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रेल बजट : रेलवे की सेहत सुधरने पर ही आयेंगे निवेशक

रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत रेल बजट में जहां नयी ट्रेनें शुरू करने से परहेज किया गया है, वहीं रेलवे के संचालन और अर्थव्यवस्था में सुधार के उद्देश्य से दीर्घकालीन योजना की महत्वाकांक्षी रूपरेखा प्रस्तुत की गयी है. रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में निजी क्षेत्र के अलावा राज्यों और केंद्र सरकार के […]

रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत रेल बजट में जहां नयी ट्रेनें शुरू करने से परहेज किया गया है, वहीं रेलवे के संचालन और अर्थव्यवस्था में सुधार के उद्देश्य से दीर्घकालीन योजना की महत्वाकांक्षी रूपरेखा प्रस्तुत की गयी है. रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में निजी क्षेत्र के अलावा राज्यों और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रलयों को भी भागीदार बनाने का इरादा व्यक्त किया गया है. क्या खास है इस बजट में और कहां रह गयी है कमी, तथा क्या सुरेश प्रभु की योजनाएं कागज से हकीकत का सफर तय कर पायेंगी, इन्हीं सवालों पर बहस आज के विशेष में..

पी के चौबे

अर्थशास्त्री

इस रेल बजट में आम लोगों के लिहाज से यह अच्छी बात है कि किसी भी श्रेणी के यात्री किराये में बढ़ोतरी नहीं की गयी है. हालांकि, कई जरूरी चीजों के मालभाड़े में वृद्धि की गयी है. यात्री किराया नहीं बढ़ाना कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी आने का नतीजा भी हो सकता है, जो रेलवे के खर्चे का एक बड़ा हिस्सा है. पिछले करीब दो-तीन दशकों में ऐसा पहली बार देखा गया है कि रेल बजट में किसी नयी ट्रेन की घोषणा नहीं की गयी है. रेल मंत्री ने इसके लिए भले ही यह तर्क दिया हो कि भारतीय रेल नेटवर्क के ट्रैक की रेलों का भार सहने की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करने के बाद ही वे नयी ट्रेनों को चलाने के बारे में सोचेंगे, लेकिन उन्हें इस बारे में भी सोचना होगा कि यात्रियों की बढ़ती संख्या को कैसे मैनेज किया जा सकता है. रेलवे सेफ्टी कमीशन की ओर से पिछले कई वर्षो से यह कहा जा रहा है कि नयी ट्रेनों को चलाने से पहले ट्रैक की क्षमता का आकलन होना चाहिए, उसके बाद ही नयी गाड़ियां चलायी जानी चाहिए. हालांकि, रेलवे इसकी अनदेखी करता रहा है, लेकिन अब उसे महसूस हो रहा है कि बिना नयी रेल लाइन बनाये ज्यादा गाड़ियों को चलाना मुश्किल होगा.

रेल बजट में यह बताया जाना चाहिए था कि बढ़ती आबादी और यात्री संख्या को परिवहन सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार के पास क्या योजना है. हमारे देश में करीब 1.5 फीसदी के हिसाब से आबादी बढ़ रही है और करीब दो फीसदी के हिसाब से यात्रियों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में इस समस्या का बेहतर प्रबंधन कैसे किया जायेगा, यह भी बताना चाहिए. यात्रियों की बढ़ती संख्या के हिसाब से देखा जाये तो भारतीय रेल को सालाना करीब 200 ट्रेनें बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. किस कारण से यह नहीं हो पा रहा है, इसकी जानकारी भी बजट में दी जानी चाहिए.

रेल मंत्री यदि कह रहे हैं कि रेल के विकास को लेकर उनकी दीर्घावधि योजनाएं हैं, तो उस बारे में विस्तार से बताया जाना चाहिए. पिछले कई वर्षो से देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में पंजाब से बंगाल तक और दिल्ली के निकट दादरी से मुंबई तक मालगाड़ियों को चलाने के लिए अलग से ‘डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर’ बनाया जा रहा है. इसकी क्या स्थिति है, कब तक यह चालू हो पायेगा, इससे यात्रियों को कितनी राहत मिलेगी, इस बारे में भी बताया जाना चाहिए. जहां तक रेलवे की लंबित योजनाओं के लिए रकम की बात है तो इसके लिए उसे संचालन लागत अनुपात कम करना होगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा आमदनी हो सके और उसे नयी योजनाओं को पूरा करने में लगाया जा सके.

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में नये उद्योग-धंधों समेत स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, सिंचाई के साधन आदि के लिए किसानों से जमीन ली जा रही है और अनेक जगहों पर इसका विरोध हो रहा है. ऐसे में किसी का ध्यान रेलवे की खाली पड़ी लाखों एकड़ जमीन की ओर नहीं जा रहा. भले ही यह माना जाये कि रेलवे की खाली पड़ी जमीन उद्योग-धंधों के संदर्भ में अनुपयोगी है, लेकिन इसे विकसित करके उपयोगी बनाया जा सकता है. इससे जहां रेलवे को आमदनी होगी, वहीं खाली पड़ी जमीन का सदुपयोग भी होगा.

रेलवे की लंबित योजनाओं को पूरा करने और बेहतर यात्री सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से रेलवे पिछले कुछ वर्षो से यात्री सेवा से जुड़े विभिन्न विभागों को निजी हाथों में सौंपने की बात कर रहा है, लेकिन तकनीकी कारणों से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा है. रेलवे खानपान सेवा की गुणवत्ता हमेशा ही सवालों के घेरे में रही है. निजी निवेशकों के आने की जिस तादाद में उम्मीद की जा रही थी, उस तादाद में आ नहीं रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह हो सकती है कि फिलहाल इस सेक्टर को बीमार सेक्टर के तौर पर देखा जा रहा है. जैसे-जैसे इसकी सेहत में सुधार होगा, वैसे-वैसे निवेशक इस ओर आयेंगे. निवेशक अपना रुख ‘ग्रोथ’ की ओर ज्यादा करता है. इसलिए सबसे जरूरी है देश में औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाना. जैसे-जैसे देश में माल का उत्पादन बढ़ेगा, वैसे-वैसे माल ढुलाई की जरूरत बढ़ेगी और माल गाड़ियों की जरूरत बढ़ेगी. निवेशकों को जब यह भरोसा होगा कि उन्हें निवेश करने से अच्छा रिटर्न मिलेगा और उनका निवेश सुरक्षित जगह पर लग रहा है, तब जाकर वे खुल कर सामने आयेंगे.

(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)

भारतीय रेलवे का श्वेत पत्र

8,000 से अधिक रेलवे स्टेशनों को प्रतिदिन जोड़ता है भारतीय रेल नेटवर्क.

2 करोड़ 23 लाख लोग प्रतिदिन भारतीय रेलवे से सफर करते हैं. यह ऑस्ट्रेलिया की समस्त जनसंख्या के लगभग बराबर है.

19,000 से अधिक रेलगाड़ियों का प्रतिदिन संचालन करता है भारतीय रेलवे.

30 लाख टन माल की ढुलाई की जाती है प्रतिदिन रेल नेटवर्क के माध्यम से.

7,421 से अधिक मालगाड़ियों के माध्यम से ढोया जाता है 30 लाख टन माल.

65,000 मार्ग किलोमीटर का इसका नेटवर्क पृथ्वी की परिधि के लगभग डेढ़ गुने से अधिक है.

1008.09 मिलियन टन (एक अरब) से अधिक के प्रारंभिक माल लदान (2012-13 में) के साथ उन देशों के चुनिंदा क्लब में शामिल हो गयी थी, जिसमें केवल चीन, रूस और यूनाइटेड स्टेट्स शामिल हैं.

1.05 अरब टन राजस्व उपाजर्क माल यातायात की ढुलाई की 2013-2014 के दौरान और 2014-15 में 1.1 अरब टन की ढुलाई किये जाने की संभावना है.

एक प्रतिशत था समग्र सकल घरेलू उत्पाद में रेलवे का हिस्सा वर्ष 2011-2012 तक, जो 2012-2013 के दौरान घटकर 0.9 फीसदी पर पहुंच गया.

1344 फीसदी की वृद्धि हुई है माल लदान में पिछले 64 वर्षो के दौरान.

1642 फीसदी की वृद्धि हुई है यात्री किलोमीटर में इस दौरान.

23 फीसदी वृद्धि हुई है मार्ग किलोमीटर में व 289 प्रतिशत वृद्धि हुई है दोहरे व बहुल मार्ग की लंबाई में इस दौरान.

रेलवे के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियां

समुचित क्षमता और गुणवत्ता की कमी: भारतीय रेल की सबसे बड़ी चुनौती माल ढुलाई और यात्री यातायात की मांगों को पूरा करने में इसका असमर्थ होना. निवेश की कमी के अलावा सेवाओं की गुणवत्ता भी एक समस्या है. सफाई, समय-पालन, सुरक्षा, टर्मिनलों और गाड़ियों की क्षमता, भोजन की गुणवत्ता, बुकिंग में परेशानी पर तुरंत ध्यान देना आवश्यक है.

वित्तीय कमजोरी : पर्याप्त धन के अभाव में रेल नेटवर्क के विस्तार , आधुनिकीकरण और नवीनीकरण की गति का स्तर अपेक्षा से कम रहा है. इस कारण माल ढुलाई और यात्री यातायात में रेलवे की हिस्सेदारी कम हुई है. रेल की बेहतरी के लिए इसके संचालन और वित्तीय स्थिति को मजबूत करना बड़ी चुनौती है.

आमदनी में कमी : उच्च घनत्व वाले नेटवर्क पर क्षमता में कमी के साथ यात्री किराये की दर भी कम है, जिसके चलते राजस्व के लिए माल भाड़े में वृद्धि कर किराये में कमी को क्रॉस-सब्सिडाइज्ड करना होता है. इससे विस्तारण और परिसंपत्तियों के बदलाव के लिए निवेश हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं बच पाते.

पर्याप्त सुरक्षा और संरक्षा की कमी : संसाधनों की कमी से सुरक्षा-संबंधी जरूरतें पूरी करने में रेलवे अक्षम है.

कम उत्पादकता : विश्व के अन्य रेल प्रणालियों के मुकाबले भारतीय रेल की उत्पादकता काफी कम है.

नेटवर्क का संकुलन : कम निवेश के कारण नेटवर्क पर अत्यधिक संकुलन हो गया है जिसके कारण यह प्रणाली और अधिक रेलगाड़ियों को संभालने और उनकी गति तेज कर पाने में असमर्थ हो गयी है. तकनीक का बेहतर इस्तेमाल और तेज विद्युतीकरण के बिना इस स्थिति में सुधार संभव नहीं है. अर्थव्यवस्था में विकास के साथ क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत अधिक निवेश की जरूरत है.

परियोजनाओं के पूरा होने में देरी : रेलवे की लंबित परियोजनाओं के लिए 4,91,510 करोड़ रुपये की आवश्यकता है, जिसमें दोहरीकरण, नवीनीकरण, यातायात सुविधाएं, टेलीकॉम, विद्युतीकरण आदि जैसे प्राथमिक कार्यों के लिए 2,08,054 करोड़ रुपये की जरूरत का आकलन है. नयी पटरियों और दोहरीकरण की 362 परियोजनाएं वर्तमान में स्वीकृत हैं.

भूमि-अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी में दिक्कत : नियम-कानूनों के कारण विभिन्न परियोजनाओं के लिए जरूरी जमीन को अधिग्रहित करना बहुत कठिन हो गया है और इसमें काफी समय निकल जाता है. इसके बाद पर्यावरण, वन्य जीव आदि से संबंधित नियमों के अंतर्गत हरी झंडी मिलने में भी परेशानी होती है. इन देरियों की वजह से भी धन जुटाना कठिन हो जाता है और लागत में वृद्धि होती है.

कानून-व्यवस्था : देश के कई हिस्सों- जम्मू-कश्मीर, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, बंगाल, ओडिसा और महाराष्ट्र- में अशांति और उग्रवाद की समस्या के चलते रेल को अपनी परियोजनाएं पूरा करने और समुचित संचालन में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है.

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