जुलाई में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने से पहले जून माह में उत्पादन में कमी और विमुद्रीकरण विकास दर के लिए अवरोधक बने. अर्थव्यवस्था के लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य पर घिरती सरकार स्थिति को नियंत्रित करने और उम्मीदों को बरकरार रखने का भरोसा दिला रही है, लेकिन परेशानियों के कारगर समाधान की फिलहाल कोई तस्वीर साफ नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्रा बैंक योजना, मुफ्त रसोई गैस योजना, सस्ती एलइडी योजना, सड़कों के निर्माण, महंगाई नियंत्रण आदि का हवाला देकर अपनी सरकार के प्रदर्शन को यूपीए सरकार के मुकाबले बेहतर बताया है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि विकास, वित्तीय घाटा, महंगाई और विदेशी मुद्रा भंडार के मामले मौजूदा सरकार का रिकॉर्ड पिछली सरकार से बेहतर है. मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में विस्तार और आठ प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ोतरी राहत के संकेत दे रहे हैं.
महंगाई, व्यापार व वित्तीय घाटे की स्थिति नियंत्रण में है, स्टॉक मार्केट भी ऊंचाई पर है, तेल कीमतें अमूमन स्थिर हैं और माॅनसून सामान्य रहा है. पर, अर्थव्यवस्था की गिरावट को थामने और इससे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए निवेश और नीतिगत मानकों पर व्यापक फैसले लेने की जरूरत है. संगठित क्षेत्र के आंकड़ों के प्रदर्शन में अर्थव्यवस्था का पूरा सच नहीं होता है. पिछले एक वर्ष में असंगठित क्षेत्र की हालत बहुत खराब हुई है और स्थिति सामान्य होने में काफी समय लग सकता है. रोजगार सृजन के मोर्चे पर निराशाजनक हालात हैं. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार को निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने के साथ-साथ कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए. कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण को प्राथमिकताओं में शामिल करना बहुत जरूरी है.
मैन्युफैक्चरिंग और निजी निवेश खर्च में बढ़ोतरी से विकास दर सुधार की दिशा में बढ़ सकती है. जानकार जीएसटी, नये इन्सॉल्वेंसी कानूनों, मौद्रिक नियमों और आधार जैसे संरचनात्मक सुधारों से लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की उम्मीद जता रहे हैं. बैंकिंग सेक्टर पर फंसे कर्ज के बोझ को उतारने में देरी नुकसानदेह हो सकती है. बहरहाल, हमारी अर्थव्यवस्था का मूल ढांचा मजबूत है और आशा की जानी चाहिए कि ठोस सुधारात्मक पहल से वह एक बार फिर से दुनिया की सर्वाधिक तेज गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जायेगी.