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गुरुवार को जिले भर में प्रकाशोत्सव का त्योहार मनाया जायेगा. त्योहार को खास तरीके से मनाये जाने के लिए जिले भर में तैयारी पूरी कर ली गयी है. सुपौल : जिले भर में बुधवार को दीवाली से एक दिन पूर्व हिंदू धर्मावलंबियों ने मृत्यु की देवता यम की पूजा-अर्चना की. छोटी दीपावली उत्साह व उमंग […]

गुरुवार को जिले भर में प्रकाशोत्सव का त्योहार मनाया जायेगा. त्योहार को खास तरीके से मनाये जाने के लिए जिले भर में तैयारी पूरी कर ली गयी है.
सुपौल : जिले भर में बुधवार को दीवाली से एक दिन पूर्व हिंदू धर्मावलंबियों ने मृत्यु की देवता यम की पूजा-अर्चना की. छोटी दीपावली उत्साह व उमंग के साथ मनाया गया. लोगों ने छोटी दीपावली के मौके पर घरों व दुकान-प्रतिष्ठानों पर दीये जलाए. साथ ही आतिशबाजी का धूम-धड़ाका जारी हो गया.
जिन लोगों ने अपने घरों व दुकानों को रंग-बिरंगे बल्ब के झालर से संवारा था. शाम होते ही जगह-जगह इनकी रंगीनियां बिखरने लगीं. गुरुवार को जिले भर में प्रकाशोत्सव का त्योहार मनाया जायेगा. त्योहार को खास तरीके से मनाये जाने हेतु जिले भर में तैयारी पूरी कर ली गयी है.
प्राचीन काल से दीपावली को हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया. दीपावली का पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख मिलता है.
दीये यानी दीपक को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता हैं और जो हिन्दू कैलेंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्थिति बदलता है. कुछ क्षेत्रों में हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा दीपावली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं. नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि की जानकारी से हमें ज्ञात कराता है.
सातवीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा है जिसमें दिये जलाये जाते थे और नव दुल्हन और दूल्हे को तोहफे दिए जाते थे. वहीं राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और जगमगाया जाता था.
एक अन्य कथा के अनुसार माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्रीरामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे. अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था. श्रीराम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाए. जहां कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी. तब से प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास के बीच मनाया जाता रहा है.
पूर्वजों की याद दिलाती है दीपावली
दीपावली दिवंगत पूर्वजों की याद भी दिलाती है. इस प्रकाश पर्व पर जहां-जहां लोग खुशियों के दीप जलाते हैं. वहीं उल्का भ्रमण की पारंपरिक विधि भी पूरी करते हैं. खर, पटुआ की संठी और कुश से तैयार उल्का लेकर पितरों को राह दिखाने की विधि पूरी की जाती है. दीपावली पर घर के बड़े-बुजुर्ग ने कुलदेवी के घर के दरवाजे पर रखे कलश पर जलते दीये से उल्का को प्रज्ज्वलित करते हैं. साथ ही हाथ में लिए धान छींटते हुए अन्न, धन, लक्ष्मी घर जाए, दरिद्र बाहर हो अर्थात गरीबी उन्मूलन ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है.
पूजन मंत्र
ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बा‘भ्यन्तर: शुचि:।।
उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें-
संकल्प- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार का उच्चारण करें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र का उच्चारण करें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यथंर् महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये. तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये.
-ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें। पूजन से पूर्व नई प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण-प्रतिष्ठा करें-
प्रतिष्ठा- बाएं हाथ में चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु. विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।। ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च.
अस्यै देवत्वमचार्यै मामहेति च क›न।।
सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करें. इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृ का (सोलह देवियों का) पूजन करें. तत्प›ात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें.
ऊं महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है.
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्। परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।। भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।। नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।। ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें.
समर्पण- पूजन के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्न मम.(पूजन पंडित की देखरेख में करें)
पूजा की थाली के संबंध में शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी चाहिए. पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रखें कर सजाएं. दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस क्रम से सजाएं- सबसे पहले धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुंकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें. तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल, दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर-कपूर, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक रहे.
दीपावली के मौके पर अपने इष्ट देवता का पूजन करने के बाद सदियों से हुक्कापाती जलाने की परंपरा मिथिला क्षेत्र में अब भी कायम है. लोगों द्वारा लक्ष्मी पूजन के बाद फूस व संठी से बनी हुक्का-पाती जला लक्ष्मी घर, दरिद्र बाहर का उच्चारण करते हैं. दीपावली पर लक्ष्मी गणेश की पूजा करने के लिए लोग बतासा व धान से बने लाबा की भी खरीद कर रहे थे.

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