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पर्यावरण नहीं बचा तो सांस पर भी आफत

पटना में वायु प्रदूषण के खतरे को लोग लंबे समय से झेल रहे हैं. अब सरकार ने भी इसे स्वीकार किया है. विधान परिषद में पर्यावरण एवं वन मंत्री पीके शाही ने माना कि पटना में वायु प्रदूषण का स्तर मानक से ढाई गुना तक ज्यादा है. वायु प्रदूषण का मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति घन […]

पटना में वायु प्रदूषण के खतरे को लोग लंबे समय से झेल रहे हैं. अब सरकार ने भी इसे स्वीकार किया है. विधान परिषद में पर्यावरण एवं वन मंत्री पीके शाही ने माना कि पटना में वायु प्रदूषण का स्तर मानक से ढाई गुना तक ज्यादा है. वायु प्रदूषण का मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, लेकिन इसी महीने पटना में यह स्तर 234 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मापा गया. सरकार की यह स्वीकारोक्ति इस बात की ओर इशारा कर रही है कि स्थिति खतरनाक है और अलर्ट होने की जरूरत है. दरअसल, पटना का फैलाव जिस अनियोजित तरीके से होता गया है, वैसे में एक दिन ऐसी नौबत आनी थी. शहर में आबादी का घनत्व लगातार बढ़ा. नयी इमारतों का निर्माण धड़ल्ले से हो रहे हैं.

उनसेनिकलने वाले धूल-कण आखिर कहां जायेंगे? सड़कों पर ऑटो, निजी वाहनों की भरमार है. इनसे निकलने वाला धुआं हवा में जहर घोलता है. मिलावटी डीजल-पेट्रोल की जांच के लिए कोई अभियान चलता नहीं दिखता. कहने को 15 साल से अधिक पुरानी गाड़ियों केपरिचालन पर प्रतिबंध है, लेकिन जमीन पर इस आदेश का कोई असर नहीं है. नये-नये मोहल्ले बस रहे हैं, लेकिन पार्को और हरित पट्टी के लिए उसमें कोई जगह नहीं है. हर मोहल्ले में कचरा खुले में फेंका जाता है. ऐसे में वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्र तो बढ़ेगी ही. यह स्थिति कोई एक दिन में नहीं आयी है. पर्यावरण रक्षा के प्रतिनासमझी और उपेक्षा के भाव के कारण नौबत यहां तक आयी है. नासा ने 2005 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें अमेरिका के लॉस एंजिल्स की तुलना करते हुए कहा गया था कि बिहार के वायु मंडल में प्रदूषण की मात्रा करीब पांच गुना अधिक है.

पटना के वायु प्रदूषण को लेकर विधान परिषद में मामला गूंजा, तो बात सतह पर आयी, लेकिन राज्यके दूसरे बड़े शहरों में भी कमोबेश ऐसी स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता. प्रदूषण के आंकड़ों को चेतावनी के रूप में लेना ही होगा, अन्यथा इसका कुप्रभाव अलग-अलग रूपों में दिखेगा. चिकित्सक मानते हैं कि फेफड़े और आंख की कई बीमारियों का जनक वायु प्रदूषण है. प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के मसले को सिर्फ सरकारी एजेंसियों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. इसकी पहल नहीं की गयी, तो पटना के लोगों को जहरीली हवा में सांस लेना होग्

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