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याकूब बड़ा कब्रिस्तान में दफन, शव यात्रा निकालने, फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की नहीं थी अनुमति

नागपुर/मुंबई/नयी दिल्ली : मुंबई में वर्ष 1993 में हुए सीरियल बम विस्फोट के मामले में दोषी याकूब मेमन को गुरुवार सुबह 6:35 बजे नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दे दी गयी. इसके बाद उसका शव भाई सुलेमान और रिश्ते के भाई उस्मान को शव सौंपा गया. शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दफनाने के […]

नागपुर/मुंबई/नयी दिल्ली : मुंबई में वर्ष 1993 में हुए सीरियल बम विस्फोट के मामले में दोषी याकूब मेमन को गुरुवार सुबह 6:35 बजे नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दे दी गयी. इसके बाद उसका शव भाई सुलेमान और रिश्ते के भाई उस्मान को शव सौंपा गया. शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दफनाने के लिए विमान से मुंबई ले जाया गया.
मुंबई एयरपोर्ट से शव को याकूब के घर माहिम ले जाया गया, जहां घर की महिलाएं और अन्य सदस्य परंपरा अनुसार उसके अंतिम दर्शन किये. इसके बाद शव को मरीन लाइंस स्थित बड़ा कब्रिस्तान ले जाया गया, जहां गुरुवार शाम 5.15 बजे ‘नमाज-ए-जनाजा’ पढ़ने के बाद दफनाया गया.
यह मेमन का पुश्तैनी कब्रिस्तान है. एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि याकूब के पिता अब्दुल रज्जाक और उसके परिवार के कुछ अन्य सदस्यों को भी मरीन लाइंस स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था, इसलिए याकूब के परिवार ने उसे वहीं दफनाये जाने की इच्छा जतायी थी. इस दौरान मुंबई पुलिस ने शव यात्रा निकालने, शव की फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं दी थी. वहीं, मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया याकूब मेमन के घर भी गये थे.
भाई ने मांगा था शव
याकूब के भाई सुलेमान ने बुधवार शाम नागपुर सेंट्रल जेल अधिकारियों को एक निवेदन पत्र देकर अनुरोध किया था कि उसका शव उसके परिवार को सौंपा जाये. इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया और इसी अनुसार शव को एक ताबूत में रख कर सौंप दिया गया.
जेल अधीक्षक की निगरानी में फांसी
नागपुर सेंट्रल जेल से कुछ दूरी पर बड़ी संख्या में लोग एकत्र थे. याकूब को जेल अधीक्षक योगेश देसाई की निगरानी में ‘फांसी यार्ड’ में फांसी दी गयी. याकूब के शव को जब नीचे उतारा गया, तो उसे फांसी दिये जाने के करीब आधे घंटे बाद चिकित्सकों के एक दल ने मृत घोषित किया. नागपुर की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एम एम देशपांडे फांसी यार्ड में मौजूद थीं.
कसाब को फांसी देनेवाले जल्लाद ने ही याकूब को दी फांसी
मुंबई बम विस्फोटों के मामले में फांसी की सजा पानेवाले याकूब को यरवदा जेल के उसी कांस्टेबल ने फांसी पर लटकाया, जिसने तीन साल पहले 26/11 मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब को फंदे पर लटकाया था. सुरक्षा कारणों से इसकी पहचान को गुप्त रखा गया है. वह यरवदा जेल से 20 पुलिसकर्मियों की एक टीम संग नागपुर आया था.
चप्पे-चप्पे पर थी पुलिस की नजर
मुंबई पुलिस ने माहिम और अन्य संवेदनशील इलाकों समेत मुंबई में सुरक्षा-व्यवस्था के कड़े इंतजाम किये थे. पूरे शहर में करीब 35,000 से अधिक सुरक्षा बल तैनात थे. माहिम और अन्य क्षेत्रों से करीब 405 से अधिक लोगों को एहतियातन हिरासत में रखा गया.
26/11 मुंबई हमलों के बाद गठित पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया टीमों को अल हुसैनी इमारत और मरीन लाइंस समेत कुछ स्थानों पर तैनात किया गया था. इधर, नागपुर सेंट्रल जेल में और इसके आस-पास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये थे. त्वरित प्रतिक्रिया दलों (क्यूटीआर) को तैनात किया गया था. अधिकारियों ने बुधवार शाम सीआरपीसी की धारा 144 भी लगायी थी.
उत्सव का निर्मम समय!
अनुराग चतुर्वेदी
याकूब मेमन को नागपुर में दी गयी फांसी ने भारत के लोकतंत्र और उसके स्तंभों की परीक्षा ले ली, इस परीक्षा में वे पास हुए या नहीं यह समय बतायेगा, पर क्या यह कोई उत्सव था? याकूब मेमन को भारतीय कानून के तहत फांसी की सजा दी गयी. भारत के संविधान में फांसी की सजा का प्रावधान है. इसलिए, मानव अधिकारों की बात करने वाले और मृत्यु दंड का विरोध करनेवाले समूहों की बात को थोड़ा दरकिनार किया जाये तो भी याकूब मेमन को दी गयी फांसी ने कार्यपालिका, न्यायपालिका, संसद और मीडिया सभी को परीक्षा से गुजरने पर मजबूर कर दिया.
मुंबई के 1993 में हुए बंब विस्फोट को माहीम के लेडी जमशेद जी रोड के निवासी टाइगर मेमन और उसके परिवार के सदस्यों ने दाऊद इब्राहिम के साथ मिल कर अंजाम दिया था. ये बम विस्फोट दहशत फैलाने और बदले की भावना के कारण किये गये और पहली बार नागरिकों ने सेना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले आरडीएक्स का प्रयोग किया और एके -47 जैसे घातक हथियार, हथगोले फेंकते आतंकवादियों को देखा.
मुंबई के बम विस्फोटों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, यह संशय, जल्द ही विश्वास में बदल गया क्योंकि वर्ली में पासपोर्ट कार्यालय के पास सेंचुरी बाजार में हुए ब्लास्ट के बाद एक मारुति-800 मिली और दादर और जवेरी बाजार में स्कूटर मिले, जिनका पता मेमन बंधुओं के परिवार तक पहुंचाता था और जब तक पुलिस मेमन बंधुओं तक पहुंचती, वे दुबई पहुंच चुके थे, पाकिस्तान में भी उन्हें कई दिन तक रखा गया. पासपोर्ट बनवाया गया और वहां की गुप्तचर संस्थाएं उनकी देखभाल करती थी. इन बम विस्फोटों ने मुंबई को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया. असुरक्षा, समाज में दरार और तस्करों और असामाजिक तत्वों को अपनी सुरक्षा और राजनीति के लिए एक बड़ा तबका देखने लगा.
मुंबई के बम विस्फोटों की एक न भूलनेवाली छवि एयर इंडिया के दफ्तर के बाहर खून से सने एक प्रौढ़ की थी, जिसका कोई अपराध नहीं था इन बम विस्फोटों ने राजनीतिक नेतृत्व को चुनौती दी और राजनेताओं और अपराधी तत्वों के गंठजोड़ पर निगाह डाली. तब तक राजनीति का अपराधीकरण महाराष्ट्र और मुंबई में हो चुका था. मगर, पहली बार इन बम विस्फोटों के बाद दाऊद इब्राहिम राजनेताओं, पुलिस-कस्टम अधिकारियों के लिए अछूत बन गया. टाइगर मेमन कोई अल्पसंख्यक समाज का नेता नहीं था, वह मूलत: तस्कर था और बांद्रा से माहीम के बीच सक्रिय था. मुंबई बम विस्फोट का एक कारण बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद हुए दंगे थे. जिसकी न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने एक आयोग द्वारा जांच की और दंगों के लिए शिवसेना को दोषी माना था,
यह अलग बात है कि तबकी भाजपा-शिवसेना सरकार ने इस रपट को स्वीकार नहीं किया और लंबे समय तक उसे विधानसभा में पेश भी नहीं होने दिया पर सेना-भाजपा के शासन के बाद 10 वर्ष तक शासन करने वाली कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार ने भी बंबई (तब मुंबई नाम आधिकारिक नहीं हुआ था) दंगों पर शुतुरमुर्ग जैसा ही आचरण किया और किसी दंगाई को सजा नहीं मिली. मुंबई के दंगों में माहीम, जोगेश्वरी जैसे मुसलिम बहुल इलाकों में जान-माल का काफी नुकसान हुआ. राधाबाई चाल में आगजनी के बाद पूरा मुंबई जल उठा था. पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. दंगा दिसंबर और बाद में जनवरी में भी हुआ तब के मुख्यमंत्री शरद पवार ने सेना को बुलाने में काफी देर की, जिसका आयोग ने भी संज्ञान लिया.
जब संवैधानिक संस्थाएं असफल हो गयी तब समाज को बांटने वाली शक्तियां ताकतवर हो गयीं. महाराष्ट्र में ऐसा विभाजन पहले कभी नहीं देखा गया था. दैनिक अखबार जहर उगलने लगे और और टीवी की गैर हाजिरी के चलते दैनिक अखबार ही सूचना के साधन बन गये. शिवसेना ने मराठी और हिंदी में सामना का प्रकाशन भी तब ही शुरू किया. मराठी सामना सवेरे दैनिक के रूप में और दोपहर का सामना, संध्याकालीन दैनिक बना. इन दोनों समाचारपत्रों की भूमिका की न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने आलोचना की.
भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र है, और न्यायधीशों की न्यायप्रियता भी न्याय में विश्वास पैदा करती है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यरात्रि के बाद याकूब मेमन को चौदह दिन और जीने की अपील खारिज कर दी. कई तकनीकी मुद्दों पर बहसें हुई. मृत्यु का वारंट, क्यूरेटिव पिटीशन और पूर्व रॉ के अधिकारी रमन के अप्रकाशित लेख के बाद याकूब मेमन का पक्ष और न्याय चाहने लगा. यह पंजाब उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बेदी ही थे. जिन्हें इस लेख को पढ़ने के बाद नींद नहीं आयी और उन्हें लगा कि सर्वोच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेकर उनकी सजा फांसी से आजीवन कारावास में बदलनी चाहिए.
यह भारत की खासियत है कि यहां पर न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण और न्यायमूर्ति बेदी भी है, जो भारत की आत्मा की रक्षा करते हैं, लेकिन अब कई बार लगने लगा है कि ‘सामूहिक चेतना’ के आधार पर या ‘बहुमत चाहता है’ के आधार पर निर्णय होने लगे. जब सर्वोच्च न्यायालय में मनुस्मृति का जिक्र होता है तो बाबा साहेब आंबेडकर, जिन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया, क्या उनसे दूर जाना नहीं है? यह सार्वजनिक रूप से जाना हुआ तथ्य है कि बाबा साहेब ने मनुस्मृति को अस्वीकार कर दिया था और उसकी होली तक जलायी थी. भारतीय न्याय व्यवस्था ने याकूब मेमन को सभी मौके दिये. किंतु अंत के सप्ताह में याकूब मेमन का मसला न्याय के लिए महत्वपूर्ण हो गया. उसने प्रक्रिया नहीं छोड़ी और यह लगने दिया कि दोषी को पूरी सुनवाई मिले.
सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की सजा देने से इनकार कर दिया. राजीव गांधी के 42 लोगों की भी मौत हुई थी, क्या वह आतंकवादी कार्यवाही नहीं थी? फिर उन्हें फांसी क्यों नहीं, ये कुछ ऐसे सवाल है, जो प्रासंगिक हो गये हैं और न्यायपालिका से उत्तर चाह रहे हैं?
भारत का टेलीविजन कई प्रसंगों में अपनी औसत समझ खो जाता है, मृत्यु, हत्याएं, आतंकवादी घटनाएं पूर्ण फोकस पाकर बहक जाती है. प्रजातंत्र तब ही परिपक्व होगा जब इस तरह के मौकों पर वह विवेक नहीं खोये, फांसी किसी भी सभ्य समाज के लिए अच्छी प्रथा नहीं है, पर इस फांसी को बदले के रूप में मानने, उससे परपीड़न सुख लेने वाले, फांसी का विरोध करने वालों को आभासी और वास्तविक दुनिया में देशद्रोही कहने वाले एक बीमार मानसिकता के हैं. याकूब मेमन की फांसी राजनीतिक प्रश्न भी खड़े कर सकती है. हैदराबाद के नेता और मुंबई में एक और औरंगाबाद में एक विधायक के प्रतिनिधि ओवैसी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
उधर दक्षिणपंथी चरमपंथी नेता भी यदि भाषा को नहीं बदलते हैं तो मुंबई पर याकूब मेमन की फांसी की काली छाया पड़ सकती है. असल में मुंबई के बम धमाके टाइगर, अयूब मेमन और दाऊद इब्राहिम की कारस्तानी थी, पर वे अभी भी मुंबई पुलिस की गिरफ्त से दूर है. मुंबई बम धमाके दो दशक पुराने हो गये हैं. पर वे अभी भी मुंबई पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं. मुंबई बम धमाके दो दशक पुराने हो गये हैं, पर मुंबई दंगे और बम धमाके इस महानगर की स्मृति में एक बुरे समय की तरह अटक गये हैं. याकूब मेमन भी इसी बुरे समय की उपज थी.
गुरुवार तड़के 4:50 बजे तक चली सुनवाई
सीजेआइ के घर पहुंचे वकील, इतिहास में पहली बार देर रात खुला सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली : देश के इतिहास में पहली बार देर रात को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. वर्ष 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी को टालने के लिए उसके वकीलों ने आधी रात को आखिरी कोशिश की और तत्काल सुनवाई के लिए एक याचिका ले कर भारत के प्रधान न्यायमूर्ति एचएल दत्तू के आवास पर पहुंचे.
वकील प्रधान न्यायाधीश के आवास से सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपक मिश्र के तुगलक रोड स्थित आवास पर पहुंचे और वहां से वह लोग कुछ किमी दूर स्थित सुप्रीम कोर्ट गये. वकीलों ने याकूब की फांसी पर 14 दिन की रोक लगाने की मांग को लेकर रात दो बजे सुप्रीम कोर्ट खुलवाया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के अदालत कक्ष चार में अप्रत्याशित तरीके से गुरुवार तड़के 3:20 बजे सुनवाई शुरू हुई, जो सुबह 4:50 बजे तक चली. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तड़के कभी नहीं खुला था.
इससे पहले
रात 12 बजे लगी थी अदालत और बदल गया था फांसी का फैसला
जबलपुर. पांच बेटियों की हत्यारे मगनलाल को सेंट्रल जेल में फांसी दी जानी थी. इसके लिए 8 अगस्त, 2013 का दिन मुकर्रर किया गया था. सात अगस्त की रात बारह बजे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अदालत लगी. कई वरिष्ठ अधिवक्ता जुटे. करीब एक घंटे तक चली बहस के बाद रात 12:40 बजे पर मगनलाल को फांसी दिये जाने का फैसला अगली सुनवाई तक के लिए टाल दिया गया था.
31 सालों में दी गयी पहली फांसी
याकूब मेमन को फांसी पर लटकाने के साथ नागपुर जेल में पिछले 31 सालों में पहली बार किसी दोषी को फांसी दी गयी. इससे पहले 1984 में अमरावती के रहनेवाले वानखेड़े भाइयों को नागपुर जेल में फांसी दी गयी थी. उन्हें हत्या के एक मामले में दोषी पाया गया था.
इंदिरा गांधी की हत्या के मामले में सतवंत सिंह और केहर सिंह को छह जनवरी, 1989 को फांसी दी गयी थी. बहरहाल, आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि भारत में आजादी के बाद से करीब 50 दोषियों को मौत की सजा दी गयी है. मगर, मानवाधिकार समूहों ने दावा किया है कि पिछले छह दशकों में फांसी पाने वाले दोषियों की संख्या ज्यादा है. कानूनी इतिहासकारों के मुताबिक, भारतीय दंड संहिता में मौत की सजा को आजादी से पहले 1861 में शामिल किया गया.
सुनवाई के विरोध में प्रदर्शन
इससे पहले रात साढ़े 12 बजे वकील प्रशांत भूषण सहित 12 वकील चीफ जस्टिस एचएल दत्तू के घर गये और सुनवाई की अपील की. इस पर जस्टिस दत्तू ने जज दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली बेंच को सुनवाई रात में ही करने को कहा. जस्टिस मिश्र ने अपने घर के बजाय सुप्रीम कोर्ट की खुली अदालत में सुनवाई करने का निर्णय लिया. सुनवाई होने से पहले कुछ लोगों ने सुनवाई के विरोध में कोर्ट के बाहर प्रदर्शन भी किया.
सोशल मीडिया पर थी महाराष्ट्र सरकार की नजर महाराष्ट्र सरकार ने याकूब मेमन को फांसी दिये जाने के सिलसिले में कानून व्यवस्था की स्थिति पर करीब से नजर रखने के साथ ही इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सक्रियता के साथ निगरानी रखी, ताकि ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म पर नफरत भरे संदेश नहीं फैलें.
दस वर्ष में चौथी फांसी
साथ ही पिछले दस सालों में देश में फांसी दिये जाने का यह चौथा मामला है. वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले के मामले में दोषी पाये गये मोहम्मद अफजल गुरु को नौ फरवरी, 2013 को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया गया था. 21 नवंबर, 2012 को 2008 के मुंबई आतंकी हमले के दोषी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को पुणो की यरवदा जेल में फांसी दी गयी थी. 14 अगस्त, 2004 को पश्चिम बंगाल के अलीपुर केंद्रीय कारागार में धनंजय चटर्जी को उसके 42वें जन्मदिन पर फांसी पर लटकाया गया था. उसे एक किशोरी के बलात्कार और हत्या का दोषी पाया गया था.
पिता रज्जाक मुंबई लीग से क्रिकेट खेलते थे याकूब के पिता अब्दुल रज्जाक बम धमाके के आरोपी रहे.1994 में गिरफ्तार किया गया. बाद में जमानत पर छूटे. 2001 में 73 साल की उम्र में रज्जाक की मौत हो गयी. रज्जाक क्रिकेट में गहरी दिलचस्पी रखते थे और वह खुद मुंबई लीग में खिलाड़ी भी रहे थे. वह ‘टाइगर’ के नाम से चर्चित थे.
याकूब की मां हनीफा मेमन उकसाने की आरोपी : हनीफा मेमन के खिलाफ उसके बेटे टाइगर और उसके दोस्तों के आतंकी कृत्यों को उकसाने का मामला दर्ज किया गया था. उन्हें भी कुछ साल जेल में रहने के बाद जमानत पर छोड़ दिया गया था. बाद में टाडा अदालत ने उन्हें साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया था. अभी वह जीवित है.
टाइगर का बाबरी मसजिद का बदला लेना था मकसद : याकूब का भाई मुश्ताक मेमन उर्फ टाइगर कथित तौर पर एक तस्कर था और भारत में दाऊद के कारोबार का प्रतिनिधि था. वह विस्फोटों से एक दिन पहले दुबई चला गया था और वहां से फिर पाकिस्तान चला गया था. ऐसा माना जाता है कि वह पाकिस्तान में दाउद के साथ छिपा हुआ है. वह भारत के सबसे वांछित अपराधियों में से एक है. उसने बाबरी मसजिद गिरायी जाने के प्रतिशोध में धमाकों की साजिश रची थी.
टाइगर संग कराची में बस गया : अय्यूब मेमन सबसे बड़ा भाई. माना जाता है कि वह अपनी पत्नी रेशमा और भाई टाइगर मेमन के साथ कराची में बस गया है. बम कांड में यह लोग भी षड्यंत्र रचने के आरोपी हैं.
घर पर बनी थी योजना : याकूब का भाई एसा मेमन पर उकसाने का आरोप. धमाके की मीटिंग माहिम स्थित इसी के फ्लैट में हुई. औरेगाबाद जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा है.
उकसाने की आरोपी थी : याकूब की पत्नी राहीन मेमन पर पति याकूब मेमन को मुंबई धमाकों के लिए उकसाने का आरोप था. कोर्ट से सबूत के अभाव में 2006 में जमानत मिली.
कार में मिली एके-56 : सुलेमान की पत्नी रूबीना को टाडाअदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनायी, क्योंकि बम विस्फोटों में जिस मारुति वैन का इस्तेमाल किया गया था, वह उसके नाम पर दर्ज थी. यह वैन वर्ली में लावारिस हालत में मिली थी और इसके अंदर एके-56 राइफलें और हथगोले बरामद किये गये थे.
फांसी पर प्रतिक्रिया
न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाने की कोशिश की जा रही है. यह खेदजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट ने रात तीन बजे सुनवाई की, जो कि अभूतपूर्व थी. इस सुनवाई में न्यायालय ने उसी फांसी पर रोक लगाने के लिए उसके वकीलों द्वारा किये जा रहे अंतिम प्रयासों को भी खारिज कर दिया.
रवि शंकर प्रसाद, केंद्रीय मंत्री
महान देश की महान न्याय व्यवस्था को सलाम, जिसने फिर से यह सिद्ध किया कि न्याय के द्वार हर पहर हर किसी के लिए खुले हैं.
कुमार विश्वास, आम आदमी पार्टी
आतंकवाद देश की शांति के खिलाफ है.इसके लिए जीवनदान मांगना सही नहीं है. याकूब की फांसी के मामले में कानून, न्यायपालिका, कार्यकारिणी और यहां तक कि सामाजिक व्यवस्था को भी कुछ ज्यादा ही लंबा खींच लिया गया. क्या हमें इससे कुछ सीखना चाहिए?
किरण बेदी, पूर्व आइपीएस अधिकारी
क्या अब मृत्यु दंड पर सभ्य तरीके से बहस की जा सकती है? या फिर हमें एक हाई प्रोफाइल केस का इंतजार करना होगा?
गुल पनाग, आम आदमी पार्टी
अगर राहुल और सोनिया गांधी, दिग्विजय के विचार से सहमत नहीं हैं तो उन्हें एक औपचारिक प्रेस स्टेटमेंट के जरिये अपने पार्टी सदस्य के इस वक्तव्य का खंडन करना चाहिए. वरना देश, इस मामले पर की गयी दिग्विजय की टिप्पणी को ही कांग्रेस पार्टी का नजरिया मानेगा.
जीवीएल नरिसम्हा राव, भाजपा
एक मैसेज अच्छा गया है. पाकिस्तान ऑपरेटेड जो आतंकी हैं, उन्हें मैसेज गया है. जनता की भावना को न्याय मिला है. देश कानून से चलेगा, देश जनभावना से चलेगा. कुछ ऐसे लोग आखिर तक कर रहे थे मर्सी पिटीशन. ऐसे लोगों के कारण ही कसाब घुसता है, मेमन पैदा होता है. एक काला अध्याय समाप्त हुआ है. अब कोई सवाल खड़ा नहीं होना चाहिए.
संजय राऊत, शिवसेना नेता
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौत की सजा इस तरह के हर मामलों में हो. बाबू बजरंगी, माया कोडनानी, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित व स्वामी असीमानंद को भी मौत की सजा दी जानी चाहिए. बजरंगी और कोडनानी गुजरात दंगों में आरोपी हैं, जबकि कर्नल पुरोहित और स्वामी असीमानंद मालेगांव विस्फोटों में आरोपी हैं.
असदुद्दीन ओवैसी, एआइएमआइएम नेता

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