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प्री कांफ्रेंस सिंपोजियम: बदल रही है पूर्वी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था

पूर्वी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव और रोजगार के अवसर विषय को लेकर देशभर के अर्थशास्त्रियों ने रांची में चर्चा की. रांची के होटल रॉयल रिट्रीट में बुधवार को 56 वें वार्षिक सम्मेलन द इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स के प्री कॉन्फ्रेंस सिंपोजियम में देश व दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने इस विषय पर […]

पूर्वी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव और रोजगार के अवसर विषय को लेकर देशभर के अर्थशास्त्रियों ने रांची में चर्चा की. रांची के होटल रॉयल रिट्रीट में बुधवार को 56 वें वार्षिक सम्मेलन द इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स के प्री कॉन्फ्रेंस सिंपोजियम में देश व दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये. सिंपोजियम का आयोजन इंस्टीटय़ूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट(आइएचडी) व आइसीआरआइएसएटी के तत्वावधान में किया गया है. पूर्वी क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में हो रहे बदलाव, रोजगार के अवसर, कृषि उत्पाद, पलायन और आदिवासियों का विकास चर्चा का मुख्य विंदु रहा. इसमें पूर्वी भारत के ग्रामीण जनजीवन व आर्थिक प्रगति में परिवर्तन पर चर्चा की गयी.
रांची: रांची में बुधवार को शुरू हुए प्री कांफ्रेंस सिंपोजियम में पूर्वी भारत के ग्रामीण जनजीवन व आर्थिक प्रगति में परिवर्तन पर चर्चा की गयी. वर्तमान में रोजगार, आय, गरीबी के ट्रेंड पर भी बातें हुई. चर्चा में पूर्वी भारत के साथ-साथ अन्य राज्यों में कृषि क्षेत्र के अध्ययन की रिपोर्ट भी पेश की गयी. प्री कांफ्रेंस सिंपोजियम की अध्यक्षता योजना आयोग के पूर्व सदस्य प्रो अभिजीत सेन ने की.
वक्ताओं के अनुसार पूर्वी भारत देश का घनी आबादी वाला क्षेत्र है. इस क्षेत्र की भूमि उत्पादकता के मामले में बेहतर मानी जाती है, लेकिन कमजोर फसल के कारण यह क्षेत्र गरीब है. कृषि व गैर कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय की असमानता भी बढ़ती जा रही है. जिसके चलते ग्रामीण इलाकों में तेजी से पलायन बढ़ रहा है. लोग कृषि कार्य छोड़ अन्य गैर कृषि कार्यो में जाना चाहते हैं. यह एक बड़ी चुनौती है. हालांकि गत 10 वर्षो में इन क्षेत्रों में तेजी से विकास हुआ है. पूर्वी क्षेत्र के राज्यों की रैंकिंग सुधरी है. रोजगार की कमी को लेकर भी अर्थशास्त्रियों ने चिंता जतायी और कहा कि इसके लिए नीति बनाने की जरूरत है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नीति निर्धारकों को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आय बढ़े, ऐसी तकनीक का इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाय जिससे खेती में सुधार हो, फसल उत्पादकता बढ़े, कृषि व गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार बढ़े. विषय प्रवेश अर्थशास्त्री हरीश्वर दयाल ने किया. उन्होंने पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा पेश करते हुए कहा कि पूरे देश को पूर्वी क्षेत्र में हो रहे बदलाव पर ध्यान देने की जरूरत है. सिंपोजियम के प्रथम सत्र में डेवलपमेंट एंड लाइवलीहुड इन रूरल इकोनॉमी ऑफ इस्टर्न इंडिया इमजिर्ग पैटर्न एंड प्रोस्पेक्टिव पर चर्चा की.

प्रथम सत्र में इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीटय़ूट फॉर द सेमी एरिड ट्रॉपिक्सके एन नागराज ने रिसेंट ट्रेंड्स इन इंप्लायमेंट इनकम एंड पॉवर्टी इन इंस्टर्न इंडिया पर किये गये सर्वे पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि साउथ एशिया के 42 गांवों का सर्वे किया गया है. जिसमें सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन का अध्ययन किया गया है. जिसका डाटा न केवल शोधार्थियों के लिए बल्कि नीति निर्धारकों के लिए भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने बताया कि पूर्वी भारत के श्रम बाजार में तेजी से परिवर्तन हो रहा है. दूसरी ओर कृषि क्षेत्र में कई समस्याएं उत्पन्न हो रही है. उन्होंने कहा कि कृषि व गैर कृषि कार्य में आय की असमानता को दूर करना होगा. तभी इन दोनों कार्यो में संतुलन स्थापित हो सकता है.
ट्राइबल एरिया विकास में पिछड़े : डॉ विनायक
रांची: उत्कल विवि के पूर्व कुलपति डॉ विनायक रथ ने कहा कि झारखंड व ओड़िशा के ट्राइबल एरिया आज भी विकास के मामले में सबसे पीछे है. कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आज तक न तो स्वास्थ्य सुविधा पहुंच पायी है और न ही गुड गवर्नेस का कोई खाखा है. डॉ रथ बुधवार से आरंभ हुए ‘द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकॉनोमिक्स’ पर आयोजित चार दिवसीय 56वां वार्षिक सम्मेलन के दूसरे सत्र में अपनी बात रख रहे थे. उन्होंने झारखंड के संदर्भ में कहा कि यहां माइनिंग समेत कई रिसोर्स हैं, लेकिन इसका उपयोग सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. यदि इसका सही तरह से उपयोग हो, तो रोजगार के अवसर खुलेंगे. यहां के माइनिंग से अन्य देशों को मुनाफा होता है.
उन्होंने कहा कि राज्य में हाइडल पावर प्रोजेक्ट तैयार किये जायें, साथ ही छोटे-छोटे चेक डैम बनाये जायें, जिससे लघु उद्योग को काफी बढ़ावा मिल सके. समेकित जल प्रबंधन को सही तरीके से लागू करें. उन्होंने कहा: प्रोजेक्ट के लागू होने से गांवों में बिजली व पानी व्यवस्थित ढंग से पहुंचेगी, जिससे किसानों को सिंचाई की सुविधा भी मिल पायेगी. ट्राइबल एरिया में ज्यादा उद्योग लगे, ताकि वहां के लोगों को रोजगार मिल सके. इससे गांव विकसित हो पायेगी. ट्राइबल एरिया में जंगलों को भी बचाने की जरूरत है. डॉ रथ ने कहा कि छोटे-छोटे चेक डैम बना कर उससे पावर जेनरेट कर गांवों में भेजने की जरूरत है.

ओड़िशा के एक गांव में सिंचाई व्यवस्था की स्टडी के आधार पर उन्होंने बताया कि गांव में एनजीओ के सहयोग से नयी व्यवस्था लागू की गयी है. हिल वाटर को एक तालाब में जमा कर उससे दिन में खेतों की सिंचाई की जाती है. वहीं रात में छह बजे से दस बजे तक बिजली उत्पादन की जाती है. उस गांव के ज्यादातर लोग खेती करते हैं. उन्होंने कहा: दिन में बिजली की आवश्यकता नहीं है. इस कार्य से कई लोगों के लिये रोजगार के अवसर भी खोल दिये गये हैं. डॉ रथ ने गांवों को कैसे इंपावर करें, इस पर भी अपनी बातें रखीं. उन्होंने कहा कि आज इंपावरमेंट गांव में जरूरी है, जिससे लोगों को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिले.

प्रशिक्षण से ही रोजगार की चुनौतियों से मुकाबला संभव : रिजवानुल इसलाम
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के पूर्व विशेष सलाहकार रिजवानुल इसलाम ने कहा कि शिक्षा और प्रशिक्षण से ही रोजगार की चुनौतियों से मुकाबला किया जा सकता है. द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स की ओर से राजधानी में आयोजित चार दिवसीय कार्यक्रम के पूर्वावलोकन कार्यक्रम के दौरान श्री इसलाम ने जीके चड्ढा मेमोरियल लेर दिया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता डीएन रेड्डी ने की. श्री इसलाम ने कहा कि भूमंडलीकरण के दौर में विकसित, विकासशील और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था पर अधिक तवज्जो दी गयी. बेरोजगारी की चुनौतियों का सामना शिक्षा और प्रशिक्षण से ही किया जा सकता है. शिक्षित और प्रशिक्षित लोग ही इन चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं. प्रशिक्षित कामगार होने से उत्पादकता की गुणवत्ता बरकरार रहती है. उन्होंने कहा कि समेकित विकास लक्ष्य के लिए 2030 तक की योजना बनानी होगी. उन्होंने कहा कि यहां के युवा अच्छी और बेहतर शिक्षा के जरिये ही जॉब मार्केट में अपना मुकाम हासिल कर रहे हैं. जहां दोहरी अर्थव्यवस्था (डय़ूएल इकोनोमी) है, वहां कृषि और कृषि जनित व्यवसाय निर्भरता है. ऐसी जगहों पर पढ़े-लिखे युवा पारंपरिक काम में जाना नहीं चाहते हैं. वे अच्छी नौकरी के प्रति लालायित रहते हैं. उदाहरण के तौर पर कंस्ट्रक्शन, पारंपरिक क्राफ्ट जैसे इनफॉरमल सेक्टर में भी काफी संभावनाएं हैं. इसमें दक्ष श्रमिकों को लगाने से राज्य की अर्थव्यवस्था भी सुधारी जा सकती है. उच्चतर उत्पादकता हासिल करने के लिए रोजगार को बढ़ावा देना होगा. नीति निर्धारकों को यह तय करना होगा कि कैसे नये रोजगार का सृजन हो और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सके.
उन्होंने कहा कि कर के ढांचों में परिवर्तन तो किया जाता है, पर रोजगारोन्मुखी उद्योगों को विकसित करने और अत्यधिक कर देनेवाले क्षेत्रों में कर का बोझ अधिक लाद दिया जाता है. इससे असंतुलन बनता है, जो किसी भी देश के हित में नहीं है.
उन्होंने बताया कि ब्राजील में सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाना प्राथमिकता है. इससे भी असमानता और गरीबी कम हो रही है. श्रमिक बाजार में श्रम कानूनों की अनदेखी करने से भी असमानता बढ़ रही है. इसके लिए सकारात्मक पहल करनी होगी. भारत में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्याएं काफी ज्वलनशील हैं. पर दिसंबर 2008 के बाद से सामाजिक सुरक्षा के दायरे में 34 करोड़ कामगारों को लाया जा रहा है.

बिहार-झारखंड में फसल उत्पादन में आती गयी कमी : रंजीत कुमार
इंटरनेशनल क्रॉप्स रीसर्च इंस्टीटय़ूट फॉर द सेमी एरिड ट्रापिक्स पेटेंचुरू तेलांगाना स्टेट (इक्रीसैट) के रंजीत कुमार ने प्री कांफ्रेंस सिंपोजियम के दौरान कहा कि बिहार और झारखंड में पिछले एक दशक के दौरान फसल उत्पादन नेगेटिव ग्रोथ की दिशा में जा रहा है. उन्होंने कहा कि 2001 से लेकर 2011 के दौरान झारखंड में धान का उत्पादन चार प्रतिशत कम हुआ है. कमोबेश यही स्थिति बिहार और ओड़िशा की भी रही है.
उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती की जगह हाई यील्ड क्राप उत्पादन की ओर रुख किये जाने से ऐसा हुआ है. उन्होंने कहा कि क्राप प्रोडक्शन में श्रमिकों की रुचि भी घटने से ऐसी स्थिति बनी है. श्री कुमार ने कहा कि इस दौरान झारखंड में कृषि क्षेत्र में काम करनेवाले कामगारों की संख्या बढ़ी है. कुल 73850 कृषि मजदूर बढ़े हैं. राज्य में पुरुष उत्पादकों की संख्या में कमी है. महिला उत्पादकों की संख्या 2870 हो गयी है. कृषि श्रमिकों की संख्या भी इस दौरान बढ़ी है. अपने प्रेजेंटेशन के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य में सकल घरेलू उत्पाद दर 8.42 प्रतिशत तक पहुंची. पर कृषि के क्षेत्र में विकास की दर सात से दस फीसदी ही रही. उद्योग और सर्विस सेक्टर में अधिक वृद्धि दर्ज की गयी. उन्होंने कहा कि इन सबका प्रभाव लोगों के पर कैपिटा इनकम पर नहीं पड़ा है. आज भी तीन सौ रुपये से छह सौ रुपये ही लोगों के खर्च हो रहे हैं. श्री कुमार के अनुसार गरीब परिवारों में साक्षरता दर की कमी, खास कर महिलाओं के निरक्षर होने, बच्चों में अधिक कुपोषण से ऐसा हो रहा है. भौतिक और सामाजिक आधारभूत संरचना के मानकों में भी झारखंड पिछड़ रहा है. मनरेगा के जॉब भी 2008-09 से लेकर 2014-15 के दौरान झारखंड में 76 फीसदी कम हुए हैं. बिहार में मनरेगा से रोजगार मिलने की स्थिति और दयनीय हो गयी है. यहां पर 284 प्रतिशत ग्रोथ दर्ज किया गया है. पूर्वी भारत में राज्य के संसाधनों की स्थिति भी अच्छी नहीं है. आज भी झारखंड में 0.10 प्रतिशत आबादी भूमिहीन है. 0.37 प्रतिशत छोटे किसान हैं. उन्होंने कहा कि बाजार में भूमि को लीज पर देने की व्यवस्था को उदार बनाये जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन बढ़ाये जाने को लेकर शोध और विकास को और महत्व देने की जरूरत है.

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