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दिमाग में चल रहे विचारों को टेक्स्ट में बदलेगा माइंड रीडिंग कंप्यूटर

वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे इंसान के दिमाग में चल रहे विचारों को समझते हुए उसे वीडियो में तब्दील किया जा सकता है और ब्रेन-टू-टेक्स्ट सिस्टम के तहत उसे लिखित शब्दों में भी तब्दील किया जा सकता है. कैसे विकसित हुई है यह तकनीक, किस तरह से काम करता है इसका सिस्टम, […]

वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे इंसान के दिमाग में चल रहे विचारों को समझते हुए उसे वीडियो में तब्दील किया जा सकता है और ब्रेन-टू-टेक्स्ट सिस्टम के तहत उसे लिखित शब्दों में भी तब्दील किया जा सकता है. कैसे विकसित हुई है यह तकनीक, किस तरह से काम करता है इसका सिस्टम, और क्या हो सकते हैं इसके खतरे समेत इससे जुड़े जरूरी पहलुओं को बता रहा है नॉलेज..
राजेश ठाकुर
दिल्ली
आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है कि तकनीक आपकी सोच को पढ़ कर उसे वीडियो में ढाल सकता है. यहां तक कि जब आप ड्राइव कर रहे होंगे, वह आपके मूवमेंट को भी पकड़ लेगा कि आप किधर मुड़नेवाले हैं. दरअसल, वैज्ञानिकों ने ब्रेन-टू-टेक्स्ट सिस्टम के जरिये दिमागी गतिविधियों को शब्दों में ढालने की तकनीक का ईजाद कर लिया है. हाल में न्यूरोसाइंस की एक स्टडी के दौरान सात मरीजों के दिमाग में इलेक्ट्रोड सीट्स को डाला गया, तो उसमें से एक ऐसा न्यूरल डेटा पाया गया, जिससे मरीज जोर-जोर से कुछ पढ़ने लगा.
सभी मरीज कंप्यूटर के बताये फॉर्मूले के मुताबिक बोलने लगे और बात सीखने की प्रक्रिया से जुड़ने लगे. ब्रेन सेल्स से कुछ आवाज आने लगी. मतलब साफ है ब्रेन-टू-टेक्स्ट विधि के जरिये पढ़ा जा सकता है कि ब्रेन सेल्स में क्या चल रहा है, और अमूमन 75 प्रतिशत अनुमान सही साबित हुए हैं. जब 75 प्रतिशत अनुमान सही साबित हो रहा है, तो फिर 100 प्रतिशत अनुमान लगाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है, क्योंकि शेष 25 प्रतिशत अनुमान तो शब्दों को जोड़ कर भी लगाया जा सकता है.
ब्रेन-टू-टेक्स्ट सिस्टम
अगर कोई आपके दिमाग का 50 से 60 प्रतिशत भी अनुमान लगा ले, तो आप उसके द्वारा मुहैया करायी गयी जानकारी का लगभग सही-सही अनुमान लगा सकते हैं. इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है कि आपके दिमाग में जो चल रहा है, उसे इकट्ठा किया जाये. ब्रेन-टू-टेक्स्ट सिस्टम के जरिये हम दिमाग से न्यूरल एक्टिविटी को सिर्फ धुंधले फॉर्म में ही हासिल कर सकते हैं.
इस प्रक्रि या के दौरान मरीज के दिमाग में इपिलेप्सी प्रोसिजर चल रहा होता है, जिसमें इलेक्ट्रोड ग्रिड दिमाग के ऊपरी हिस्से में रहता है, जहां से वह दिमाग में चलनेवाली हर गतिविधि को कैच करता है. हालांकि, इस बारे में अब तक सीमित स्टडी हुई है. इपिलेप्सी ट्रीटमेंट के दौरान दिमाग में डिवाइस कहां लगाना है, इसका पता लगाना बाकी है.
हर व्यक्ति अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है, इसलिए जरूरी है कि अलग-अलग व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है, उसे जानने की बेहतर कोशिश की जाये. ऐसे में हर व्यक्ति के लिए खास ब्रेन-टू-टेक्स्ट डिवाइस इजाद करना खासा मुश्किल काम है.
हालांकि, यह तकनीक दिमागी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए ज्यादा उपयोगी हो सकती है. जो लोग बोलने और चलने में असमर्थ हो गये हों, उनके लिए यह प्रक्रि या वरदान से कम नहीं है. अगर कोई मरीज ब्रेन-टू-टेक्स्ट प्रक्रि या से गुजर रहा हो, तो उस दौरान कंप्यूटर स्क्र ीन पर शब्द आ जाते हैं, जिसे आप आसानी से पढ़ सकते हैं.
ब्रेन एक्टिविटी स्कैनिंग
इस नयी तकनीक के जरिये दिमाग को पढ़ने की दिशा में वैज्ञानिकों ने एक अहम उपलब्धि हासिल कर ली है. वह ऐसा कंप्यूटर बनाने में कामयाब हुए हैं, जो ब्रेन की एक्टिविटी स्कैन करके बता सकेगा कि हम क्या सोच रहे हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह कंप्यूटर टेलीपैथी के कंसेप्ट को साकार रूप देने में महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा. विचारों के जरिये एक से दूसरे ब्रेन को मेसेज भेजने की तकनीक को टेलीपैथी नाम दिया गया है. दूसरे शब्दों में कहें, तो हम सिर्फ सोचें और सामनेवाला समझ जाये कि हम उससे क्या कहना चाह रहे हैं.
इस नये शोधकार्य को अंजाम दिया है यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रो एलीनर मैग्यूरी ने. उन्होंने पिछले साल इसी तकनीक से कंप्यूटर सिम्युलेटेड रूम में एक व्यक्ति के मूवमेंट्स को ट्रैक करने में कामयाबी हासिल की थी. नया ईजाद किया गया कंप्यूटर हमारी स्मृतियों के पैटर्न को पढ़ सकेगा. यह दिमाग के अंदर यादों के समंदर में गोता लगा कर अलग-अलग किस्म की मेमोरी में फर्क जान सकेगा.
स्कैन कर पढ़ें दिमाग?
दिमाग में चल रही सोच और इमेज बेहद निजी होती है. विज्ञान ने इसे बदलकर रख दिया है. रिसर्चरों ने दिमागी गतिविधियों के आधार पर सोच को समझने की कला का ईजाद किया है.
हालांकि, अभी यह आरंभिक स्टेज पर है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में हम दूसरे व्यक्ति के दिमाग में चल रही बातों को डिवाइस के जरिये जान सकेंगे. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जैक गैलेंट का मानना है कि अगले 50 सालों में माइंड रीडिंग सामान्य चीज हो जायेगी. इस संबंध में गूगल हैट ज्यादा लोकप्रिय हो सकता है.
क्या करना होगा
माइंड रीडिंग की प्रक्रि या अब तक सीमित तौर पर है. इस प्रक्रि या में शामिल होने के लिए अच्छे मैथमेटिकल मॉडल्स ऑफ ब्रेन की जरूरत पड़ती है. साथ ही हाइ-स्पीड कंप्यूटिंग सिस्टम चाहिए. इससे भी बड़ी चुनौती है कि आखिर दिमागी गतिविधियों को कैसे इकट्ठा किया जाये? वैज्ञानिक इइजी (इलेक्ट्रो इनसेपेलोग्राफी) के जरिये इलेक्ट्रिकल गतिविधियों को पकड़ लेते हैं.
साथ ही एफएमआरआइ का भी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दिमाग के अंदर क्या चल रहा है, उसे मापने के लिए यह कच्ची विधि है. दरअसल, इइजी दो आयामों वाला सिगनल है, जिसकी सीमाएं हैं और एफएमआरआइ दिमाग की सारी गतिविधियों पर नजर रखती है. यह आपको किसी खास हिस्से के बारे में जानकारी नहीं दे सकता है. दिमाग में 10 लाख से ज्यादा तरह की जानकारी एक साथ निकलती है. इसलिए बेहतर तकनीक के जरिये ही हम कुछ कर सकते हैं.
जब सर्जन दिमाग के किसी खास हिस्से को काटता है, तो उसे पता होता है कि किसे अवॉइड करना है और किसे टच करना है. माइंड रीडिंग में अभी इस मुकाम तक नहीं पहुंचा जा सका है. सीमित संभावनाओं के बावजूद वैज्ञानिक असाधारण परिणाम पर पहुंच गये हैं.
शॉर्ट टर्म मेमोरी में अहम रोल
नयी रिसर्च में हमारे ब्रेन के हिप्पोकैंपस नाम के हिस्से की गतिविधियों का आकलन किया गया है. ब्रेन का यह एरिया शॉर्ट टर्म मेमोरी में अहम रोल निभाता है. इसके लिए 10 वॉलंटियर्स पर प्रयोग किया गया. इन लोगों को 37 सेकेंड्स की फिल्में दिखायी गयी. वॉलंटियर्स को ऐसे रूम में रखा गया, जिसमें एमआरआइ (मैग्नेटिक रिसॉनैंस इमेजिंग) स्कैनर लगा था. उनसे कहा गया कि जो फिल्में उन्होंने देखी हैं, उन्हें याद करें फिर एक-एक करके रिकॉल करें.
याद करने और रिकॉल करने की इस प्रक्रिया के दौरान ब्रेन में खून के बहाव के रूप में जो एक्टिविटी हुई, उसे एमआरआइ के जरिये नापा गया. इस प्रयोग से मिले डेटा की स्टडी करके वैज्ञानिक यह पता लगाने में कामयाब रहे कि वॉलंटियर ने कौन सी फिल्म देखी थी. वैज्ञानिक सटीक नतीजे देख कर हैरान रह गये. प्रो एलीनर ने बताया कि पिछले एक्सपेरिमेंट में हमने बेसिक मेमोरीज पर रिसर्च की थी. एपिसोडिक मेमोरीज का अध्ययन बहुत ही दिलचस्प रहा. स्मृतियों का यह हिस्सा रोजमर्रा की यादों से संबंध रखता है.
इसमें व्यक्तिगत जानकारियां भी होती हैं, जैसे हम कहां हैं, क्या कर रहे हैं और कैसा महसूस कर रहे हैं आदि. प्रो एलीनर का कहना है कि हमने देखा था कि ब्रेन का हिप्पोकैंपस हिस्सा निश्चित रूप से हमारी यादों का प्रतिनिधित्व करता है. नयी रिसर्च में हमने पता लगाया कि ये स्मृतियां कहां रहती हैं. हमें यह भी समझने का मौका मिला कि मेमोरी किस तरह स्टोर होती हैं और वक्त के साथ कैसे बदलती हैं.
ऐसे हुआ रिसर्च
पहले फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग (एफएमआरआइ) का एक्सपेरिमेंट किया गया था, लेकिन हाल ही में मनोचिकित्सकों की एक टीम ने मानवीय दिमाग को पढ़ने वाले यंत्र का पुनर्निर्माण कर लिया है. हालांकि, यह कतई आसान काम नहीं है. इंसान का दिमाग जानकारी इकट्ठा करने के लिए कई चीजों का सहारा लेता है और अलग-अलग दिमाग अलग तरीके से काम करता है. यही कारण है कि किसी खास दिमाग के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बड़े रिसर्च की जरूरत पड़ती है.
एक रिसर्च के दौरान जब 300 दिमागों की एक साथ एफएमआरआइ की गयी, तो मुख्यत: छह बातों को कॉमन तौर पर देखा गया. वैज्ञानिकों ने सभी जानकारियों को इकट्ठा किया और उससे जो निचोड़ निकला, उसके आधार पर एक थ्योरी डेवलप की गयी, ताकि पता लग सके कि आखिर दिमाग कैसे काम करता है. इस तकनीक के लिए भविष्य में बेहतर संभावनाएं हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह तकनीक मंदबुद्धि बच्चे, कोमा पेसेंट और अल्जाइमर जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को काफी मदद पहुंचा सकती है.
क्या साइंटिस्ट आपका दिमाग पढ़ सकते हैं?
दो दिमाग एक-दूसरे से कैसे जुड सकते हैं, वैज्ञानिक इस पर भी काम कर रहे हैं. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों को इस दौरान कुछ रोचक जानकारी मिली है. इस बारे में वैज्ञानिकों में दो तरह के मत हैं. कुछ उत्साहित हैं, तो कुछ का मानना है कि इसकी प्रक्रि या इतना जटिल है कि समाज में इसका सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिलेगा.
भविष्य क्या है?
नवीनता से परे जाकर हम सोचें, तो यह बात जरूर है कि रिसर्च के लिए कई और विषय अभी हैं. फिर भी यही उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस तरह से व्हीलचेयर्स, कृत्रिम अंग जैसे डिवाइस ने मानवीय जीवन में सहयोग किया है, माइंड रीडिंग भी वैसा ही हथियार साबित होगा. वैज्ञानिकों ने फिलहाल आंशिक सफलता ही हासिल की है, लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिक इसे टुकड़ों में करके इसके अलग-अलग विषयों के बारे में रिसर्च कर रहे हैं.
कोई ग्रुप दिमाग की भाषा पर रिसर्च कर रहा है, तो कोई दिमाग के अंदर चौकसी और आश्चर्य जैसे विषयों पर शोध कर रहा है. वहीं, कुछ ग्रुप मैमोरी के बारे में रिसर्च कर रहे हैं. दिमाग में क्या चल रहा है, इसे समझने में तो कामयाबी मिल गयी है, लेकिन आगे क्या होगा, इसके बारे में जानना अभी शेष है.
प्राइवेसी हनन का खतरा
माइंड रीडिंग डिवाइस के डेवलप होने का एक बड़ा खतरा प्राइवेसी के हनन होने के तौर पर दिख रहा है. इसलिए इसके कानूनी पहलू के बारे में भी सोचना होगा. मसलन- कौन आपके दिमाग को पढ़ने की कोशिश कर रहा है?
इसके पीछे उसकी मंशा क्या है? इससे भी बड़ा सवाल यह कि आपके सपनों को लोग चुराने लग जायेंगे, जो उचित नहीं है. इसलिए इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा कि माइंड- रीडिंग डिवाइस का इस्तेमाल कैसे करना है. हालांकि, वास्तविक तकनीक को आने में फिलहाल काफी समय लगेगा, लेकिन हमें इस पर सोचना शुरू कर देना चाहिए.

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