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प्रधानमंत्री का ईरान दौरा, मजबूत हुई दोस्ती

अपने दो दिवसीय ईरान दौरे के शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के सदियों से चले आ रहे रिश्तों को रेखांकित करते हुए उचित ही कहा कि हमारी दोस्ती इतिहास से भी पुरानी है. चाबहार बंदरगाह पर द्विपक्षीय तथा इस बंदरगाह से अफगानिस्तान तक रेल और सड़क मार्ग के विकास के लिए अफगानिस्तान […]

अपने दो दिवसीय ईरान दौरे के शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के सदियों से चले आ रहे रिश्तों को रेखांकित करते हुए उचित ही कहा कि हमारी दोस्ती इतिहास से भी पुरानी है. चाबहार बंदरगाह पर द्विपक्षीय तथा इस बंदरगाह से अफगानिस्तान तक रेल और सड़क मार्ग के विकास के लिए अफगानिस्तान के साथ त्रिपक्षीय समझौतों ने आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग की प्रक्रिया को तो गति दी ही है, पर इनका महत्व एशिया के बड़े हिस्से में कूटनीतिक संबंधों के लिहाज से भी कम नहीं है.

इससे भारत, अफगानिस्तान और ईरान के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता भी कम हो सकेगी तथा व्यापक क्षेत्रीय सहयोग के मौके पैदा होंगे. पंद्रह साल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ईरान का दौरा किया है. इस यात्रा के विभिन्न आयामों पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…

मोदी के भाषण में गालिब और हाफिज

ईरान दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों देशों की साझा सांस्कृतिक विरासत को नये आर्थिक और रणनीतिक संदर्भों में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया. इसमें उन्होंने प्रख्यात फारसी कवियों- ईरान के हाफिज और भारत के गालिब- का सहारा लिया. भारत-ईरान ‘दोस्ती’ को इतिहास से भी पुराना बताते हुए उन्होंने ईरान में अपने पहले बयान में गालिब को उद्धृत किया- ‘जनूनत गरबे नफ्से-खुद तमाम अस्त/ जे-काशी पा-बे काशान नीम गाम अस्त’ (यदि हम एकबारगी इरादा कर लें, तो काशी और काशान की दूरी आधा कदम ही रह जायेगी).

मोदी ने एक आयोजन में कथाओं के प्राचीन संग्रह ‘कलेला व दमना’ की एक दुर्लभ पाण्डुलिपि का भी विमोचन किया. उन्होंने हाफिक की मशहूर पंक्तियों में कुछ फेर-बदल कर अपनी भावनाओं को बखूबी जाहिर किया- ‘शक्कर-शिकन शवंद हमे बुलबुलाने-अजम/ जे ईन कदे-हिन्दी कि बे-तेहरान मी रसद’ (ईरान की सभी बुलबुलें भारत से तेहरान आयी ताजी मिठाई का लुत्फ लेती हैं). हाफिज की मूल पंक्तियों में बंगाल जा रहे भारतीय तोतों के मीठे फारसी शेरों के लुत्फ लेने का जिक्र था.

चाबहार बंदरगाह से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर हाफिज का एक शेर पढ़ा- ‘रोजे- हिज्रो-शबे-फुर्कते-यार आखर शुद/ जदम इन फालो-गुजश्त अख्तरो कार आखर शुद’ (जुदाई के दिन बीत गये, इंतजार की रात खत्म होनेवाली है, हमारी दोस्ती हमेशा बरकरार रहेगी).

चाबहार : जबानी जमा-खर्च तो नहीं?

डॉ वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार एवं िवदेश मामलों के जानकार

जैसी छोटी-सी चाबी बड़े से बड़े ताले को खोल देती है, वैसे ही चाबहार के बंदरगाह से पूरे दक्षिण एशिया के बंद द्वार खुल सकते हैं. ईरान के इस बंदरगाह के निर्माण के लिए भारत भारी निवेश करेगा. इसके अलावा ईरान के अंदर और ईरान से अफगानिस्तान तक सड़क बनाने का संकल्प भी भारत ने किया है. तेल और गैस निकालने, रासायनिक उर्वरक के कारखाने बनाने तथा कई अन्य परियोजनाओं में भारत एक लाख करोड़ रुपये से अधिक पूंजी लगा सकता है.

भारत ने किसी अन्य देश में न तो इतना बड़ा निवेश किया है और न ही उसका ऐसा कोई इरादा है. चाबहार पर पहले भी 2003 और 2013 में त्रिपक्षीय समझौते हो चुके हैं. उम्मीद करनी चाहिए कि यह समझौता भी उनकी तरह कागजी बन कर नहीं रह जायेगा. बीते महीनों में हम म्यांमार, अमेरिका, चीन, जापान और संयुक्त अरब अमारात के साथ भी लंबी-चौड़ी घोषणाएं कर चुके हैं, पर वे सभी अभी तक हवा में ही हैं.

प्रधानमंत्री मोदी को इस ऐतिहासिक पहल का श्रेय मिल रहा है. हालांकि इसकी शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. वाजपेयी ने अफगान-ईरान सीमांत पर जरंज-दिलाराम सड़क बनवायी थी, ताकि इस सड़क के जरिये हम अफगानिस्तान को समुद्र से जोड़ सकें. जमीन से घिरे अफगानिस्तान को ईरान से होकर समुद्र तक आने-जाने का रास्ता मिल जाये, तो पाकिस्तान पर उसकी निर्भरता खत्म हो जायेगी. भारत-अफगान व्यापार भी पाकिस्तान की मंजूरी का मोहताज है. चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान की भू-राजनीतिक स्वतंत्रता की घोषणा है.

भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने जो त्रिपक्षीय समझौता किया है, वह 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने की क्षमता रखता है. यदि भारत चाबहार-जाहिदान-हाजीगाक रेलमार्ग बनाने में कामयाब होता है, तो अकेला अफगानिस्तान सारे दक्षिण एशिया में लोहे की आपूर्ति करने में सक्षम हो जायेगा. यदि ईरान और अफगानिस्तान में भारत रेल और सड़कें बना दे, तो मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों, तुर्की और यूरोप तक जाने का रास्ता बहुत सुगम, छोटा और कम खर्चीला हो जायेगा. मुंबई से चाबहार तक समुद्री रास्ता और उसके बाद थल मार्ग!

चाबहार के खुलने से पाकिस्तान और चीन को तकलीफ जरूर होगी. दोनों देश चाबहार से 70 मील दूर ग्वादर का बंदरगाह बना रहे हैं, लेकिन मध्य एशिया और यूरोप के लिए ग्वादर से ज्यादा उपयोगी चाबहार होगा. इसके अलावा बलूचिस्तान में बन रहे ग्वादर पर स्थानीय बलूचों की टेढ़ी नजर है. जो भी हो, चाबहार के खुल जाने से सारे दक्षिण और मध्य एशियाई राष्ट्रों का एक साझा बाजार खड़ा करना आसान होगा. पाकिस्तान सहयोग करेगा, तो बहुत अच्छा, और नहीं करेगा, तो उसके बिना भी अब काम रुकेगा नहीं. बस जरूरी यही है कि अब काम शुरू हो.

भारत-ईरान समझौते

1. चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और ईरान के आर्या बनादेर के बीच समझौता.

2. चाबहार परियोजना के लिए विशेष शर्तों पर एक्जिम बैंक और ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन के बीच करार.

3. भारत और ईरान के बीच विदेश व्यापार और विदेशी निवेश बढ़ाने पर सहयोग का फ्रेमवर्क बनाने पर सहमति.

4. अल्युमिनियम के निर्माण की संभावना

तलाशने पर करार.

5. चाबहार- जाहिदान रेल नेटवर्क में सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इरकॉन के साथ 1.6 बिलियन डॉलर का करार (यह नेटवर्क भारत, ईरान और अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय समझौते के तहत यातायात गलियारे बनाने से संबंधित है).

6. भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार और ईरान की नेशनल लाइब्रेरी एंड आर्काइव्स ऑर्गेनाइजेशन के बीच सहयोग पर सहमति.

7. भारत-ईरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम को 2019 तक बढ़ाने पर सहमति.

8. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और ईरानी संस्थाओं के बीच करार.

9. दोनों देशों के बीच नीतिगत वार्ताओं पर सहमति.

10. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर करार.

मध्य-पूर्व और मध्य एशिया में भारत की पहुंच

– चाबहार हिंद महासागर से जुड़नेवाला ईरान का एकमात्र बंदरगाह है.

– इससे महज 72 मील की दूरी पर स्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन द्वारा विकसित किया जा रहा है. ग्वादर से चीन तक एक औद्योगिक गलियारा भी प्रस्तावित है, जिसके पाक-अधिकृत कश्मीर के साथ गुजरने के कारण भारत को आपत्ति है.

– चाबहार बंदरगाह के जरिये भारत पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल किये बिना मध्य एशिया, अफगानिस्तान और यूरोप तक अपनी पहुंच स्थापित कर सकता है.

– चाबहार से अफगानिस्तान तक रेल नेटवर्क है. इसे विकसित करने के लिए तीनों देशों के बीच करार हुआ है.

– इन समझौतों से उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारे के काम को भी तेजी मिलेगी, जिसे प्रारंभिक रूप से ईरान, भारत और अफगानिस्तान ने सहमति दी है.

आतंक के खिलाफ भारत-ईरान एक साथ

ईरान के धािर्मक नेता अयातुल्लाह खामनेई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत में कहा कि भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध काफी पुराने हैं़ अमेरिका के नेतृत्व में गठित आतंकवाद-रोधी गंठबंधन से खुद को दूर रखने की नीति को सही ठहराते हुए खामनेई ने कहा, ‘आतंक के खिलाफ गंभीर लड़ाई भारत और ईरान के बीच सहयोग का एक जरूरी बिंदु हो सकता है, क्योंकि कुछ पश्चिमी देश आतंकवाद के खिलाफ चलायी जा रही मुहिम के प्रति गंभीर नहीं हैं.’

प्रधानमंत्री मोदी ने भी खामनेई को भारत की चिंताओं से वाकिफ कराया और आतंक के विरुद्ध लड़ाई में साथ मिल कर काम करने का भरोसा दिया़ इस वार्ता को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है़

भारत ने संभाला ईरानी बंदरगाह

दशकों से ईरान अपने पूर्व में स्थित दक्षिण एशिया में ऊर्जा के बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में रहा है, पर राजनीतिक तनाव, अंतरराष्ट्रीय दबाव और सुस्त नौकरशाही के कारण अनेक बड़ी परियोजनाएं अधर में लटकी रही हैं. इनमें पाकिस्तान होते हुए भारत तक 1,700 मील लंबी गैस पाइपलाइन परियोजना भी है, जिसकी बनने की संभावना निरंतर क्षीण होती जा रही है. बहरहाल, दोनों देशों की जरूरतें इन समस्याओं पर भारी पड़ी हैं.

ईरान को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से मुक्त होने के बाद अपने गैस और तेल के लिए बाजार खोजना है,और भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने तथा बढ़ते मध्य वर्ग के चैन के लिए तेल चाहिए. दोनों देशों ने पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध हटाये जाने से काफी पहले से आर्थिक सहयोग के लिए प्रयास शुरू कर दिया था. उस समय ईरान कच्चे तेल का भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था. प्रतिबंध के दौरान अमेरिकी विदेश विभाग की छूट के कारण भारत ईरान से तेल खरीद सकता था, किंतु वित्तीय लेन-देन की कठिनाइयों के कारण आपूर्ति में कमी आयी. वर्ष 2014-15 के वित्त वर्ष में भारत ने ईरान से अपने कुल आयात का मात्र छह फीसदी तेल ही खरीदा, जो एक समय 17 फीसदी तक था.

अमेरिकी अधिकारियों ने भारत को सऊदी अरब से तेल खरीदने के लिए उत्साहित किया, पर ईरान ने भी भारत में तेल खोजने में सहयोग तथा ईरान के बड़े उपभोक्ता बाजार में भारत की आसान पहुंच के आकर्षण के जरिये भारत को लुभाता रहा.

और, अब प्रतिबंध हटने के बाद तेल की आपूर्ति में निरंतर वृद्धि होती जा रही है. रॉयटर की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल तक आयात प्रतिबंधों से पहले के उच्च स्तर तक पहुंचने के आसार हैं. मौजूदा करार की एक खास बात यह भी है कि भारत ईरान के 6.4 बिलियन डॉलर के भारी बकाया को चुकाने लगा है.

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