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यह है खुशहाल और सफल जीवन का राज

दक्षा वैदकर भारतरत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कही गयी बातें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए हमेशा मायने रखने वाली हैं. उनकी बातों में जीवन को तपाने वाले संघर्ष की तसवीरों में रुखापन नहीं है, बल्कि जीवन की मधुरता, सुंदरता महसूस होती है, जैसे वे जीने की कला ही सिखा गये हों. वे कहते थे […]

दक्षा वैदकर

भारतरत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कही गयी बातें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए हमेशा मायने रखने वाली हैं. उनकी बातों में जीवन को तपाने वाले संघर्ष की तसवीरों में रुखापन नहीं है, बल्कि जीवन की मधुरता, सुंदरता महसूस होती है, जैसे वे जीने की कला ही सिखा गये हों.

वे कहते थे उम्र या युवावस्था का काल क्रम से कोई लेना-देना नहीं है. हम उतने ही नौजवान या बूढ़े हैं, जितना हम महसूस करते हैं. हम अपने बारे में क्या सोचते हैं, यही मायने रखता है. कुछ लोग जबरदस्ती अपने ऊपर उम्र ओढ़ लेते हैं. ऐसे लोग अपना सकारात्मक ऊर्जा को नकारात्मक बना लेते हैं और अपनी क्षमताओं को सीमित करते जाते हैं. डॉ राधाकृष्णन ने एक ऊंचे जीवन के सपने को जिंदगी का सबसे बड़ा उपहार बताया है.

वे कहते थे, एक बड़ा सपना किसी के भी जीवन की दिशा बदल सकता है. दरअसल बड़ा सपनी कभी भी लक्ष्य बन सकता है. ऐसे सपने अपने साथ एक किस्म का गुरुत्वाकर्षण बल लिए होते हैं, जब तक ये बने रहते हैं, तब तक यह बल इंसान को अपनी ओर खींचता है और इंसान उसकी तरफ बढ़ता जाता है. उन्होंने ये भी कहा था कि कष्ट से ही प्राप्ति होती है. हमेशा कष्ट से भागना या डरना नहीं चाहिए. जीवन में कष्ट ही नहीं होंगे, तो आगे बढ़ने का आनंद कैसे पायेंगे?

सीखेंगे कैसे? डॉ राधाकृष्णन के कहा कि कष्ट सरने के फलस्वरूप ही हमें बुद्धि-विवेक की प्राप्ति होती है. यदि हम किसी को कहें कि उसे और अधिक विवेक मिले, तो क्या वह लेगा? अहंकारी व्यक्ति के अलावा ज्यादातर कहेंगे कि हां, क्यों नहीं. लेकिन फिर कहें कि इसके लिए तकलीफें सहनी होंगी, तो बहुत कम लोग तैयार होंगे. लेकिन यह सत्य है कि महान व्यक्तित्व के लिए कष्ट सहने होते ही हैं.

डॉ राधाकृष्णन कहते थे कि किताब पढ़ना हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी देता है. उनकी यह बात आज के गैजेट युग में भी उतनी ही अहम है, क्योंकि मोबाइल फोन, कंप्यूटर, टैब, टीवी आदि के अत्यधिक प्रयोग ने हमारी रचनात्मकता को सीमित कर दिया है.

बात पते की..

विचार करने की क्षमता मानव को ही मिली है, इसे भूलना शुभ संकेत नहीं है. इसलिए किताबें पढ़ना जरूरी है. विचार करना जरूरी है.

कष्ट से घबराना, भागना ठीक नहीं. हम बच्चों को जितना कष्टों से बचायेंगे, वे उतने ही कमजोर होते जायेंगे. उन्हें भी थोड़े कष्ट करने दें.

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