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शोषण का घिनौना रूप, निजात पायें

हेलेन लाफाव अमेरिकी कांसुल जनरल, कोलकाता मानव तस्करी पर रांची में बैठक जल्द मानव-तस्करी आधुनिक युग का एक अभिशाप है. यह भारत ही नहीं बल्किपूरी दुनिया में उन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के शोषण के निकृष्टतम रूपों में से एक है, जो मानव-तस्करी के लिए सबसे कमजोर और असुरक्षित हैं. मानव-तस्करी मादक-पदार्थों और हथियारों, के […]

हेलेन लाफाव
अमेरिकी कांसुल जनरल, कोलकाता
मानव तस्करी पर रांची में बैठक जल्द
मानव-तस्करी आधुनिक युग का एक अभिशाप है. यह भारत ही नहीं बल्किपूरी दुनिया में उन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के शोषण के निकृष्टतम रूपों में से एक है, जो मानव-तस्करी के लिए सबसे कमजोर और असुरक्षित हैं. मानव-तस्करी मादक-पदार्थों और हथियारों, के अवैध व्यापार के बाद सबसे अधिक धन प्रदान करने वाले व्यापारों में से एक है.
लेकिन ऐसी अवैध गतिविधियों में संलग्न लोगों (जिन्हें पहचाना और अलग-थलग किया जा सकता है) से अलग, मानव-व्यापारी अज्ञात होते हैं तथा यह लोग हमारे बीच में ही रहते और काम करते हैं. और चूंकि मानव-व्यापारी हमारे मित्रों, परिचितों और यहां तक कि हमारे परिवारों के बीच रहते हुए दूसरे लोगों का शोषण करते हैं, इसलिए हमें उन्हें पहचानने, अलग-थलग करने और उनसे लड़ने के लिए संगठित होना होगा.
भारत और अमेरिका इस लड़ाई में भागीदार है. मानव-तस्करी से लड़ना दुनिया में सबसे अधिक कुशलता से संगठित और लाभदायी अपराधों में से एक से युद्ध करने जैसा है. सेक्रेटरी क्लिंटन के जून 2012 के कोलकाता दौरे और मानव-तस्करी विरोधी समुदाय के साथ उनकी बातचीत ने इस भागीदारी में एक नयी गतिशीलता का संकेत दिया. सेक्र ेटरी क्लिंटन के दौरे के बाद इस काम को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता ने जुलाई 2012 में पहली ट्रैफिकिंग इन परसन (टीआइपी) मीटिंग का आयोजन किया. इस मीटिंग में मानव-तस्करी में सेक्स के व्यावसायिक पहलू की जांच पड़ताल की गयी तथा नागरिक समाज, सरकार व कानून प्रवर्तन अधिकारियों, मीडिया एवं अन्य साङोदारों को एकजुट किया.
दिसंबर 2012 में दूसरी मीटिंग के लिए अमेरिकी कांसुलेट जनरल ने पैनल विचार-विमर्श, कार्यशालाओं के आयोजन और कोलकाता के केंद्र से मानव व्यापार के विरु द्ध जागरूकता मार्च के लिए 20 प्रमुख मानव-तस्करी विरोधी गैर-सरकारी संगठनों, कई युवा संगठनों एवं सामाजिक रूप से जागरूक उद्योग-धंधों के साथ भागीदारी की. मुख्य भागीदारों के रूप में छात्रों को शामिल करके कांसुलेट ने टीआइपी विरोधी कार्यकर्ताओं की भावी पीढ़ी को सशक्त बनाने की उम्मीद की. 2013 में गुवाहाटी में तीसरी मीटिंग में देश प्रत्यावर्तन सहित सीमापार से मानव-तस्करी के पहलुओं पर विचार-विमर्श किया गया.
रांची में आयोजित की जाने वाली चौथी मीटिंग शोषण करने वाले श्रम और विशेष रूप से बालश्रम के लिए मानव-तस्करी पर केंद्रित होगी. यह बैठकें मानव-तस्करी के विरु द्ध संघर्षकर्ताओं का एक नेटवर्क तैयार करने के एक साझा उद्देश्य के तहत आयोजित की जा रही हैं.
मेहनत मजदूरी के लिए बच्चों की तस्करी पर चर्चा में बच्चों के विकास, शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह परस्पर संबद्ध मुद्दे हैं.
भारत, नीति योजनाओं और बजट सहयोग के माध्यम से इन पहलुओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. आइसीडीएस (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम), आइसीपीएस (इंटीग्रेटेड प्रोटेक्शन स्कीम), एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) जैसे कार्यक्रम और मिड-डे मील योजना भारत में बच्चों की असुरक्षा को कम करते हैं, और बड़ी संख्या में भारतीयों के दैनिक जीवन में बड़ी बदलाव लाते हैं. हालांकि समस्या की भयावहता को देखते हुए किसी भी देश की योजनाओं की नागरिक समाज के कार्यों द्वारा सराहना होनी चाहिए.
मुङो यह जानकर खुशी है कि झारखंड सरकार ने बालश्रम उन्मूलन के लिए एक्शन प्लान बनाया है. प्लान के अनुसार झारखंड में 12.8 मिलियन बच्चे हैं. 2011 की भारतीय जनगणना बताती है कि झारखंड में 91,000 (5 से 14 आयु समूह) के बच्चे स्थायी श्रमिक हैं और साल में छ: महीने से अधिक कार्य करते हैं. इसके अतिरिक्त, एक लाख 60 हजार बच्चे तीन से छह महीने के बीच कार्य करते हैं और एक लाख 45 हजार बच्चे तीन महीने से कम कार्य करते हैं.
इसका तात्पर्य है कि झारखंड के कुल 12.8 मिलियन बच्चों में कम से कम 4,00,000 बच्चे या लगभग तीन प्रतिशत बच्चे वर्तमान में स्थायी रूप से या मियादी रूप से कार्य करते हैं. एक्शन प्लान यह भी दर्शाता है कि प्रतिवर्ष गरीब परिवारों की पूर्णत: या आंशिक रूप से अशिक्षित लगभग 33,000 लड़कियों की राज्य से बाहर तस्करी की जाती है. इन लड़कियों से बलपूर्वक घरेलू कार्य, रेस्टोरेंट और फैक्टरियों में कार्य कराया जाता है.
ये आंकड़े और प्रतिशत क्या प्रकट करते या छिपाते हैं? ये कहते हैं कि झारखंड और अन्य राज्यों के बच्चों में से बहुत से बच्चों से बलपूर्वक कार्य कराया जाता है जबकि उन्हें पढ़ना और खेलना चाहिए. दुर्भाग्य से ये आंकड़े यह संकेत देते हैं कि इन बच्चों के लिए गंभीर शोषण का खतरा रहता है.
तो हमारी भूमिका क्या है?
हम सभी बच्चों के साथ बेहतर व्यवहार सुनिश्चित करने वाली नीतियों पर विचार-विमर्श और समर्थन करते हैं. अमेरिका सरकार मानव-तस्करी के सभी रूपों से लड़ने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है, जिसे हम आधुनिक युग की दासता मानते हैं. इस प्रतिबद्धता के भाग के रूप में अमेरिकी कांसुलेट जनरल कोलकाता एक प्लेटफॉर्म (मंच) प्रदान कर रहा है, जहां मानव-तस्करी के विरु द्ध लड़ने वाले योद्धा एकजुट हो सकें, तेजी ला सकें और अपने संकल्प को आगे बढाएं. यह पहल कोलकाता कांसुलेट तक ही सीमित नहीं है. इस सामाजिक अभिशाप से लड़ने के लिए जागरूकता पैदा करने, भागीदार नेटवर्क को सहयोग करने तथा क्षमता निर्माण करने के लिए भारत में अमेरिकी मिशन, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में अपने कांसुलेट और, नयी दिल्ली दूतावास विभिन्न योजनाओं में सक्रि य रूप से कार्यरत हैं.
भारत सरकार ने मानव-तस्करी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप महत्वपूर्ण समय और प्रयास किये हैं. भारत के 2011 के संयुक्त राष्ट्र के पलेर्मो प्रोटोकोल पुष्टीकरण के अनुपालन के रूप भारत सरकार ने भारतीय पैनल कोड में अप्रैल 2013 में संशोधन किया है. इसमें तस्करी माने जाने वाले अपराधों के प्रकारों को व्यापक बनाया है और मानव-तस्करों के लिए अधिक कठोर सजा तय की है. मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स (एमएचए) एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स (एएचटीयूज) स्थापित करती है, जो कानून प्रवर्तन और पुनर्वास प्रयासों को संगठित करते हैं.
हमारी मानव-तस्करी की जटिलता के बारे में बढ़ी हुई जानकारी उन चुनौतियों को दर्शाती है जिनका सामना हम करते हैं, लेकिन यह हमें मिलकर सहयोग करने और हमें प्रणाली और प्रोटोकॉल के साथ एकजुट होकर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित भी करती है. इससे क्षेत्रों, प्रांतों और राष्ट्रीय सीमाओं के पार मानव-तस्करी से निपटा जा सकता है. मानव-तस्करी के विरु द्ध व्यापाक भागीदारी में राष्ट्रपति ओबामा का भाषण भविष्य के एजेंडे का मार्गदर्शक हो सकता है:
‘जैसे कि हम मानव-तस्करी के नेटवर्को को समाप्त करने के लिए कार्य करते हैं और पीड़ितों के जीवन के पुनर्निर्माण में सहायता करते हैं, हमें बंधुआ बनाने वाली असली ताकतों पर भी ध्यान देना चाहिए. हमें अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करना चाहिए जिससे रोजगार पैदा हों, न्याय की वैश्विक भावना का निर्माण हो, जो कहती है कि किसी बच्चे का शोषण नहीं होगा, और अपनी पुत्रियों व पुत्रों को उनके सपने पूरे करने के लिए समान अवसर देकर सशक्त बनायें.’
हममें से बहुत से मानव-तस्करी की समस्या को दैनिक जीवन में देखते हैं. हममें से कुछ प्रतिदिन इसके पास से होकर गुजर जाते हैं. मैं कहती हूं कि अगली बार आप कुछ करें और सोचती हूं कि इसका कैसे समाधान किया जाए.

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