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बांधों पर पुनर्विचार जरूरी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंगा नदी में इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जल-मार्ग नहीं बनाने और फरक्का बांध को तोड़ने की मांग फिर से की है. उनका कहना है कि जल-मार्ग में प्रस्तावित जलाशयों के निर्माण से राज्य में बाढ़ का खतरा ज्यादा बढ़ जायेगा. नदियों पर छोटे-बड़े बांधों की उपयोगिता पर बहस पुरानी है और […]
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंगा नदी में इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जल-मार्ग नहीं बनाने और फरक्का बांध को तोड़ने की मांग फिर से की है. उनका कहना है कि जल-मार्ग में प्रस्तावित जलाशयों के निर्माण से राज्य में बाढ़ का खतरा ज्यादा बढ़ जायेगा. नदियों पर छोटे-बड़े बांधों की उपयोगिता पर बहस पुरानी है और इस संबंध में अब तक कोई सहमति नहीं बन पायी है.
लेकिन, सभी पक्ष इतना जरूर स्वीकार करते हैं कि ऐसी परियोजनाओं से दीर्घकालीन नुकसान अधिक हैं. भारत में 14.5 हजार किमी लंबे जल-मार्ग बनाने की संभावना है, पर गाद हटाने और बहाव को सुचारू बनाये रखने की चुनौती के कारण इस रास्ते पर समूचे यातायात का महज तीन फीसदी ही संचालित होता है.
चीन और यूरोपीय संघ में यह अनुपात क्रमशः 47 और 44 फीसदी है. केंद्र सरकार ने जल-मार्गों के विकास को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है, जिसके तहत इलाहाबाद से हल्दिया के बीच 1,620 किमी रास्ता तैयार करने की योजना सबसे बड़ी है. हालांकि, इस दिशा में 1986 से ही काम हो रहा है, पर वांछित प्रगति नहीं हो पायी है. ऐसे में मौजूदा सरकार के 105 जल-मार्गों के बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के पूरे होने को लेकर आशंकाएं हैं.
सरकार का दावा तो है कि पर्यावरण की सुरक्षा के साथ बहाव को नियमित रखने जैसे जरूरी पहलुओं पर समुचित तैयारी की गयी है, लेकिन यह रेखांकित करना जरूरी है कि मौजूदा परियोजनाओं से संबद्ध नदियों में ताजा पानी बहता है और मॉनसून के बाद इनमें पानी बहुत कम हो जाता है. साथ ही, सिंचाई और पीने के लिए पानी की आपूर्ति बरकरार रखना भी महत्वपूर्ण है. नीतीश कुमार की चिंता वाजिब है कि अनेक रास्ते में चेक डैम बनाने से गाद की समस्या विकराल हो जायेगी, जिसकी वजह से बाढ़ का खतरा बढ़ जायेगा.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण फरक्का बांध है, जिसे नष्ट करने की सलाह अनेक विशेषज्ञ दे चुके हैं. इस संदर्भ में इस चेतावनी को भी मद्देनजर रखना होगा कि अगर सोच-समझ कर इसे नष्ट नहीं किया गया, तो इससे पारिस्थितिक संकट भी पैदा हो सकता है. विकास की दौड़ में हमारे नीति-निर्माता अक्सर यह भूल जाते हैं कि नदियां सिर्फ पानी की निरंतर आपूर्ति का तंत्र नहीं हैं, बल्कि उनके साथ पर्यावरण और जन-जीवन का गहरा संबंध होता है.
उन्हें निर्बाध बहने देना और बहुत ही सीमित स्तर पर हस्तक्षेप करना ही उन्हें और हमें बचाने का एकमात्र उपाय है. केंद्र सरकार को जल-मार्ग के मामले में किसी भी ठोस पहल से पहले राज्य सरकारों और विशेषज्ञों की राय पर जरूर विचार करना चाहिए. साथ ही, देश-दुनिया के अब तक के अनुभवों की गंभीर समीक्षा भी की जानी चाहिए. अन्यथा विकास की जुगत में हम विनाश को ही आमंत्रण देंगे.
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