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अब तो सुधरें ‘बयानवीर’

सूचना-तकनीक की क्रांति के मौजूदा दौर में, जब निरंतर चर्चा में बने रहना लोकप्रियता का एक पैमाना माना जाने लगा हो, कुछ नेताओं ने अनर्गल प्रलाप के जरिये सुर्खियां बटोरने में महारात हासिल कर ली है. अपनी राजनीति चमकाने के ख्याल से वे ऐसे आधारहीन बयान देने में भी नहीं हिचकते, जो किसी की भावनओं […]

सूचना-तकनीक की क्रांति के मौजूदा दौर में, जब निरंतर चर्चा में बने रहना लोकप्रियता का एक पैमाना माना जाने लगा हो, कुछ नेताओं ने अनर्गल प्रलाप के जरिये सुर्खियां बटोरने में महारात हासिल कर ली है.
अपनी राजनीति चमकाने के ख्याल से वे ऐसे आधारहीन बयान देने में भी नहीं हिचकते, जो किसी की भावनओं को आहत करते हों. उत्तर प्रदेश के बड़बोले मंत्री आजम खान का नाम इसमें प्रमुखता से शामिल है. बुलंदशहर में हाइवे पर लुटेरों द्वारा गत 29 जुलाई को मां-बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में यह कह कर तो उन्होंने संवेदनहीनता की सारी हदें लांघ दी कि ‘यह घटना राजनीतिक साजिश का नतीजा हो सकती है.’
ऐसा कह कर उन्होंने न केवल पीड़िता का मजाक उड़ाया, बल्कि मंत्री के नाते जांच को प्रभावित करने की कोशिश भी की. जिस सरकार का मंत्री ऐसी भाषा बोले, पीड़ित को उससे न्याय की कितनी उम्मीद रह जायेगी? आखिर पीड़ित परिवार की न्याय की गुहार पर सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही सख्ती दिखायी है. अदालत ने आजम खान और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि ऐसे आपत्तिजनक बयान के मद्देनजर क्यों नहीं आपराधिक मामला दर्ज किया जाये?
और क्या ऐसे बयान अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आते हैं? लेकिन, अफसोस कि सर्वोच्च अदालत की फटकार के बाद भी आजम खान शर्मिंदा नहीं हुए और कहा कि ‘मैं अपने बयान पर कायम हूं.’ साथ ही पूर्व के बयान पर लीपापोती और महिलाओं की सुरक्षा के प्रति खुद को सजग बताने के प्रयास में उन्होंने यह भी कह दिया कि दुष्कर्म के ऐसे मामलों में इसलामिक कानून लागू किया जाना चाहिए और एक हफ्ते में सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए. यह पहली बार नहीं है जब आजम ने विवादित बोल से अपनी, अपनी पार्टी और प्रदेश सरकार की किरकिरी करायी है. बावजूद इसके, उनका मंत्री पद पर बने रहना साबित करता है कि प्रदेश सरकार को अपने नागरिकों के मान-सम्मान से ज्यादा अपने सत्ता-समीकरणों की फिक्र है.
विभिन्न नेताओं के विवादित एवं संवेदनहीन बयानों पर उनकी पार्टी या सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं होने का ही नतीजा है कि ऐसे कुछ बयानवीर नेता अब हर पार्टी और प्रदेश में सुर्खियां बटोर रहे हैं. राज्य में चुनाव का मौसम हो, तो ऐसे नेताओं की सक्रियता और बढ़ जाती है. उम्मीद है कि आजम खान के मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे गैर-जिम्मेवार नेताओं और उनके दलों को सही राह दिखायेगा. कहने की जरूरत नहीं कि राजनेताओं को आम जनता के प्रति संवेदनशील और जवाबदेह बनाये बिना जनतंत्र मजबूत नहीं हो सकता.

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