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Thursday, March 28, 2024

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झारखंड के आदिवासियों के दम पर गुलजार है अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

पोर्ट ब्लैयर से लौटकर आनंद मोहन बंगाल की खाड़ी के ह्दय में बसा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह़ भारत की मुख्य भूमि से करीब 1200 किलोमीटर दूर मीलों समुद्र से घिरे इस दुरूह भूखंड का अतीत झारखंड से जुड़ा है़ इस द्वीप समूह को देश-दुनिया के बीच मनोरम-आकर्षक बनाने में झारखंडियों ने अपने पसीने बहाये है़ं अंडमान-निकोबार […]

पोर्ट ब्लैयर से लौटकर आनंद मोहन

बंगाल की खाड़ी के ह्दय में बसा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह़ भारत की मुख्य भूमि से करीब 1200 किलोमीटर दूर मीलों समुद्र से घिरे इस दुरूह भूखंड का अतीत झारखंड से जुड़ा है़ इस द्वीप समूह को देश-दुनिया के बीच मनोरम-आकर्षक बनाने में झारखंडियों ने अपने पसीने बहाये है़ं अंडमान-निकोबार के रोमांचकारी इतिहास के पन्ने जब-जब पलटे जायेंगे, झारखंडियों के पौरुष की गौरव गाथा भी याद की जायेगी़ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को रहने लायक बनाने में झारखंड के आदिवासियों का अहम योगदान है़.

अंडमान-निकोबार में 572 द्वीप है़ं इसमें 37 द्वीप समूह में ही जनसंख्या है, बाकी खाली पड़े है़ं 1918 के आसपास झारखंड के छोटानागपुर से आदिवासियों को अंडमान-निकोबार ले जाया गया़ पहली बार करीब 400 झारखंडी अंडमान ले जाये गये़ इसके बाद यहां से आदिवासियों के जाने का सिलसिला जारी रहा़ इस द्वीप समूह में जंगल की कटाई के काम में झारखंडी लगाये गये़ निर्माण कार्य से लेकर रास्ता बनाने का काम झारखंड के लोगों ने किया़ अथाह समुद्र के बीच इस भू-भाग को सुंदर बनाया़.

विपरीत परिस्थितियों में झारखंड से गये साहसी और कर्मशील लोगों ने दूसरों के जीवन को सहज बनाने में अपना योगदान दिया़ सिमडेगा, खूंटी, गुमला, चाइबासा, रांची सहित कई इलाके से झारखंडियों को यहां बसाया गया़ एक आंकड़े के मुताबिक, 1946 से 50 तक झारखंड के 12 हजार से ज्यादा लोगों को अंडमान-निकोबार के अलग-अलग द्वीप समूहों में लाया गया था़ इनमें अधिकतर मुंडा, उरांव, लोहरा, खरिया आदिवासी थे. वन विभाग में इन्हें नौकरी दी गयी़ आज भी इनके वंशज अंडमान-निकोबार के अलग-अलग द्वीप में रह रहे है़ं अंडमान-निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लैयर में झारखंडियों की संख्या सबसे ज्यादा है़ सरकारी नौकरी, व्यापार, प्रतिष्ठान में काम करते मिल जायेंगे़

पोर्ट ब्लैयर से 100 किमी दूर द्वीप में भी हैं झारखंडी : पोर्ट ब्लैयर के अलावा कई द्वीप में झारखंड के लोगों का बसेरा है़ पोर्ट ब्लैयर से 100 किमी दूर बाराटांग में भी झारखंडी आबादी है़ यहां झारखंड के लोगों के 400 से ज्यादा घर है़ं राधानगर, हैवलॉक, निकोबार में भी झारखंडियों ने अपनी मेहनत से पहचान बनायी है़ पोर्ट ब्लैयर से आगे बढ़ने पर फेरारगंज, रामनगर, बाराटांग और जिरकाटांग मेें भी इन लोगों की बस्तियां देखने को मिलती है़ं

आजादी के बाद के दशक मेें मिली खेती की जमीन : झारखंड से गये कई आदिवासी परिवार वहां खेती-बारी करते है़ं आजादी के बाद झारखंड से गये लोगों को आजीविका के लिए खेती योग्य जमीन दी गयी़ बाद में यह प्रक्रिया बंद कर दी गयी़ झारखंड के आदिवासियों की मांग है कि उन्हें जमीन दी जाये़ पोर्ट ब्लैयर सहित कई इलाके में उनके पास रहने के लिए जमीन तक नहीं है़ आज बदले दौर में इनको अतिक्रमणकारी बताया जाता है़

पोर्ट ब्लेयर में है रांची बस्ती,दिखती है झारखंडी संस्कृति : पोर्ट ब्लेयर में रांची बस्ती है़ यहां झारखंड से आये लोग रहते है़ं यहां झारखंडी परंपरा, संस्कृति दिखती है़ भले ही ये अंडमान-निकोबार में रच-बस गये हैं, लेकिन इनमें अपनी मिट्टी के प्रति उत्सुकता भी है़ झारखंड आना-जाना कम होता है़ एक प्राइवेट रिसोर्ट में काम करनेवाली सुनिता खाका मिली़ वर्षों पहले सुनिता के माता-पिता यहां आये थे़ पिता को फॉरेस्ट विभाग में नौकरी मिली थी़ सुनिता बताती हैं, वह कभी झारखंड नहीं गयी है़ गुमला में परिवार के लोग रहते है़ं एक बार चाचा का पत्र आया था़ उसकी दीदी झारखंड गयी थी़ वह बताती है कि घर पर झारखंड की चर्चा होती है़ माता-पिता वहां के बारे में बताते थे़ सिलविया टोप्पो के पूर्वज गुमला पालकोट के है़ं सिलविया झारखंड को विशेष नहीं जानती़ वह कहती हैं कि वहां नक्सली है़ं रांची बस्ती की रहनेवाली सोनिया टोप्पो पोर्ट ब्लेयर ब्लेयर में प्राइवेट नौकरी करती है़ वह कहती है कि झारखंडियों की इस प्रदेश में कई मांगें हैं, जो पूरी नहीं हुई है.

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