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पानी पर बातचीत

दिल चाहे न मिले, हाथ मिलाने का दस्तूर जरूर निभाया जाना चाहिए. क्या पता एक दिन दिल के मिलने की भी सूरत निकल आये! दो पड़ोसी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बारे में यह बात खास तौर से लागू होती है, क्योंकि आपसी रिश्तों पर इतिहास के दबाव का बोझ इतना ज्यादा है कि […]

दिल चाहे न मिले, हाथ मिलाने का दस्तूर जरूर निभाया जाना चाहिए. क्या पता एक दिन दिल के मिलने की भी सूरत निकल आये! दो पड़ोसी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बारे में यह बात खास तौर से लागू होती है, क्योंकि आपसी रिश्तों पर इतिहास के दबाव का बोझ इतना ज्यादा है कि कश्मीर में घुसपैठ, सीमा-विवाद और आतंकवाद को शह देने जैसे मसलों के कारण दोनों के रिश्ते कभी ठीक नहीं रहे. हालिया आतंकी हमलों की वजह से राजनयिक स्तर की आपसी बातचीत भी बंद हो गयी. तल्खी में भारत ने सिंधु जल-संधि की शर्तों की समीक्षा की बात भी कह दी थी.
बहरहाल, कुछ अच्छी बातें भी हुई हैं, जिनमें सिंधु नदी जल आयोग पर बातचीत की शुरुआत भी शामिल है. वर्ष 1960 में विश्वबैंक की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच नदी-जल बंटवारे के एक फाॅर्मूले पर सहमति के बाद आयोग की स्थापना हुई थी. नियम के मुताबिक, इस आयोग से जुड़े मसलों पर दोनों देशों को हर साल बातचीत करनी होती है और पानी के बंटवारे को लेकर किसी पक्ष को कोई शिकायत हो, तो मिल-बैठ कर आपस में सुलझाना होता है. कोई मसला न सुलझे, तो समाधान के लिए उसे विश्वबैंक को भेजा जाता है. झेलम और चिनाब नदी पर कायम भारत के किशनगंगा और रैटल हाइड्रो प्रोजेक्ट ऐसे ही मसले हैं. पाकिस्तान कहता है कि इन परियोजना की जल-धारण क्षमता ज्यादा होने के कारण पाकिस्तान को उसके हिस्से का पानी कम मिल रहा है.
भारत का कहना है कि उसने पाकिस्तान के हिस्से का पानी कभी कम नहीं किया. पाकिस्तान ने इन दोनों परियोजनाओं की जल-धारण क्षमता कम करवाने के लिए विश्वबैंक की मदद मांगी थी, लेकिन अब मसले पर भारत की पहल पर बातचीत को राजी हो गया है. पाकिस्तान इस बातचीत में चिनाब नदी पर बने भारत के पकुलदुल, मियार और कलनाई हाइड्रो-प्रोजेक्ट पर भी चर्चा करना चाहता है. भारत बातचीत के इस अवसर का इस्तेमाल गिलगिट-बाल्टिस्तान से जुड़ी अपनी चिंताओं के इजहार में कर सकता है.
पाक-अधिकृत कश्मीर से सटे इस इलाके से होकर पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा बनना है. इलाके केलोग इसके विरुद्ध हैं और इलाके में बढ़ते सैन्य जमावड़े को लेकर भारत चिंतित है. गिलगिट-बाल्टिस्तान को आधिकारिक प्रांत बनाने की पाकिस्तान की पहलकदमी भी भारत के हितों के विरुद्ध है, क्योंकि सीमा-विवाद अभी सुलझा नहीं है. पाकिस्तान अगर आर्थिक गलियारे और आतंकवाद के बारे में भारत की शिकायतों पर नये सिरे से अपने रुख पर विचार करने का साहस दिखाये, तो वह नदी जल बंटवारे सहित कई मामलों में भारत से सकारात्मक पहल की उम्मीद कर सकता है.

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