अभिशाप की संज्ञा दी है. जेपी ने तो बार-बार कहा, ‘व्हाट इज मोरली रांग कैन नॉट बी पॉलिटिकली करेक्ट (अर्थात जो बात नैतिक रूप से गलत है वह राजनीतिक तौर पर सही नहीं हो सकती)’ और, अपने दीनदयाल जी को मैंने संघ के एक बौद्धिक वर्ग में खुद ऐसा कहते सुना है कि ‘अगर जनसंघ अपने घोषित सिद्धांतों के विपरीत आचरण करे तो उसे भंग कर देना ही देश हित में होगा.’ तो क्या सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुए केवल तोड़-जोड़ के रास्ते सत्ता प्राप्त कर हम अपनी उस वचनबद्धता को निभा पायेंगे?
‘अज्ञातकुलशीलस्य वासो देवो न कश्चित्’ – पंचतंत्र. क्या दलबदलुओं एवं अवसरवादियों के लिए भाजपा के दरवाजे खोलनेवालों को इनके कुल (राजनीतिक आनुवांशिक प्रकृति) और शील (इरादे) का ज्ञान नहीं है? क्या भाजपा और इसके निष्ठावान कार्यकर्ता इन धूर्तो की राजनीति रूपी चूल्हे का इंधन बनने के लिए बचे हैं? क्या हम मंचों से रकीबुलों को प्रवचन सुनने और तालियां बजा कर उसका हौसला बढ़ाने के लिए ही हैं. या हमारा कुछ आदर्श भी है? पार्टी के कर्णधार इस तथ्य की अनदेखी क्यों कर रहे हैं कि कुसंगदोष अच्छे-अच्छे परिवारों, घरों और संस्थाओं को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है? भाजपा की प्रकृति के विपरीत कुल और शील रखनेवालों के संक्रमण से हमारे कार्यकर्ता भी अपने संस्कारों से गिर रहे हैं.
रकीबुलों के ग्लैमर से दुष्प्रभावित होकर अपने स्वयंसेवक-कार्यकर्ता रकीबुल संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं. वे भी पद, पैसे और ग्लैमर के लिए बेतहाशा दौड़ लगाने लगे हैं, जो कि संगठन के लिए अशुभ है. दूसरी ओर तपे-तपाये पुराने कार्यकर्ताओं के अंदर भी उनकी उपेक्षा के चलते आक्रोश एवं विद्रोह का दावानल धधक रहा है. कहीं यह दावानल आनेवाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को जला कर राख न कर दे?
इसलिए, हे संघ-भाजपा के कार्यकर्ता मित्रों? युग-ऋषि श्री गुरुजी गोलवलकर, अमर शहीद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं अमर हुतात्मा पं दीनदयाल उपाध्याय की इस बगिया को चोरो-लुटेरों-बटमारों एवं मक्कारों-गद्दारों का बसेरा बनाने से रोकें. बेशक, अनुशासन हमारी पूंजी है, हमारा संस्कार है, लेकिन जहां संगठन की मान-मर्यादा और कार्यकर्ताओं की अस्मिता धूर्तो, पाखंडियों एवं अवसरवादियों द्वारा रौंदे जा रहे हों तो अनुशासन हमारी कमजोरी नहीं बननी चाहिए. जिस प्रकार की अंधेरगर्दी पार्टी के अंदर मची है, उससे तो साफ है कि देश के लिए अच्छे दिन आने से पहले ही झारखंड के भाजपा कार्यकर्ताओं के बुरे दिन अवश्य आनेवाले हैं. अत: अब मौन धारण न करें.
अपने आक्रोश को आवाज दें. सिंह सी बुलंद आवाज! संगठित सिंहगजर्ना करें ताकि नेतृत्व सत्ता के लिए सिद्धांतों की बलि चढ़ाने के अपकर्म से बचे, साथ ही कार्यकर्ताओं को वंचना देकर सत्ता-प्रतिष्ठान में घुसने की कुटिल मनसा से केसरिया रंग में रंगे धूर्त सियारों के मंसूबे ध्वस्त हो जायें. महाप्राण निराला के ये शब्द आपका आह्वान करते हैं –
‘सिंह की मांद में आज घुस आया है सियार! जागो फिर एक बार.’ (समाप्त)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें