29 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

खरसावां : तीन सदियों से हो रही है मां दुर्गा की पूजा

खरसावां : खरसावां सरकारी दुर्गा मंदिर में माता भगवती की पूजा अब भी उसी सादगी के साथ होती है, जैसा कि पूर्व में राजा राजवाड़े के समय में होता था. यहां बीत तीन सदियों से निर्बाध रूप से माता की पूजा होते आ रही है. आज तामझाम की दुनिया में भी माता की पूजा पहले […]

खरसावां : खरसावां सरकारी दुर्गा मंदिर में माता भगवती की पूजा अब भी उसी सादगी के साथ होती है, जैसा कि पूर्व में राजा राजवाड़े के समय में होता था. यहां बीत तीन सदियों से निर्बाध रूप से माता की पूजा होते आ रही है. आज तामझाम की दुनिया में भी माता की पूजा पहले की तरह सादगी के साथ होता है. पूजा के दौरान रियासत काल से चली आ रही हर परंपरा को निभाया जाता है. पूर्व में इस पूजा का आयोजन राज कोषागार से किया जाता था तथा वर्तमान में सरकारी खर्च पर होता है.

1667 में सरायकेला रियासत के ठाकुर पद्मनाभ द्वारा खरसावां रियासत की स्थापना करने के कुछ वर्ष बाद ही यहां दुर्गा पूजा का आयोजन शुरू हुआ. खरसावां रियासत के कुल 13 शासकों ने यहां मां दुर्गा के पूजा अर्चना को जारी रखा. 1947 में भारत के आजादी के बाद जब खरसावां रियासत का विलय भारत गणराज्य में हुआ तो खरसावां रियासत के तत्कालीन राजा श्रीराम चंद्र सिंहदेव ने बिहार सरकार के साथ मर्जर एग्रीमेंट कर खरसावां के हर वर्ष दुर्गा पूजा के आयोजन की जिम्मेवारी सरकार को सौंप दी.

तभी से यहां दुर्गा पूजा का आयोजन स्थानीय जनता के सहयोग से सरकारी खर्च पर होता है. बिहार के समय में दुर्गा पूजा के लिये काफी कम राशि मिलती थी. झारखंड बनने के बाद राशि में बढ़ोतरी हुई है. इस वर्ष दुर्गा पूजा के लिये सरकारी फंड से 85 हजार रुपये खर्च होंगे. माता की पूजा तांत्रिक विधि से होती है.

नौ सदी पुरानी है आनंदपुर राजघराने में मां अष्टभुजी की पूजा की परंपरा
1205 ई. में अस्तित्व में आया था
तभी से हो रही है मां अष्टभुजी की निरंतर पूजा-अर्चना
राजदरबार में तांत्रिक पद्धति से होती है मां की पूजा
राधेश राज4प्रमोद मिश्रा
1205 ईस्वी में आनंदपुर को राजआनंदपुर के नाम से जाना जाने लगा. इससे पूर्व यह पोड़ाहाट स्टेट के रूप में जाना जाता था. तब से लेकर आज तक यहां मां दुर्गा की पूजा आयोजित हो रही है. यहां राज दरबार के सिंहद्वार में जितिया के दूसरे दिन से पारंपरिक ढोल-नगाड़ों के साथ माता का आवाहन किया जाता है. ढोल-नगाड़ों की गूंज ग्रामीणों को मां दुर्गा के आगमन की सूचना देती है. आदिवासी बहुल क्षेत्र के लोगों को दुर्गापूजा का विशेष इंतजार रहता है. आदिवासी संस्कृति का जतरा पर्व पूरे क्षेत्र में विजयादशमी के साथ ही शुरू होता है. राजदरबार में मां दुर्गा की तांत्रिक पद्धति से पूजा की जाती है.
खंडा पूजा की है परंपरा : नवरात्र शुरू होने के पश्चात वेलवरण के दूसरे दिन (सप्तमी तिथि को) प्रखंड के सभी राजपूत अपने घर से खंडा (तलवार) लेकर नदी जाते हैं. नदी में खंडा को विधिवत स्नान कराने के बाद राजदरबार के पूजा स्थल में लाकर स्थापित किया जाता है. उस दिन से विजयादशमी तक रोज पूजा चलती है.
विजयादशमी पर खंडाखेल की परंपरा : मां दुर्गा की पूजा के बाद आनंदपुर राज दरबार में खंडा खेल (तलवारबाजी) की पुरानी परंपरा है. इसमें मुख्य मार्ग पर आयोजित खंडाखेल को देखने के लिए आसपास के ग्रामीण भी पहुंचते हैं.
आनंदपुर सार्वजनिक पूजा समिति
ज्योतींद्र प्रताप सिंहदेव अध्यक्ष, मनोज गुप्ता सचिव, अनूप सिंहदेव सह सचिव, उज्ज्वल महापात्र एवं सुमंत साहू कोषाध्यक्ष.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें