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महिलाओं का प्रदर्शन

अमेरिका के 670 से अधिक और दुनिया के 70 शहरों में अमेरिकी महिलाओं के नेतृत्व में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. संख्या के लिहाज से ये प्रदर्शन देश के इतिहास के सबसे बड़े प्रदर्शन हैं. चुनावी अभियान में ट्रंप ने महिलाओं, प्रवासियों और अल्पसंख्यकों के बारे में कई बार […]

अमेरिका के 670 से अधिक और दुनिया के 70 शहरों में अमेरिकी महिलाओं के नेतृत्व में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. संख्या के लिहाज से ये प्रदर्शन देश के इतिहास के सबसे बड़े प्रदर्शन हैं. चुनावी अभियान में ट्रंप ने महिलाओं, प्रवासियों और अल्पसंख्यकों के बारे में कई बार अभद्र बयान दिये थे तथा उनकी नीतियों के बारे में कई तरह की आशंकाएं जतायी जा रही हैं.
होनोलुलु की एक बुजुर्ग महिला टेरेसा शूक ने नवंबर में सोशल मीडिया पर ट्रंप को अमेरिकी मूल्यों के बारे में संदेश देने के लिए एक प्रदर्शन के आयोजन का विचार दिया था. धीरे-धीरे यह विचार एक आंदोलन का आधार बनता चला गया, क्योंकि आज बड़ी संख्या में अमेरिकी ट्रंप को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. लेकिन, इस आंदोलन का यह विस्तार और बहुल स्वरूप हमारे समय की अभूतपूर्व घटना है.
इन प्रदर्शनों की कोई निश्चित मांग नहीं है और इनका मुख्य आधार सभी नागरिकों के सम्मान और अधिकार की पक्षधरता है. महिलाओं द्वारा इनका नेतृत्व किया जाना इन्हें एक विशिष्टता भी देता है. ट्रंप राष्ट्रपति जरूर बन गये हैं, पर यह भी एक सच है कि उन्हें हिलेरी क्लिंटन की तुलना में कम मत मिले हैं. उनके रवैये को लेकर उनकी अपनी पार्टी में भी अलग-अलग राय हैं. ऐसे में उन्हें इन प्रदर्शनकारियों की बात पर समुचित गौर करना चाहिए, क्योंकि अब उन्हें पूरे देश का नेतृत्व करना है. उन्हें ऐसी नीतियों से परहेज करना चाहिए, जिनसे अमेरिकी लोकतंत्र और विविधतापूर्ण समाज को नुकसान पहुंचने की आशंका हो. यदि वे सचमुच अमेरिका को ‘फिर से महान बनाने’ के लिए प्रयासरत हैं, तो उन्हें यह समझना होगा कि बड़ी आबादी को अपमानित कर या उसे हाशिये पर धकेल कर इस लक्ष्य की पूर्ति संभव नहीं है.
बहरहाल, इन प्रदर्शनों से बाकी दुनिया को भी सबक लेना चाहिए कि अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को बरकरार रखने और उन्हें मजबूत करने के लिए नागरिकों को सदैव सचेत और संघर्षरत रहना चाहिए. सब कुछ सत्ता के जिम्मे छोड़ कर निश्चिंत नहीं रहा जा सकता है. महिलाओं के इन प्रदर्शनों से अब तक हिंसा की छिटपुट खबरें भी नहीं आयी हैं और न ही पुलिस को कहीं बल-प्रयोग करना पड़ा है. इससे भी हम भारतीयों को सीखना चाहिए. अमेरिकी प्रदर्शनों के लोकतांत्रिक राजनीति पर आगामी दिनों में असर को देखना और उसकी पड़ताल करना भी दिलचस्प होगा.

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