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Friday, March 29, 2024

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बुजुर्गों की जेहन में आज भी कौंधती है आजादी के पूर्व की ‘ज्योत्स्ना’

ज्योत्सना के संपादक दिवंगत बैद्यनाथ मिश्रा का चार जनवरी को सासन गांव में मनाया जायेगा जन्मशताब्दी समारोह महज 14-15 वर्ष के बच्चों द्वारा निकाली जाती थी पत्रिका बहरागोड़ा : ओड़िशा और बंगाल की सीमा पर बसे बहरागोड़ा प्रखंड की साकरा पंचायत का गांव शासन शिक्षा के मामले में कितना अग्रसर है, इस बात का अंदाजा […]

ज्योत्सना के संपादक दिवंगत बैद्यनाथ मिश्रा का चार जनवरी को सासन गांव में मनाया जायेगा जन्मशताब्दी समारोह

महज 14-15 वर्ष के बच्चों द्वारा निकाली जाती थी पत्रिका
बहरागोड़ा : ओड़िशा और बंगाल की सीमा पर बसे बहरागोड़ा प्रखंड की साकरा पंचायत का गांव शासन शिक्षा के मामले में कितना अग्रसर है, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां आजादी के 13 वर्ष पहले से ही एक ओड़िया मासिक पत्रिका ज्योत्स्ना का प्रकाशन हुआ करता था. यह पत्रिका काफी आकर्षक ढंग से हस्तलिखित हुआ करती थी. इसका प्रकाशन अनवरत छह वर्षों तक होता रहा. खास बात यह है कि यह पत्रिका महज 14-15 वर्ष के बच्चों द्वारा निकाली जाती थी.
सासन के वैद्यनाथ मिश्रा उस समय इस पत्रिका के संपादक हुआ करते थे. वैद्यनाथ मिश्रा ने ओड़िया साहित्य में दर्जनों काव्य लिखे और उन्हें 1960 में ओड़िया साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था. गांव के ही युवकों द्वारा गांव में सरस्वती पुस्तकालय स्थापित की गयी थी और इसी पुस्तकालय से ज्योत्सना नामक ओड़िया मासिक पत्रिका प्रकाशित होती थी. इस पुस्तकालय की स्थापना में स्वतंत्रता सेनानी विजय कुमार पानी, सुदर्शन दास, वैद्यनाथ मिश्रा, जर्नाधन दास, जर्नाद्धन प्रहराज और पंडित हरिदास शर्मा ने अहम भूमिका निभायी थी. ओड़िया भाषा के विकास में उक्त विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. सरस्वती पुस्तकालय से ही ओड़िया मासिक पत्रिका ज्योत्सना का प्रकाशन शुरू किया गया था.
यह पत्रिका लगभग 40 पन्नों की हुआ करती थी. इस पत्रिका के साहित्य सामग्री ही दी जाती थी. इस पत्रिका के हर पन्नों में एक ओर लिखी हुई सामग्री रहती थी, तो दूसरी ओर तस्वीरें रहती थी. आज भी इस पत्रिका में कई अंक कतिपय लोगों के पास संग्रहित है. इसके पन्नों पर हाथ से लिखी हुई सामग्रियां और तस्वीरें इतनें दिनों बाद भी आकर्षक हैं.
इन चित्रों के रंग अभी भी हल्के नहीं पड़े हैं. इस पत्रिका के चित्रों के कलाकार थे पंडित हरिदास शर्मा. उनके सधे हुए हाथों की यह कलाकृति आज भी देखते ही बनती है. श्री शर्मा चारों वेद के जानकार थे. इस पत्रिका के खर्च को वैद्यानाथ मिश्रा वहन किया करते थे. शासन गांव के युवकों द्वारा स्थापित सरस्वती पुस्तकालय द्वारा शासन ओड़िया मध्य विद्यालय भी संचालित किया जाता था. इस पुस्तकालय की ओर से खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता था.
1934 में यहां एक वृहद कवि सम्मेलन भी आयोजित हुआ था. उक्त सम्म्मेलन आज भी क्षेत्र के कई बड़े-बुजुर्गों की जेहन में है. सरस्वती पुस्तकालय का नाम गोपबंधु पुस्तकालय रखा गया और आज भी पुस्तकालय का भवन अस्तित्व में है. मगर पुस्तकें नहीं है. सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण आजादी के पूर्व की यह निशानी अस्तित्व विहीन हो रही है. तब के सभी सभी युवक जो पुस्तकालय से जुड़े थे. उच्च शिक्षा ग्रहण कर अन्यत्र चले गये. पुस्तकालय के समक्ष आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ और ज्योत्सना छह वर्ष का ऐतिहासिक सफर तय कर आगे बढ़ पाने में असफल रही. तब के कई युवा आज बुजुर्ग हो गये हैं. लेकिन उनके जेहन में ज्योत्सना की कमी आज भी खल रही है. वैसे गांव के कुछ युवाओं ने उक्त पुस्तकालय को अस्तित्व में लाने का प्रयास किया था. झोपड़ी की जगह एक छोटा सा भवन बनवाया. पुस्तकालय में आलमीरा सजा कर पुस्तकें भी रखी गयी. मगर पुस्तकालय की ओर से लोग विमुख होते गये. आलमीरा और पुस्तकें गायब हो गये और सिर्फ भवन ही शेष बचा है. यह भवन आजादी के पूर्व की ज्योत्सना और यहां ंके विद्वानों की याद दिलाती है. जबकि ज्योत्सना बुजुर्गों की जेहन में आज भी कौंधती है.
पुस्तकालय को किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली. बदलते वक्त के मुताबिक पुस्तकालय की ओर लोगों का रुझान भी कम हुआ. इसलिए यह पुस्तकालय अस्तित्व विहीन होती गयी. सिर्फ भवन ही यादगार है. इस पुस्तकालय का विकास जरूरी है. ताकि आज की युवा पीढ़ी पुस्तकों से सीख ले सके तथा अपने विद्वान पूर्वजों को याद कर सके. चार जनवरी को पंडित बैद्यनाथ मिश्रा का जन्म शताब्दी समारोह धूमधाम से गांव में मनाया जायेगा.
आशुतोष मिश्रा उर्फ नना, दिवंगत बैद्यनाथ मिश्रा के पुत्र, सासन.
आज के युवा बैद्यनाथ मिश्रा तथा उनके सहयोगी विद्वानों ने प्ररेणा लें. उनको याद और नमन करने से यहां की अनोखी साहित्यिक संस्कृति महफूज रहेगी. बैद्यनाथ मिश्रा की स्मृति में पुस्तकालय का निर्माण कराया जायेगा, ताकि युवी पीढ़ी उनकी जीवनी से प्रेरणा लें.
कुणाल षाड़ंगी, विधायक, बहरागोड़ा.
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