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चिट फंड घोटाला : मदन मित्रा के अर्श से फर्श तक आने की कहानी

चिट फंड कंपनियों ने पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में लाखों निवेशकों को चूना लगाया है. इनमें से अधिकतर गरीब हैं जिन्होंने अच्छे मुनाफे के लालच में अपने खून-पसीने की कमाई लगायी थी. सीबीआइ और अन्य एजेंसियों की जांच जिस दिशा में बढ़ रही है, उससे यह जाहिर हो रहा है कि फरजीवाड़ा करनेवाले इन […]

चिट फंड कंपनियों ने पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में लाखों निवेशकों को चूना लगाया है. इनमें से अधिकतर गरीब हैं जिन्होंने अच्छे मुनाफे के लालच में अपने खून-पसीने की कमाई लगायी थी. सीबीआइ और अन्य एजेंसियों की जांच जिस दिशा में बढ़ रही है, उससे यह जाहिर हो रहा है कि फरजीवाड़ा करनेवाले इन कंपनियों को राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था. यह बात साफ तौर पर खुल कर सामने आयी सारधा चिट फंड घोटाले में. पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दल के कई दिग्गज नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है. घोटाले की आंच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक पहुंचने के कयास भी लगाये जा रहे हैं. हाल ही में गिरफ्तार पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्र ने माकपा के कुछ नेताओं का नाम लिया है. मित्र बंगाल की राजनीति के पहुंचे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं. आइए बताते हैं, मदन मित्र के अर्श से फर्श तक आने की कहानी..

सेंट्रल डेस्क

सारधा चिटफंड घोटाले में गिरफ्तार पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्रा शुरू से समय के साथ चलने वाले राजनीतिज्ञ माने जाते रहे हैं. मित्र के दोस्तों में सभी राजनीतिक दलों के लोग शामिल हैं. औद्योगिक घरानों, एनजीओ और फिल्मी दुनिया में भी उनके दोस्तों की फेहरिस्त लंबी है. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी माने जानेवाले मदन मित्र इन दिनों जेल में रातें काट रहे हैं. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से हुई थी. हाल ही में उन्होंने अपना 60वां जन्मदिन मनाया था.

दक्षिण कोलकाता के एक जमींदार और व्यवसायी परिवार में जन्मे मदन मित्रा को राजनीति पारिवारिक विरासत के रूप में मिली थी. सत्तर के दशक में मदन मित्र ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और बंगाल के दिग्गज कांग्रेस नेता प्रियरंजन दासमुंशी के सहयोगी के रूप में राजनीति की शुरुआत की. छात्र नेता के रूप में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले मित्रा कई वर्षो तक दासमुंशी और कांग्रेस के वफादार सिपाही बने रहे. फिर कांग्रेस में ही मित्र और ममता बनर्जी साथ-साथ असंतुष्ट धड़े में सक्रिय हुए. ममता और मदन मित्र हमउम्र हैं और दोनों ने ही छात्र जीवन से ही राजनीति शुरू की थी. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता कहते हैं कि शुरुआती दिनों में ममता और मित्र के बीच भी तनाव के क्षण आये, दोनों बीच-बीच में अलग-अलग धड़े में सक्रिय रहे. लेकिन कांग्रेस में ही बने रहे. नब्बे के दशक में तृणमूल कांग्रेस में आने तक मदन मित्रा कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गये थे.

दक्षिण कोलकाता में वह वाम मोरचे को चुनौती देने की स्थिति में आ चुके थे. उन्होंने टैक्सी यूनियन की शुरुआत करने के साथ एसएसकेएम अस्पताल की वाम यूनियन को अपदस्थ कर अपना सिक्का जमा लिया. मदन मित्रा ने कांग्रेस में अपनी एक ऐसी हैसियत बना ली, जो पार्टी से अलग और बड़ी लगने लगी थी. उनका दावा था कि वह ऐसे व्यक्ति हैं, जो सबकी मदद करता है. इसी दौरान उन्होंने तमाम स्थानीय क्लबों और छात्र संगठनों में अपनी पैठ बढ़ा ली और पैसे के बल पर लड़कों का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए करने लगे. एक उद्योगपति का तो यहां तक कहना है कि नब्बे के दशक में उन्होंने मदन दा की मदद से एक झोपड़पट्टी से कब्जा हटवाया था, इसमें उनके सैकड़ों लड़कों ने पूरी मदद की थी.

2011 में तृणमूल कांग्रेस की बंगाल में सरकार बनने के बाद से मदन ‘दा’ हमेशा राजनीतिक विवादों के भी केंद्र में रहे. उनके बेटे की भव्य शादी काफी चर्चा में रही, जिसमें पैसा पानी की तरह बहाया गया. इस शादी के जश्न में पूरी बंगाली फिल्म इंडस्ट्री, खेल और व्यवसाय जगत के बड़े लोगों ने शिरकत की थी. यही नहीं एक महिला वकील की मौत के मामले में भी उनका नाम उछला. विपक्षी दलों ने इस मामले में उनको घेरा भी. उनकी भूमिका पर सवाल उठाये. लेकिन यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. मदन मित्र ने सारधा चिटफंड के मालिक सुदीप्त सेन की खुलेआम प्रशंसा की थी और उसे गरीबों का मसीहा बताया था.

मीडिया के साथ दोस्ताना रिश्ते रखने वाले मदन मित्र हाल के महीनों में मीडिया से बेहद खफा थे. कहते थे कि मीडिया सारधा मामले में उनका नाम बेवजह घसीट रहा है. हालांकि मीडिया में इस दौरान सारधा से जुड़ी मदन मित्र के खिलाफ जो भी खबरें आयीं, वे सबूतों और तथ्यों पर आधारित थीं.

मदन मित्रा तृणमूल कांग्रेस की भी धुरी रहे हैं. चुनाव के दौरान मित्र फंड बढ़ाने और कैडर जुटाने से लेकर पार्टी कार्यक्रमों में गाड़ियों तक का इंतजाम करते रहे हैं. लेकिन, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कभी अपने परिवहन मंत्री से ये सवाल नहीं किया कि ये सब कहां से और कैसे हो रहा है. हाल के दिनों में यद्यपि ममता ने मदन मित्र से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी थी, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद से मुख्यमंत्री खुल कर उनके साथ खड़ी हैं और इस गिरफ्तारी को भाजपा की राजनीतिक साजिश बता रही हैं.

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