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कमजोर मॉनसून की आशंका

पिछले साल अगस्त-सितंबर के महीने में भयावह सूखे से त्रस्त महाराष्ट्र के लातूर और बीड में सरकार को पानी पहुंचाने के लिए रेलगाड़ी चलानी पड़ी थी. बूंद-बूंद को तरसते लोग आपस में ही मारपीट पर उतारू थे और कई जगहों पर स्थिति से निबटने के लिए सुरक्षा के विशेष इंतजाम करने पड़े थे. खेती की […]

पिछले साल अगस्त-सितंबर के महीने में भयावह सूखे से त्रस्त महाराष्ट्र के लातूर और बीड में सरकार को पानी पहुंचाने के लिए रेलगाड़ी चलानी पड़ी थी. बूंद-बूंद को तरसते लोग आपस में ही मारपीट पर उतारू थे और कई जगहों पर स्थिति से निबटने के लिए सुरक्षा के विशेष इंतजाम करने पड़े थे. खेती की बरबादी और मवेशियों की दुर्दशा भी भयानक थी. अगर समय रहते न चेता गया, तो देश के कई हिस्सों में अकाल की यही स्थिति इस साल भी पैदा हो सकती है, क्योंकि पिछले साल के मुकाबले इस साल मॉनसून के कमजोर रहने के आसार हैं.
सरकारी रिपोर्टों में बारिश के लिहाज से पिछले साल को सामान्य करार दिया गया है. मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक पिछले साल जून से सितंबर महीने के बीच बारिश का औसत 97 फीसदी था. और, मॉनसून की वर्षा के एेतबार से सामान्य करार दिये गये 2016 में उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड से लेकर महाराष्ट्र के मैसूर और तमिलनाडु के तिरुवल्लुर और पेराम्बूर तक किसान पानी की किल्लत से जूझते रहे. इस साल हालात और भी बिगड़ सकते हैं, क्योंकि मौसम के पूर्वानुमान से जुड़ी संस्था स्काइमेट ने कहा है कि 2017 में जून से सितंबर के बीच मॉनसूनी बारिश का औसत 95 फीसदी रहेगा.
संस्था ने अल निनो के असर की आशंका जतायी है जो भारतीय उपमहाद्वीप में मॉनसून के चक्र को इस साल प्रभावित कर सकता है. सरकार के सामने स्थिति अभी से बहुत स्पष्ट है, इसलिए उसे समय रहते सूखे से निपटने के उपाय करने चाहिए. देश के 91 बड़े जलागारों में उनकी भंडारण क्षमता का केवल 40 फीसद पानी बचा है.
मॉनसूनी बारिश के कम रहने की सूरत में पेयजल और सिंचाई से लेकर बिजली-उत्पादन तक के लिए पानी की आपूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में सोचना होगा. ज्यादा गर्मी पड़ने की स्थिति में बिजली की मांग बढ़ेगी. बढ़ी हुई मांग के अनुरूप बिजली-उत्पादन के लिए सरकार को पहले से पानी का इंतजाम करना होगा. देश के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन साढ़े छह करोड़ लोगों को साफ पेयजल हासिल नहीं है. देश में तकरीबन 17 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं और इनमें लगभग ढाई करोड़ परिवारों के घर में ही पाइप से पेयजल पहुंचता है.
ऐसे परिवार सूखे की स्थिति में पानी की गंभीर किल्लत का सामना करेंगे और सरकार को इन्हें पेयजल पहुंचाने के प्रबंध करने होंगे. देश की लगभग 50 फीसदी कृषि भूमि सिंचाई के लिए मॉनसून की बारिश पर निर्भर है. कम बारिश से देश के एक बड़े हिस्से में खेतिहर समाज की जीवन और जीविका की स्थितियां प्रभावित होंगी. खेतिहरों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार को पहले से सोचना होगा.

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