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अब हवा सांस लेने लायक नहीं

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट दुनियाभर में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के खतरनाक प्रभाव का विश्लेषण करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल’ की संज्ञा दी है. वायु प्रदूषण से बड़ी संख्या में मौताें और बीमारियों से सबसे प्रभावित विकासशील अर्थव्यवस्थाएं हैं, लेकिन विकसित देश भी इससे बेअसर नहीं हैं […]

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट

दुनियाभर में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के खतरनाक प्रभाव का विश्लेषण करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल’ की संज्ञा दी है. वायु प्रदूषण से बड़ी संख्या में मौताें और बीमारियों से सबसे प्रभावित विकासशील अर्थव्यवस्थाएं हैं, लेकिन विकसित देश भी इससे बेअसर नहीं हैं

वैश्विक जनसंख्या का 90 प्रतिशत से अधिक भाग प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त है. यह अच्छी सूचना है कि बीते कुछ दशकों में किये गये प्रयासों से विकसित और समृद्ध शहरों में स्थिति में सुधार दिखाई पड़ रहा है, लेिकन विकासशील देशों में प्रदूषण अधिक सघन और गंभीर होता जा रहा है. ऐसे में यह आवश्यक है कि प्रदूषण रोकने तथा इसके दुष्प्रभावों के समुचित समाधान के िलए समूचा विश्व मिल-जुल कर सकारात्मक प्रयास करे, ताकि मानव जीवन के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित रखा जा सके. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में वायु प्रदूषण की समस्या के विविध पक्षों का विश्लेषण आज के इन-डेप्थ में…

दुनिया की 92 प्रतिशत

आबादी अत्यधिक वायु प्रदूषणवाले इलाकों में रहती है

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की केवल 10 प्रतिशत आबादी ही उन देशों में रहती है, जहां हवा गुणवत्ता मानकों के अनुरूप है यानी वहां की हवा स्वच्छ हैं. वहीं दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र हैं.

घर के बाहर ही नहीं, अंदर की हवा भी घातक

संगठन के मुताबिक, घर के बाहर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण हर साल लगभग तीस लाख लोगों की मौत हो जाती है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि घर के अंदर की हवा भी उतनी ही घातक है, जितनी बाहर की हवा. वर्ष 2012 में, घर के भीतर और बाहरी वायु प्रदूषण से करीब 65 लाख लोगों की मृत्यु (कुल वैश्विक मृत्यु का 11.6 प्रतिशत) हुई.

10 में से केवल एक देश में मानकों का पालन

इस संबंध में एक सच यह भी है कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में वायु प्रदूषण से ज्यादा मौतें होती हैं. आंकड़ों की बात करें, तो निम्न और मध्य आय वाले देशों में वायु प्रदूषण से 90 प्रतिशत मौत होने का रिकॉर्ड है. रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि 10 में से केवल एक देश ही वायु गुणवत्ता के मानकों का पालन करता है.

– इस रिपोर्ट को तैयार करने में आठ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के 16 वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद की. विश्लेषण के लिए तीन हजार स्थानों से धरती पर स्थित प्रदूषण मॉनीटरों, मॉडलिंग और सैटेलाइट से प्राप्त सूचनाओं को आधार बनाया गया.

– वैज्ञानिकों ने 2.5 माइक्रॉन्स आकार के छोटे तत्वों की मौजूदगी पर विचार किया, जिन्हें पीएम 2.5 कहा जाता है. ये तत्व फेफड़े में घुस जाते हैं और मौत का मुख्य कारण बनते हैं.

– ज्यादातर वायु प्रदूषण कारों, कोयले से चलनेवाले संयंत्र और कचरा जलाने की वजह से होता है, पर इसके सभी कारण मानवजनित नहीं हैं. रेगिस्तानी इलाकों में धूल-भरी आंधी से भी वायु दूषित होती है. ईरान में होनेवाली 16 हजार मौतों का एक बड़ा कारण यही है.

– दुनिया में तीन में दो मौतें दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में होती है, जिनमें चीन, वियतनाम, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और कुछ द्वीपीय देश हैं.

– ब्रुनेई, फिजी, वनुआतु जैसे प्रशांत क्षेत्रीय देशों में वायु प्रदूषण से सबसे कम मौतें होती हैं.

तीन सर्वाधिक प्रभावित देशों में भारत भी

– वायु प्रदूषण से होनेवाली मौतों के लिहाज से तीन सर्वाधिक प्रभावित देश चीन, भारत और

रूस हैं.

– वर्ष 2012 में वायु प्रदूषण के कारण होनेवाली बीमारियों से चीन में 10 लाख से अधिक, 6,21,138 भारत में और 1.40 लाख मौतें रूस में हुईं.

– ब्रिटेन में यह संख्या 16,355, फ्रांस में 10,954 और जर्मनी में 26,160 रही थी 2012 में.

– वायु प्रदूषण से ऑस्ट्रेलिया में 94 मौतें हुईं 2012 में, जबकि अमेरिका में यह संख्या 38,043 रही थी.

– भारत के अलावा दक्षिण एशिया के देशों में यह संख्या इस प्रकार रही- अफगानिस्तान (11,145),बांग्लादेश (37,449), भूटान (192), मालदीव (48), नेपाल (9,943), पाकिस्तान (59,241) और श्रीलंका (7,792).

– ब्रिक्स समूह के दो अन्य देशों- दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील- में क्रमशः 14,356 और 26,241 मौतें हुईं 2012 में.

वायु प्रदूषण से 255 अरब डॉलर के श्रम का नुकसान

इस महीने की आठ तारीख को प्रकाशित विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में दुनियाभर में 55 लाख लोग फेफड़े के कैंसर, ब्रोंकाइटिस और वायु प्रदूषण से होनेवाली अन्य बीमारियों के कारण मौत के शिकार हुए थे. यह संख्या मलेरिया या एड्स से मरनेवालों की संख्या से बहुत अधिक है.

– वर्ष 2013 में होनेवाली मौतों में से दस फीसदी का कारण यह प्रदूषण था. रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 में वायु प्रदूषण से होनेवाली बीमारियों और मौतों के कारण 255 अरब डॉलर के श्रम का नुकसान हुआ है.

– हाल के दशकों में लंदन, न्यूयॉर्क और अन्य धनी शहरों में, जहां प्रदूषण कम हुआ है, पर चीन, भारत और अन्य बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में इसके स्तर में काफी वृद्धि हुई है.

– रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग 87 फीसदी आबादी घर के बाहर की प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर है.

– विश्व बैंक ने 2009 से 2016 के बीच सभी तरह के प्रदूषणों को कम करने के लिए विभिन्न देशों को 6.5 अरब डॉलर का ऋण दिया है. रिपोर्ट में प्रदूषण कम करने या नुकसान को बचाने के उपायों का उल्लेख नहीं है. इस रिपोर्ट का उद्देश्य सरकारों को खतरे के प्रति आगाह करना है.

भारत के जीडीपी में 8.5 % का नुकसान

विश्व बैंक द्वारा वायु प्रदूषण पर किये गये एक वैश्विक अध्ययन के मुताबिक, बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होनेवाली बीमारियों और मौतों से वर्ष 2013 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को लगभग 8.5 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा था.

इस अध्ययन के तहत वायु प्रदूषण के कारण होनेवाले आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है. अध्ययन ने इस नुकसान को जानने के लिए बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होनेवाली मौतों और बीमारियों पर विचार किया और इस कारण श्रम उत्पादन और कल्याण नुकसान का मूल्यांकन किया. इस मूल्यांकन में पर्यावरण नियंत्रण की कीमत, जिससे लोगों की जान चली जाती है और इसके लाभ का भी अनुमान लगाया गया.

इस अध्ययन में यह बताया गया है कि वर्ष 2013 में वायु प्रदूषण के कारण भारत ने श्रम उत्पादन को लेकर विश्व में सबसे ज्यादा नुकसान उठाया है. वर्ष 2013 में वायु प्रदूषण के कारण भारत की श्रम उत्पादन क्षति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.84 प्रतिशत यानी 55.39 अरब डॉलर रही. भारत के बाद तकरीबन 0.28 प्रतिशत यानी 44.57 अरब डॉलर के साथ चीन का स्थान था.

55 लाख लोगों की मौत हुई प्रदूषण जनित बीमारियों से 2013 में

एक आकलन के अनुसार, 2013 में वायु प्रदूषण के कारण होनेवाली बीमारियों के चलते वैश्विक स्तर पर लगभग 55 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. वहीं प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण प्राथमिक तौर पर युवाओं और वयस्कों की मौतें हुईं, जिस कारण कामकाजी पुरुष और महिलाओं के श्रम आय का नुकसान उठाना पड़ा. वायु प्रदूषण के कारण भारत में जहां 1990 में 10 लाख लोगों की मौत हुई, वहीं 2013 में इससे 14 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

505.1 अरब डॉलर का नुकसान हुआ भारत को

जहां तक कल्याण नुकसान की बात है, तो वर्ष 2013 में वायु प्रदूषण के कारण भारत को लगभग 505.1 अरब डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7.69 प्रतिशत का नुकसान हुआ, जो कि चीन को हुए नुकसान के बाद दूसरा सबसे बड़ा नुकसान था. चीन को कल्याण नुकसान के कारण सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 9.9 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा.

नौ में से एक मौत का कारण वायु प्रदूषण

वैश्विक स्तर पर घर के भीतर और बाहर वायु प्रदूषण से होनेवाली 60 लाख मौतों के भरोसेमंद आकलन की दिशा में यह नया मॉडल बड़ा कदम है. नौ में से एक मौत का कारण यह प्रदूषण है.

ज्यादातर शहर अब वायु प्रदूषण की निगरानी कर रहे हैं. सैटेलाइट से मिलनेवाली सूचनाएं पहले से अधिक व्यापक हैं, और हम इससे संबंधित स्वास्थ्य के आकलन में अधिक सक्षम होते जा रहे हैं. इस प्रदूषण के रोकथाम के लिए त्वरित कार्रवाई जल्दी संभव नहीं है. समाधान के लिए शहरों में सस्टेनेबल यातायात, ठोस कचरे का प्रबंधन, स्वच्छ घरेलू ईंधन और चूल्हे की व्यवस्था आदि उपायों के साथ अक्षय ऊर्जा बढ़ाने तथा औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने की जरूरत है.

– डॉ मारिया नीरा, निदेशक, पब्लिक स्वास्थ्य विभाग, विश्व स्वास्थ्य संगठन.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का नया मॉडल वायु प्रदूषण के लिहाज से खतरनाक जगहों को चिह्नित कर देशों को बताता है और इसका मुकाबला करने के लिए किये जा रहे प्रयासों की प्रगति की निगरानी के लिए आधार प्रस्तुत करता है. वायु प्रदूषण से सबसे कमजोर वर्गों- महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों- के स्वास्थ्य पर बहुत गंभीर असर पड़ता है. स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि लोग अपनी पहली सांस से आखिरी सांस तक स्वच्छ वायु का सेवन करें.

– डॉ फ्लाविया बस्त्रेओ, सहायक महानिदेशक, विश्व स्वाथ्य संगठन.

प्रदूषण फैलानेवालों पर अर्थदंड लगाना बेहद जरूरी

दुनू रॉय

पर्यावरणविद्

प्रदूषित वायु से कई प्रकार के नुकसान हैं. कई बीमारियों को बढ़ाने में भी इसकी भूमिका होती है. वायु प्रदूषण हो या बाकी दूसरे प्रदूषण, इन सबको जब तक हम अर्थव्यवस्था से नहीं जोड़ेंगे, तब तक इस पर नियंत्रण कर पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि पर्यावरण को लेकर हम लोग बहुत ही लापरवाह हैं.

कहने का अर्थ है कि प्रदूषण तभी कम होगा, जब प्रदूषण करनेवाले लोगों और माध्यमों पर अर्थदंड लगाया जाये. ज्यादातर लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि किस तरह वे प्रदूषण के लिए जिम्मेवार हैं, फिर भी वे इस पर नियंत्रण की कोई पहल नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें इससे कोई मतलब ही नहीं होता है.

सब लोग यही सोचते हैं कि यह काम सरकारों का है. जबकि, वायु प्रदूषण को खत्म करने के लिए एक-एक व्यक्ति की जिम्मेवारी बनती है. सरकारें तो प्रदूषण की रोकथाम के लिए सिर्फ जागरूकता अभियान ही चला सकती हैं, उस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेवारी तो हम सबकी ही है. पर्यावरण हमसे है और हम सब पर्यावरण से हैं, इसी भाव के तहत प्रदूषण होने के चिह्नित कारणों पर नियंत्रण करने की

जरूरत है.

मरनेवालों की संख्या डब्ल्यूएचओ

के अनुमानों से अधिक हो सकती है

विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में हर साल प्रदूषित हवा से तकरीबन छह मिलियन लोग मारे जाते हैं, लेकिन मैं समझता हूं कि यह आकलन पूरी तरह से सही नहीं है, यह आंकड़ा इससे काफी ज्यादा हो सकता है. इसे ऐसे समझते हैं- सबसे पहले यह देखना होगा कि किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनी बीमारी को बढ़ाने में प्रदूषित हवा की कितनी भूमिका है.

उसके बाद यह देखना होगा कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु अस्थमा से हुई, तो यहां अध्ययन का विषय यह भी होना चाहिए कि अस्थमा की बीमारी वायु प्रदूषण से बढ़ी या किसी और कारण से. यह पता चलने से पहले वह व्यक्ति गुजर जाये कि उसकी मृत्यु की मुख्य वजह वायु प्रदूषण के कारण घातक बने अस्थमा से हुई है, तो फिर इसे वायु प्रदूषण से होनेवाली मौतों में नहीं गिना जा सकेगा. इस आधार पर देखें, तो दुनियाभर में प्रदूषित हवा से मरनेवालों की संख्या सालाना सिर्फ छह मिलियन नहीं, बल्कि इससे बहुत ज्यादा होगी.

बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता की जरूरत

डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण विभाग की प्रमुख मारिया नीरा कहती हैं कि वायु प्रदूषण ‘जन स्वास्थ्य आपातकाल’ (पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी) है, इस आपातकाल को जल्द खत्म किये जाने की जरूरत है. लेकिन, सवाल यह है कि वायु प्रदूषण के लिए दोषी किसको माना जाये? मसलन, अगर दिल्ली में चिकनगुनिया और डेंगू प्रकोप फैला हुआ है, तो इसके लिए मच्छर जिम्मेवार हैं या मच्छर को पनपने और बढ़ने देनेवाले लोग जिम्मेवार हैं.

जाहिर है, मच्छरों को न पनपने देने के लिए वे लोग दोषी हैं, जो मच्छर को पनपने के लिए वातावरण बनाते हैं. कहने का अर्थ है कि ऐसे दोषियों पर जब तक अर्थदंड नहीं लगाया जायेगा, तब तक न तो बीमारियां रुकेंगी और न वायु प्रदूषण से होनेवाले खतरे थमेंगे.

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