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क्रूज मिसाइल ‘निर्भय’ के सफल प्रक्षेपण से और आगे बढ़ी देश की मिसाइल टेक्नोलॉजी

ओड़िशा के चांदीपुर से हाल ही में देश में निर्मित ‘निर्भय’ नामक सबसोनिक लॉन्ग रेंज क्रूज मिसाइल का दूसरा सफल परीक्षण किया गया है. परमाणु आयुध ले जाने और करीब एक हजार किलोमीटर तक मार करने में सक्षम इस मिसाइल को खास तरीके से डिजाइन किया गया है. इस कामयाबी के बहाने देश-दुनिया में मिसाइलों […]

ओड़िशा के चांदीपुर से हाल ही में देश में निर्मित ‘निर्भय’ नामक सबसोनिक लॉन्ग रेंज क्रूज मिसाइल का दूसरा सफल परीक्षण किया गया है. परमाणु आयुध ले जाने और करीब एक हजार किलोमीटर तक मार करने में सक्षम इस मिसाइल को खास तरीके से डिजाइन किया गया है.
इस कामयाबी के बहाने देश-दुनिया में मिसाइलों के विकास की मौजूदा स्थिति, इसके संचालन से संबंधित टेक्नोलॉजी, इन मिसाइलों की क्षमता, लॉन्च मोड और प्रॉपल्शन के आधार पर इनके वर्गीकरण पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..
नयी दिल्ली : स्वदेश में विकसित परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम और लंबी दूरी तक मार करने वाले क्रूज मिसाइल ‘निर्भय’ का हाल ही में ओड़िशा के समुद्री तट पर चांदीपुर से प्रायोगिक परीक्षण किया गया है. इस मिसाइल को डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवपलमेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने बनाया है. लंबी दूरी तक मार करने वाली इस मिसाइल को सामान्य मिसाइल की तरह ही लॉन्च किया जाता है.
इसके लिए कोई खास तकनीक या सुविधा विकसित नहीं की गयी है. लेकिन अन्य साधारण मिसाइल के मुकाबले इसकी मारक क्षमता ज्यादा दूर तक है. लंबी दूरी तक मार करने के लिए इस मिसाइल को खास तरीके से डिजाइन किया गया है. लॉन्च करने के बाद इस मिसाइल के विंग्स खुल जाते हैं और यह हवा का इस्तेमाल अपनी गति बढ़ाने के लिए करता है.
इसकी खासियत है कि यह सबसे कम ऊंचाई पर आसानी से उड़ सकता है. इस क्षमता के कारण यह दुश्मनों के राडार में नहीं आता और उनकी नजर से भी बच जाता है. टारगेट तक पहुंचने के बाद यह उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगा सकता है और सटीक मौके पर मार कर सकता है. इसकी मारक क्षमता 1,000 किलोमीटर की दूरी है.
डीआरडीओ के अनुसार, यह मिसाइल हवा, जमीन और पोतों से दागी जा सकेगी. मिसाइल में ‘फायर एंड फोरगेट’ सिस्टम लगा है, जिसे जाम नहीं किया जा सकता. इस मिसाइल का हवाई संस्करण विकसित किया जा रहा है, जिसे एसयू-30 एमकेआइ जैसे लड़ाकू विमानों से दागा जा सकेगा.
मिसाइल का वर्गीकरण
सामान्य तौर पर मिसाइलों को उनके प्रकार, लॉन्च मोड, रेंज, प्रोपल्शन, वारहेड और गाइडेंस सिस्टम के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है. मुख्य रूप से मिसाइल दो प्रकार के होते हैं : क्रूज मिसाइल और बैलेस्टिक मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र).
क्रूज मिसाइल
एक क्रूज मिसाइल मानव-रहित, सेल्फ प्रोपेल्ड यानी स्वचालित (प्रभाव के समय तक) गाइडेड वेहिकल है, जो एयरोडायनेमिक लिफ्ट के माध्यम से हवा में उड़ान भरने में सक्षम होता है. इसका मुख्य मकसद आयुध या किसी खास पेलोड को अपने लक्ष्य पर दागने के लिए किया जाता है. यह मिसाइल पृथ्वी के वायुमंडल के दायरे में उड़ान भरता है और जेट इंजन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है.
देश की रक्षा से जुड़े मामलों के लिए स्पीड और कार्यक्षमता के मामले में यह मिसाइल बहुत ही कारगर साबित हो सकती है. आकार, स्पीड, रेंज और इसके सतह, वायु या समुद्री जहाज अथवा पनडुब्बी में से कहां से लॉन्च किया जायेगा, इस आधार पर भी क्रूज मिसाइल को वर्गीकृत किया जा सकता है. इसमें स्पीड के आधार पर इन मिसाइलों को इस प्रकार बांटा जा सकता है:
त्नसबसोनिक क्रूज मिसाइल : इसकी रफ्तार ध्वनि की रफ्तार से कम होती है. इसकी स्पीड तकरीबन 0.8 मैक है. इस श्रेणी में सबसे लोकप्रिय मिसाइल अमेरिकी टॉमहॉक क्रूज मिसाइल है. इसके अलावा, अमेरिका के हारपून और फ्रांस के एक्सोसेट हैं.
त्नसुपरसोनिक क्रूज मिसाइल : यह मिसाइल 2 से 3 मैक की स्पीड से भागती है. यानी इसकी गति प्रत्येक एक सेकेंड में एक किलोमीटर की है. मिसाइल का मॉड्यूलर डिजाइन और इसकी कार्यक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि वॉरशिप, सबमैरिन, विविध प्रकार के एयरक्राफ्ट, मोबाइल ऑटोनोमस लॉन्चर जैसे किसी खास प्रकार के प्लेटफॉर्म से इसे जोड़ा गया है. सुपरसोनिक स्पीड का कॉम्बिनेशन और वॉरहेड मास व्यापक घातक प्रभावों को निर्धारित करते हुए उच्च गतिज ऊर्जा प्रदान करता है. ‘बह्मोस’ को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल सिस्टम का एकमात्र उदाहरण माना जाता है, जो सेवा में है.
त्नहाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल : यह मिसाइल पांच मैक से ज्यादा की रफ्तार से अपने लक्ष्य पर पहुंचने में सक्षम है. फिलहाल अनेक देश इस श्रेणी के मिसाइल को विकसित करने में जुटे हुए हैं. ब्रrाोस एयरोस्पेस भी हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल को विकसित करने की प्रक्रिया में जुटा हुआ है. इसे ब्रrाोस-2 नाम दिया गया है, जो पांच मैक से ज्यादा की स्पीड से उड़ान भरने में सक्षम है.
बैलेस्टिक मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र)
बैलेस्टिक मिसाइल उस तरह की मिसाइल है, जो अपने प्रक्षेप पथ पर आगे बढ़ता हो, भले ही वह हथियार के तौर पर मारक क्षमता से युक्त हो या नहीं. यह ठीक उसी प्रकार ऊपर जाता है, जैसे आप आसमान में पत्थर उछालते हैं. प्रक्षेपास्त्रों को उनकी रेंज और धरती की सतह के जिस हिस्से से उसे लॉन्च किया जाता है, वहां से उसके लक्ष्य तक की अधिकतम दूरी तक पेलोड के तत्वों को ले जाने के आधार पर कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है. यह मिसाइल अपने साथ एक विशाल पेलोड ले जाता है. बैलेस्टिक मिसाइलों को बड़े समुद्री जहाजों से भी लॉन्च किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर भारतीय सेना में पृथ्वी, पृथ्वी 2, अग्नि 1, अग्नि 2 और धनुष जैसे प्रक्षेपास्त्र मौजूद हैं.
रेंज के आधार पर वर्गीकरण
– शॉर्ट रेंज मिसाइल
– मिडियम रेंज मिसाइल
– इंटरमीडिएट रेंज बैलेस्टिक मिसाइल
– इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल
(स्नेत : ब्रह्मोस डॉट कॉम)
लॉन्च के तरीके के आधार पर वर्गीकरण
(1) सरफेस-टू-सरफेस मिसाइल (सतह-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल)
सरफेस-टू-सरफेस मिसाइल एक ऐसा मिसाइल है, जिसे फिक्स्ड इंस्टॉलेशन के माध्यम से किसी वाहन द्वारा लॉन्च किया जाता है. हालांकि, ज्यादातर इसमें रॉकेट मोटर से ऊर्जा प्रवाहित की जाती है, लेकिन कई बार लॉन्च प्लेटफॉर्म से इसे विस्फोटक से चार्ज किया जाता है.
(2) सरफेस-टू-एयर मिसाइल (सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल)
सतह से हवा में मार करने वाली इस प्रकार की मिसाइल को एयरक्राफ्ट्स, हेलिकॉप्टर्स और यहां तक कि बैलेस्टिक मिसाइलों को नष्ट करने के लिए एरियल टारगेट पर छोड़ा जाता है. इस प्रकार के मिसाइलों को सामान्य तौर पर एयर डिफेंस सिस्टम कहा जाता है, क्योंकि यह दुश्मनों की ओर से किये जाने वाले हवाई हमलों से बचाव करता है.
(3) सरफेस (कॉस्ट) -टू-एयर मिसाइल [सतह (समुद्र)-से-हवा में मार करनेवाली मिसाइल]
इस तरह के मिसाइल को समुद्र में जा रहे किसी समुद्री जहाज को टारगेट करने यानी उसे भेदने के लिए सतह से छोड़े जाने के लायक डिजाइन किया जाता है.
(4) एयर-टू-एयर मिसाइल (हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल)
दुश्मन के एयरक्राफ्ट्स को हवा में मार गिराने के लिए आसमान से ही छोड़े जाने वाले मिसाइल को एयर-टू-एयर मिसाइल के रूप में जाना जाता है. इसकी स्पीड 4 मैक तक होती है.
(5) एयर-टू-सरफेस मिसाइल (हवा-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल)
इस मिसाइल को इस तरह से डिजाइन किया जाता है, ताकि इसे किसी मिलिटरी एयरक्राफ्ट्स से सतह या समुद्र में किसी भी स्थान पर लक्ष्य को भेदा जा सके. ये मिसाइल आम तौर पर लेजर गाइडेंस, इंफ्रारेड गाइडेंस और जीपीएस सिगनल के माध्यम से ऑप्टिकल गाइडेंस पर आधारित होते हैं. लक्ष्य के मुताबिक गाइडेंस निर्भर करता है.
(6) सी-टू-सी मिसाइल (समुद्र-से-समुद्र में मार करने वाली मिसाइल)
इस तरह के मिसाइल को एक समुद्र जहाज से दूसरे समुद्री जहाज को मार गिराने के लिए डिजाइन किया जाता है.
(7) सी-टू-सरफेस (कॉस्ट) मिसाइल
समुद्री जहाज से जमीनी इलाके में लक्ष्य को भेदने के लिए इस मिसाइल को डिजाइन किया जाता है.
(8) एंटी टैंक मिसाइल (टैंक -रोधी मिसाइल)
यह एक प्रकार का गाइडेड मिसाइल है, जिसे हथियारों, गोला-बारूद से भरे किसी युद्धक टैंक को नष्ट करने के लिए डिजाइन किया जाता है. एंटी टैंक मिसाइल को एयरक्राफ्ट्स, हेलिकॉप्टर, टैंक या किसी सैन्य लॉन्चर पैड से लॉन्च किया जाता है.
मिसाइल में गाइडेंस सिस्टम की तकनीक
– वायर गाइडेंस: यह सिस्टम रेडियो कमांड की तकनीक पर आधारित होता है. इलेक्ट्रॉनिक काउंटर मानकों पर इसकी संवेदनशीलता अपेक्षाकृत कम होती है. इनमें कमांड सिग्नल वायर के माध्यम से संचालित होता है, जो मिसाइल के लांच होने के बाद सक्रिय होता है.
– कमांड गाइडेंस: लांच साइट या प्लेटफार्म से मिसाइल के प्रक्षेपण पथ की निगरानी के लिए कमांड गाइडेंस काम करता है. कमांड रेडियो, राडार या लेजर द्वारा दिया जाता है. कमांड का संचालन वायर या ऑप्टिकल फाइबर द्वारा किया जाता है. इस प्रकार के मिसाइलों को आम तौर पर एयर डिफेंस सिस्टम कहा जाता है, जो शत्रुओं के एरियल अटैक से बचाव करता है.
– स्थानिक तुलानात्मक गाइडेंस (टरेन कैंपेरिजन गाइडेंस): टरेन कैंपेरिजन (टीइआरसीओएम) का इस्तेमाल क्रूज मिसाइल के लिए किया जाता है. भौगोलिक स्थिति व एकत्रित जानकारी के मापने के लिए इसमें संवेदनशील अल्टीमीटर का प्रयोग किया जाता है.
– टेरेस्ट्रियल गाइडेंस : स्टार एंगल्स से मिसाइल के अनुमानित प्रक्षेप पथ के एंगल को मापने के लिए इस सिस्टम को प्रयोग में लाया जाता है.
– इनर्सियल गाइडेंस (जड़त्वीय पथप्रदर्शन) : इस सिस्टम को पूर्ण रूप से मिसाइल में स्थापित किया जाता है और इसकी प्रोग्रामिंग मिसाइल को लॉन्च किये जाने से महज कुछ समय पहले की जाती है.
– लेजर गाइडेंस: लक्ष्य की सही स्थिति का पता लगाने के लिए लेजर बीम को फोकस किया जाता है. गाइडेंस सिस्टम लेजर रिफ्लेक्शन की तकनीक पर काम करता है.
– आरएफ एंड जीपीएस रिफरेंस : आरएफ (रेडियो फ्रिक्वेंसी) और जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) तकनीकें मिसाइल गाइडेंस की अत्याधुनिक तकनीकों में से हैं. इनका इस्तेमाल लक्ष्य की वास्तविक स्थिति का सही पता लगाने के लिए किया जाता है.
मिसाइल का वर्गीकरण प्रॉपल्शन के आधार पर
– सॉलिड प्रॉपल्शन (ठोस प्रणोदन) : ठोस प्रणोदन में ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. सामान्य तौर पर यह ईंधन एल्युमिनियम पाउडर होता है. ठोस प्रणोदन को आसानी से स्टोर किया जा सकता है और ईंधन के तौर पर इसे आसानी से हैंडल किया जा सकता है. यह तेजी से भागते हुए अत्यधिक ऊंचाई पर पहुंचने में सक्षम है.
– लिक्विड प्रॉपल्शन (द्रव प्रणोदन) : द्रव प्रणोदन में ईंधन के रूप में द्रव का इस्तेमाल किया जाता है. ये ईंधन हाइड्रोकार्बन्स होते हैं. द्रव ईंधन को मिसाइल में स्टोर करना बहुत कठिन और जटिल होता है. साथ ही ऐसे मिसाइल को तैयार करने में समय ज्यादा लगता है. हालांकि, वॉल्व के माध्यम से ईंधन का नियंत्रण करते हुए किसी आपातकालीन अवस्था में द्रव प्रणोदन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है.
– हाइब्रिड प्रॉपल्शन : हाइब्रिड प्रॉपल्शन के दो चरण होते हैं- ठोस प्रणोदन और द्रव प्रणोदन. इस प्रणोदन सिस्टम के तहत दोनों सिस्टम काम करते हैं, जिससे इसमें दोनों ही तरीकों के फायदे के साथ उनके अवगुण देखने में आते हैं.
– क्रायोजेनिक : क्रायोजेनिक प्रणोदक द्रवीकृत गैस होती हैं, जिन्हें बेहद कम तापमान पर स्टोर किया जाता है. इसमें ईंधन के रूप में ज्यादातर द्रव हाइड्रोजन और ऑक्सिडाइजर के रूप में द्रव ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है.

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