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मणिपुर, हिंदी फिल्में और मेरी कॉम

एक फिल्म तो लोगों को जोड़ने का काम करती है. वह संदेश फैलाती है. फिल्म मेरी कॉम भी ऐसा ही काम कर रही है. मेरी कॉम के माध्यम से यही संदेश दिया जा रहा है कि कोई भी लड़की कमजोर नहीं है. ओलिंपिक पदक विजेता मेरी कॉम की जिंदगी पर बनी हिंदी फिल्म ‘मेरी कॉम’ […]

एक फिल्म तो लोगों को जोड़ने का काम करती है. वह संदेश फैलाती है. फिल्म मेरी कॉम भी ऐसा ही काम कर रही है. मेरी कॉम के माध्यम से यही संदेश दिया जा रहा है कि कोई भी लड़की कमजोर नहीं है.

ओलिंपिक पदक विजेता मेरी कॉम की जिंदगी पर बनी हिंदी फिल्म ‘मेरी कॉम’ पूरे देश में दिखायी जा रही है, लेकिन उनके गृह प्रदेश मणिपुर में नहीं. अजीब विडंबना है. मणिपुर के लोग अपनी माटी में जन्मे मेरी कॉम की फिल्म को सिर्फ इसलिए नहीं देख पा रहे हैं, क्योंकि उग्रवादी गुटों ने मणिपुर में हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा रहा है. आज से नहीं, 14 साल से. इन संगठनों में सबसे सशक्त संगठन है, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ). यह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का राजनीतिक विंग है, जिसे 1989 में बनाया गया था. 1978 में ही इस संगठन को एन विशेश्वर ने बनाया था, जिसके सदस्यों को चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने प्रशिक्षित किया था. बाद में इसे एनएससीएन से भी प्रशिक्षण मिला. अब यही संगठन मणिपुर की संस्कृति के बहाने हिंदी फिल्मों को मणिपुर में दिखाये जाने पर विरोध कर रहा है.

आरपीएफ ने सन् 2000 से ही मणिपुर में हिंदी फिल्मों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाया है कि हिंदी फिल्म मणिपुर की संस्कृति को खराब कर रही है. आरपीएफ और अन्य उग्रवादी संगठनों का खौफ यह है कि मणिपुर में किसी भी सिनेमा घर में हिंदी फिल्म नहीं दिखायी जाती, केबल ऑपरेटर हिंदी फिल्म नहीं दिखा सकते. दूरदर्शन के अलावा कोई भी हिंदी चैनल वहां दिखायी नहीं देता. एक दौर था जब मणिपुर में हिंदी फिल्मों की काफी मांग रहती थी.

शमी कपूर हों या फिर शाहरुख खान, इनकी फिल्म बहुत चलती थी. तीस साल पहले की फिल्म डिस्को डांसर का गाना वहां काफी लोकप्रिय रहा है. अब तो हिंदी गानों पर भी वहां पाबंदी है. अंतिम बार मणिपुर में जो हिंदी फिल्म सिनेमाघर में दिखायी गयी थी, वह थी संजय लीला भंसाली की फिल्म हम दिल दे चुके सनम. उसके बाद हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा. फिल्म में मेरी कॉम की भूमिका अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने निभायी है. पहले यह भूमिका एक मणिपुर अभिनेत्री लिन लैशरम को निभानी थी. वह तीरंदाजी के जूनियर वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन भी रह चुकी हैं. विदेश में पढ़ी हैं. उन्होंने हिंदी फिल्म ओम शांति ओम में छोटी सी भूमिका भी अदा की थी. बाद में तय हुआ कि मेरी कॉम की भूमिका प्रियंका चोपड़ा निभायेंगी.

हिंदी फिल्मों के विरोध का आधार ही गलत है. हो सकता है कि कोई ऐसी हिंदी फिल्म हो जिससे मणिपुर के लोगों को आघात लगा हो. लेकिन एक-दो फिल्मों से किसी भाषा की फिल्मों पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है. यह मणिपुर में रहनेवाले लोगों के साथ अन्याय है. मेरी कॉम पर पूरे देश को नाज है.

मुक्केबाजी में पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन मेरी कॉम ने दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है. इसलिए जब उनके जीवन पर फिल्म बनी, तो इसे हर किसी को गर्व से देखने का अधिकार है. मणिपुर के लोगों को भी. इस अधिकार को कुछ उग्रवादी संगठनों के डर से छीना नहीं जा सकता. आरपीएफ की अपनी राजनीतिक मांग हो सकती है, लेकिन कला-संस्कृति को इससे क्या लेना-देना. यह सही है कि मणिपुर की संस्कृति काफी समृद्ध रही है और समय-समय पर पूरा देश इसे देखता रहा है. चाहे गणतंत्र दिवस हो या अन्य कोई बड़ा राष्ट्रीय समारोह, मणिपुर का नृत्य दिखता है. सभी सराहते हैं.

मणिपुर के कलाकार बॉलीवुड में भी काम कर रहे हैं. मणिपुर की अभिनेत्री सुरजा बाला हिजाम तीस से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी हैं. इसमें हिंदी फिल्में भी हैं. टेलीविजन पर जो डांस के कार्यक्रम होते हैं, उनमें उनकी भागीदारी होती है. पूरा देश एक है. किसी भी जाति, धर्म, भाषा, राज्य-क्षेत्र के लोग कहीं भी जाकर अपनी प्रतिभा दिखाते हैं. यह उनका संवैधानिक अधिकार है. भारत में दर्जनों भाषाओं में फिल्में बनती हैं और पूरे देश में दिखायी जाती हैं. हिंदी क्षेत्रों में दक्षिण की भाषाओं की फिल्में भी चलती हैं. हिंदी तो खैर राष्ट्रीय भाषा है और बड़ी संपर्क भाषा भी है. इसलिए ऐसे विरोधों का विरोध होना चाहिए. अगर ऐसी ही कहीं हिंदी का, कहीं दक्षिण की भाषाओं का, कहीं पंजाबी-बांग्ला का विरोध होने लगे, तो कैसे देश टूट के कगार पर पहुंच जायेगा.

एक फिल्म तो लोगों को जोड़ने का काम करती है. वह संदेश फैलाती है. फिल्म मेरी कॉम भी ऐसा ही काम कर रही है. मेरी कॉम के माध्यम से यही संदेश दिया जा रहा है कि कोई भी लड़की कमजोर नहीं है. किसी भी क्षेत्र में वह अपना कैरियर चुन कर या कोई भी बेहतरीन काम करके अपने देश का नाम रोशन कर सकती है. मेरी ने भी तो यही किया है. किसी भी भाषा में बनी फिल्म अच्छी या बुरी हो सकती है. इसका मूल्यांकन फिल्म के गुण-दोष पर होना चाहिए, भाषा पर नहीं. बेहतर होता कि पूरे देश की तरह मणिपुर भी मेरी कॉम पर बनी फिल्म का स्वागत करता और यह कड़ा संदेश देता कि मणिपुरी भी हिंदी फिल्मों से उतना ही प्यार करते हैं, जितना अन्य प्रदेशों के लोग.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

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