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Friday, March 29, 2024

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मैट्रिक की कॉपियों की जांच शुरू होने में संशय !

सासाराम शहर : राज्य में शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. हाल के वर्षों में शिक्षा में यहां ऐसे ऐसे खेल हुए हैं कि देश भर में बिहार की साख पर असर पड़ा है. इस बार इंटर व मैट्रिक की परीक्षा कदाचार रहित आयोजित कर बिहार माध्यमिक परीक्षा बोर्ड ने थोड़ी बहुत साख […]

सासाराम शहर : राज्य में शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. हाल के वर्षों में शिक्षा में यहां ऐसे ऐसे खेल हुए हैं कि देश भर में बिहार की साख पर असर पड़ा है. इस बार इंटर व मैट्रिक की परीक्षा कदाचार रहित आयोजित कर बिहार माध्यमिक परीक्षा बोर्ड ने थोड़ी बहुत साख वापस पाने की कोशिश भी की तो शिक्षकों का आंदोलन उसके प्रयास पर पानी फेर रहा है.
इस वजह से अभी तक इंटर परीक्षा की कॉपियों का मूल्यांकन शुरू नहीं हो पाया है. पुनर्निधारित कार्यक्रम के अनुसार एक अप्रैल से मैट्रिक परीक्षा की कॉपियों की मूल्यांकन शुरू होना है, लेकिन उस पर भी संशय के बादल छाये हुए हैं. बिहार राज्य वित्त रहित शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ, जिला माध्यमिक शिक्षक संघ तथा राज्य स्तरीय स्नातक व पल्स टू शिक्षक संगठन द्वारा इंटर परीक्षा के मूल्यांकन का बहिष्कार किये जाने से बच्चों के भविष्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित है.
अभिभावक रमेश पांडेय, हरिशंकर सिंह, कामता कुशवाहा, शिवबचन यादव आदि का कहना है कि सरकार से अपनी मांगों को लेकर इन्हें आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन प्रश्न उठता है कि आखिर बच्चों ने क्या बिगाड़ा है कि उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है? अफसोस की बात है कि आंदोलन का जिस स्तर पर असर पड़ने वाला है, उसे लेकर शिक्षा मंत्री व सरकार कतई गंभीर नहीं है. अन्यथा, मूल्यांकन कार्य को ले अबतक कोई न कोई रास्ता निकाल लिया जाता.
परीक्षा के परिणाम में होगी देरी
परीक्षा से लेकर रिजल्ट प्रकाशन तक की प्रक्रिया के जानकार एक अधिकारी ने बताया कि मूल्यांकन कार्य में विलंब का खामियाजा सीधे-सीधे बच्चों को भुगतना होगा. परीक्षा का परिणाम आने में देरी से बच्चों की आगे की पढ़ाई भी प्रभावित होगी. उन्हें नामांकन लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. न तो शासन-प्रशासन इसमें आगे आ रहे हैं और न ही आंदोलनकारियों को इस बात कि चिंता है कि वे बच्चों के भविष्य के साथ मजाक कर रहे हैं. वहीं विभागीय अधिकारी का कहना है कि मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करने वाले परीक्षकों की मांगें सरकार से हैं. मामला जिला स्तर का नहीं बल्कि राज्य स्तर का है. ऐसे में वे कुछ नहीं कर सकते.
शिक्षकों की मांगें
आंदोलनकारी शिक्षकों की मांगों में समान काम के बदले समान वेतन की नीति को लागू करने के अलावा वित्त रहित शिक्षा नीति को समाप्त कर शिक्षकों का स्थायी करना, पेंशन की व्यवस्था करना, अनुदान का बकाया एकमुश्त शिक्षक व कर्मियों के खाते में भेजना, समुचित वेतनमान का निर्धारण करना, इंटरकर्मियों की सेवानिवृत्ति 65 वर्ष व स्नातक शिक्षकों की 70 वर्ष करने, कर्मियों की सेवा पुस्तिका खोलना आदि शामिल है.
बहिष्कार करनेवाले शिक्षकों का कटेगा वेतन
मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करने वाले परीक्षकों की मांगें सरकार से हैं. हालांकि, अब यह जितना लंबा खिंच रहा है, इससे इसका असर रिजल्ट के प्रकाशन पर पड़ सकता है. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को मूल्यांकन शुरू करने का निर्देश दिया गया है. निर्देश के बावजूद मुल्यांकन कार्य शुरू नहीं करने वाले शिक्षकों के वेतन की कटौती कर उन पर कार्रवाई की जायेगी. वित्तरहित शिक्षकों से भी अतिशीघ्र मूल्यांकन कार्य शुरू करने की अपील की गयी है. ताकि, बच्चों का भविष्य खराब न हो.
डॉ अशोक कुमार सिंह, डीइओ, रोहतास
आंदोलन के दौरान अक्सर पिसते हैं बच्चे
ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जब भी शिक्षकों को कोई आंदोलन करना होता है वे बच्चों को ढाल बना लेते हैं. कभी बच्चों की शिक्षा को बाधित कर तो कभी उनकी परीक्षाओं का मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार कर अपनी मांगों को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाते हैं.
इस बार भी यही हुआ है. वित्तरहित व अन्य नियोजित शिक्षकों ने बच्चों को ढाल बनाकर मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार कर दिया है. इस बार मैट्रिक की परीक्षा देने वाले मयंक के पिता बैंक कर्मी अविनाश कुमार ने बताया कि जिस तरह से बिहार बोर्ड की स्थिति है, उन्हें अफसोस हो रहा है कि उन्होंने अपनी बच्चे को इस बोर्ड से क्यों पढ़ाई करायी. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अथवा अन्य राज्य बोर्ड में इस तरह की बातें कभी नहीं सुनी जाती.
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