दक्षा वैदकर
कुछ दिनों पहले जब मैं चाय की दुकान पर दोस्तों के साथ चाय पी रही थी, एक छोटी-सी घटना देखी. ज्वेलरी शोरूम के सामने सड़क पर कई गाड़ियां खड़ी थीं. एक कार वहां आयी और पार्किग के लिए आगे-पीछे करने के चक्कर में एक खड़ी हुई बाइक से टकरा गयी.
बाइक के गिरते ही दूर से एक लड़का दौड़ता हुआ आया. उसने अपनी बाइक उठायी. हालांकि, बाइक को कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन उसने सीधे जाकर ड्राइवर का गला पकड़ लिया और उसे बाहर आने को कहने लगा. ड्राइवर उसकी पिता के उम्र के थे.
वे बार-बार गुजारिश करते कि बेटा, गलती से धक्का लग गया. बाइक को नुकसान नहीं हुआ है. जाने दो, लेकिन लड़का टस से मस न हुआ. उन पर चिल्लाता रहा. बोला कि गाड़ी के बाहर निकलो, तब बताता हूं.
लड़के का गुस्सा देख कर बुजुर्ग ड्राइवर घबरा गये थे, इसलिए बाहर नहीं आ रहे थे.
कुछ लोगों ने लड़के को समझाने की कोशिश की कि इन्हें छोड़ दो, लेकिन लड़का नहीं माना. उसने कार की चाबी निकाल ली और जाने लगा. तभी कार की मालकिन ज्वेलरी शोरूम से भागी-भागी आयीं.
उनकी उम्र भी 50-55 होगी. उसने लड़के से हाथ जोड़ कर कहा कि गाड़ी की चाबी दे दो बेटा. देर तक मनाने के बाद लड़के ने चाबी दी और सभी को गालियां देता हुआ वहां से निकल गया.
इस घटना को देख कर मैं डर गयी कि आज की युवा पीढ़ी कितनी ज्यादा गुस्सैल और बद्तमीज हो गयी है. झगड़ते वक्त उम्र भी नहीं देखती.
लड़के भूल जाते हैं कि आज वे किसी दूसरे बुजुर्ग को इतनी गालियां दे रहे हैं, कॉलर पकड़ रहे हैं, कल को हो सकता है कि उनके पिता भी किसी युवक को गलती से टक्कर मार दें, तो उनके साथ भी कोई ऐसा ही कर सकता है.
तब उन्हें यह सब देख कर कैसा लगेगा? वे क्यों किसी और के भीतर अपने माता-पिता, भाई-बहन को नहीं देख पाते? क्यों वे किसी अनजान को माफ नहीं कर पाते?
क्या बाइक का गिरना, गाड़ी में स्क्रैच लग जाना, इतनी बड़ी बात है कि सामने वाले की कॉलर पकड़ ली जाये, उसकी कार का कांच फोड़ दिया जाये, उसे गालियां दी जाये? पीट-पीट कर हत्या कर दी जाये!
बात पते की..
– हमें अपने गुस्से पर कंट्रोल करना सीखना होगा. साथ ही यह समझना होगा कि गलतियां किसी से भी हो सकती हैं. आप भी कभी चूक सकते हैं.
– गाड़ी को कितना भी बड़ा नुकसान क्यों न हो जाये, इसके लिए किसी को पीटना ठीक नहीं है. इंसान की जान की कीमत इतनी सस्ती नहीं है.