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सिमट रहे हैं चीन के ‘आधुनिक मंदिर’

जिन कारखानों में हजारों कामगार थे, अब सैकड़ों में रह गये हैं पिछले कुछ दशकों से चीन के विकास और उसकी आर्थिक वृद्धि को दुनिया हैरानी से देख रही थी, पर अब वहां भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. जो बड़े-बड़े कारखाने चीन के ‘आधुनिक मंदिर’ बने हुए थे, अब वे सिमट रहे हैं. […]

जिन कारखानों में हजारों कामगार थे, अब सैकड़ों में रह गये हैं
पिछले कुछ दशकों से चीन के विकास और उसकी आर्थिक वृद्धि को दुनिया हैरानी से देख रही थी, पर अब वहां भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. जो बड़े-बड़े कारखाने चीन के ‘आधुनिक मंदिर’ बने हुए थे, अब वे सिमट रहे हैं. बढ़ती श्रम लागतें, जमीन-जायदाद की चढ़ती कीमतें, ज्यादा प्रोत्साहित न करनेवाली सरकारी नीतियां और कार्यादेशों में हो रही कटौती चीन के कारखानों को मजबूर कर रही हैं कि वे कामगारों की छंटनी करें, ताकि किसी तरह अपना अस्तित्व बचा सकें. क्या इसमें भारत के लिए भी कोई संकेत छिपा है?
आठ साल पहले, दक्षिण चीन स्थित ‘पास्कल लाइटिंग’ में लगभग 2000 कामगारों को रोजगार हासिल था. बिजली के बल्ब वगैरह बनानेवाली इस ताइवानी कंपनी ने आज यह तादाद केवल 200 कर दी है और अपने विशाल परिसर के बड़े हिस्से को एक लैंप वर्कशॉप, एक मोबाइल निर्माता कंपनी, एक लॉजिस्टिक समूह और एक शराब ब्रांड को किराये पर दे दिया है.
मध्य गुआंगदांग प्रांत में पास्कल के महाप्रबंधक जॉनी त्साई कहते हैं, ‘‘जब तक आपके पास अधिक ऑर्डर थे, आपके पास सारे संसाधन थे और आप विस्तार करते जा सकते थे.’’ अब ऐसा नहीं रह गया है.
यह चीनी कारखाना, जो एक समय इतना बड़ा था कि इसके आकार को इसमें समा जानेवाले फुटबॉल मैदानों की संख्या से आंका जाता था, आज सिकुड़ता जा रहा है. इस सिकुड़न से विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) क्षेत्र के लिए एक नया मॉडल सामने आता दिख रहा है.
छोटे से लेकर बड़े, सारे काम एक ही परिसर में निबटानेवाली दैत्याकार इकाइयां, जो 2000 के दशक में चीन के विनिर्माण क्षेत्र बन कर उभरी थीं, अब उन्हें छोटे-छोटे कारखाने विस्थापित कर रहे हैं.
दक्षिणी चीन के फोशान में स्थित, रसोई और बिजली के उपकरण बनानेवाले कारखाने ‘कानकुन’ में सन 2005 में 22000 लोग काम किया करते थे. इसके एक वरीय अधिकारी के अनुसार आज यह तादाद घट कर सिर्फ 3000 रह गयी है. फेडरेशन ऑफ हांगकांग इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष स्टैनली लाउ के अनुसार, दक्षिण चीन में स्थित हांगकांग के मालिकाने वाले कुछ कारखानों ने कामगारों की संख्या में 50-60 फीसदी तक की कमी कर दी है.
हालांकि भीमकाय चीनी कारखानों का खत्म होना इतना आसान नहीं है. ताइवान का फॉक्सकोन टेक्नोलॉजी समूह अपने शीर्ष उत्पादन के वक्त अब भी 13 लाख लोगों को रोजगार देता है. इनमें से बहुत से कामगार ऐपल आइफोन के पुरजे जोड़ते हैं. हालांकि जो कंपनियां स्वचालन (ऑटोमेशन) करने में सक्षम हैं, वो इस रास्ते पर बढ़ रही हैं जिसमें फॉक्सकोन भी शामिल है. लेकिन, लाइिटंग जैसे उद्योगों में, जहां उत्पादों के डिजाइन बहुत जल्दी-जल्दी बदलते हैं, वहां रोबोट ज्यादा कुछ नहीं कर सकते.
चीनी कंपनियों का सिकुड़ते जाना यह दिखाता है कि पहले उन्हें जो बढ़त हासिल थीं, अब उनमें कितनी कमी आ गयी है. 1990 के पूरे दशक तथा 2000 के दशक के शुरु आती सालों में चीन के तटीय शहर निवेशकों को सस्ती कीमतों पर जमीनें उपलब्ध कराने की होड़ किया करते थे. आज उन्हीं जगहों पर जमीनें दुर्लभ और महंगी हो गयी हैं. इसके अलावा नये पर्यावरण एवं श्रम कानून भी आ गये हैं.
अब श्रमिकबल (वर्कफोर्स) में भी बदलाव आ चुका है. 2012 में चीन के श्रमयोग्य उम्र के लोगों की तादाद में कमी आ गयी. 2013 की तुलना में पिछले साल हड़तालों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गयी. रोजगार अब सेवा क्षेत्र में चले गये हैं. इकोनोमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के एक विेषण के अनुसार, श्रम लागतों में डॉलर के लिहाज से 2005 की बनिस्बत चौगुनी से भी ज्यादा बढ़ोतरी हो चुकी है.
बढ़ते मेहनताने की वजह से कारखानों की बंदी, उन्हें अन्यत्र ले जाना अथवा उनका पुनर्गठन पहले से कहीं अधिक महंगा हो गया है. चीनी कानून के अनुसार जो कंपनियां अपने कामगारों की सेवा समाप्त करती हैं, उन्हें मुआवजे के तौर पर उनके हर सेवा-वर्ष के एक माह का वेतन देना होता है.
इसके अलावा, संकटग्रस्त कारखानों के कामगार प्राय: सामाजिक कल्याण तथा पेंशन के वैसे लाभ भी मांगने लगते हैं, जिन्हें वे पहले किसी वजह से नहीं ले पाये थे. इसलिए कर्मियों की संख्या कम रखना, कारखाना बंद करते वक्त भी सस्ता पड़ता है.
और अब आर्डर (कार्यादेश) भी पहले जितने नहीं मिल रहे. सोमवार को चीन ने यह घोषणा की कि पिछले वर्ष मार्च महीने के निर्यात के मुकाबले इस वर्ष के मार्च के निर्यात में 15 फीसदी की कमी आयी है. चीनी विनिर्माण का पीएमआइ (क्र य करनेवाले प्रबंधकों का सूचकांक), जो औद्योगिक गतिविधियों की माप करता है, पिछले दो वर्षो से 50 के आसपास मंडरा रहा है, जो विस्तार तथा सिकुड़न के बीच का बिंदु है.
सत्साई बताते हैं कि पास्कल, जो अब भी मुनाफे में चल रहा है, ने वैश्विक मंदी के दौरान अपने कर्मियों की संख्या में स्वाभाविक ढंग से कमी आने दी. आज यह अपने डिजाइन किये गये प्रकाश उपकरण बेचता है, जिनके लिए यह ज्यादा कीमतें मांग सकता है. इसे अपने परिसर के किरायेदारों से भी आमदनी होती है, जिनमें वह चीनी कंपनी भी शामिल है, जो भारत को निर्यात किए जानेवाले मोबाइल फोन डिजाइन करती और उनके पुरजे जोड़ती है. अपनी लागतों में कमी लाने के लिए पास्कल अपने ग्राहकों की अनुमति लेकर अपने ऑर्डरों की आपूर्ति के ठेके दूसरे संयंत्रों को भी दिया करता है.
वालमार्ट, सीयर्स, टारगेट, एच एंड एम, एडीडास, नाइकी और गैप जैसे वैश्विक खुदरा विक्रेता और बड़े ब्रांड, जो अपनी आपूर्तियों के लिए बड़े पैमाने पर चीनी संयंत्रों पर आश्रित हैं, के लिए छोटे संयंत्रों को आउटसोर्स करने की यह बढ़ती प्रवृत्ति अच्छी और बुरी दोनों ही है. अपनी अतिरिक्त लागतें कम होने के कारण छोटे संयंत्र अधिक प्रतिस्पर्धी हुआ करते हैं, किंतु आपूर्ति के ठेके उनके बीच बांट देना गुणवत्ता की समस्याएं तो खड़ी करता ही है, ग्राहकों के लिए पारदर्शिता भी समाप्त कर देता है, क्योंकि आपूर्तिकर्ताओं की भीड़ में बंट कर ऑर्डर विलीन और अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के लिए अदृश्य जैसे हो जाते हैं.
और फिर कारखानों का सिकुड़ना उनकी बंदी की राह का अंतिम पड़ाव भी तो हो सकता है. पिछले दो दशकों से चीनी कारखानों से खरीद करनेवाले एक अमेरिकी कारोबारी बेन श्वाल कहते हैं, ‘‘जब कारखाने छोटे होते हैं, तो वे विफल होना गवारा कर सकते हैं. जब आप डिजाइन और मार्केटिंग केंद्रित होते हैं, तो काम बंद कर देना आसान होता है.’’
चीनी कारखानों के परामर्शी कहते हैं कि बहुत सारी कंपनियां केवल अपने श्रमिकबल में कमी लाने के बजाए अपनी लागतें कम करने तथा कुशलता बढ़ाने हेतु दूसरे रास्तों की तलाश भी कर सकती हैं. शेनङोन स्थित सी एंड के कंसल्टेंसी के मुख्य परामर्शी किउ जुन्ङो कहते हैं ‘‘चीनी कारखानों ने कभी भी प्रबंधन पर ज्यादा जोर नहीं दिया. उन्हें अपने प्रबंधन के तौर-तरीकों में नवाचार और बेहतरी लानी ही चाहिए, वरना वे जीवित नहीं रह सकेंगे.’’
(साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट से साभार) (अनुवाद : विजय नंदन)

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