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10 जिलों की 2450 एकड़ भूमि पर अफीम का धंधा

हो रही जंगल की सफाई, जमीन मालिकों को दिया जा रहा बयाना जीवेश/सुरजीत रांची : अफीम के तस्करों ने इस वर्ष राज्य के 10 जिलों में लगभग 2450 एकड़ जमीन पर खेती की प्रक्रिया शुरू कर दी है. कई इलाकों में उग्रवादी संगठन के लोगों ने भी अफीम की खेती की तैयारी की है. अनुमान […]

हो रही जंगल की सफाई, जमीन मालिकों को दिया जा रहा बयाना
जीवेश/सुरजीत
रांची : अफीम के तस्करों ने इस वर्ष राज्य के 10 जिलों में लगभग 2450 एकड़ जमीन पर खेती की प्रक्रिया शुरू कर दी है. कई इलाकों में उग्रवादी संगठन के लोगों ने भी अफीम की खेती की तैयारी की है.
अनुमान के अनुसार, पुलिस, वनकर्मी, नक्सली-उग्रवादी, दबंगों व कुछ किसानों की सांठ-गांठ से इस वर्ष करीब 6.37 अरब (स्थानीय दर) की अफीम का कारोबार होगा. जानकार के मुताबिक, पुलिस व वन विभाग के अधिकारियों (सभी नहीं) के बीच प्रति एकड़ करीब 1.50 लाख बांटे जाते हैं. इस तरह इस वर्ष करीब 36 करोड़ मिलेंगे. करीब इतने ही रुपये नक्सलियों व उग्रवादियों के हिस्से में लेवी के रूप में आयेंगे. बता दें कि वर्ष 2004-05 में चतरा से शुरू हुई अफीम की खेती अब राज्य के 10 जिलों में होने लगी है.
सब कुछ पहले से तय : अफीम की खेती के लिए किसानों व तस्करों ने गैर मजरूआ जमीन, वन भूमि और निजी जमीन को चिह्नित कर लिया है. इस साल तस्करों ने जिलावार अलग से कुछ एकड़ में खेती करने की योजना बनायी है, ताकि इसे पुलिस कार्रवाई के नाम पर नष्ट किया जाये व इसकी आड़ में बड़े पैमाने पर सुरक्षित तरीके से खेती की जा सके.
अक्तूबर से फरवरी के बीच होनेवाले इस धंधे के लिए अभी से उत्तर प्रदेश व बंगाल के एजेंट जिलों में घूमने लगे हैं. जमीन के लिए पैसे देने, पुलिस व वनकर्मियों को सेट करने के अलावा धंधे में शामिल होने के लिए बेरोजगारों की सूची भी बनने लगी है. पोस्ता के पौधे व डोडा की पिसाई के लिए आटाचक्की भी तय करने की प्रक्रिया जारी है. कुछ इलाकों में खेती का जिम्मा उस क्षेत्र के उग्रवादियों ने भी ले लिया है, तो कुछ इलाकों में उनका कमीशन तय हो रहा है. वन क्षेत्र में जेसीबी से सफाई का काम भी जारी है.
एक एकड़ में कितने की कमाई : जिलों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पोस्ता की खेती से अफीम, डोडा व डंठल का डस्ट और पोस्ता दाना का उत्पादन होता है. प्रति एकड़ पोस्ते की खेती से लगभग 40 किलो अफीम का उत्पादन होता है. स्थानीय बाजार में इसका मूल्य करीब 40 हजार रुपये प्रति किलो की दर से 16 लाख होता है, जबकि बाहर के बाजार में 40 किलो अफीम का मूल्य करीब 40 लाख रुपये हो जाते हैं. पोस्ता के पौधे व डोडा का डस्ट (एक एकड़ में करीब 100 किलो) का स्थानीय बाजार में मूल्य करीब 4000 रुपये प्रति किलो की दर से करीब चार लाख रुपये होते हैं. बाहर के बाजार में इसकी कीमत करीब छह लाख हो जाती है. एक एकड़ भूमि पर करीब 300 किलो पोस्ता दाना निकलता है. स्थानीय बाजार में इसका मूल्य 300 रुपये किलो है, जबकि बाहर के बाजार में करीब 450 रुपये किलो. इस तरह एक एकड़ अफीम की खेती करनेवाले को स्थानीय बाजार में करीब 26 लाख रुपये की आय (कुछ इलाकों में एकड़ का माप कम होने पर आय घटती है) होती है.
तस्कर इसे बाहर के बाजार में करीब 47 लाख से अधिक में बेचते हैं.प्रति एकड़ खर्च : एक एकड़ जमीन पर अफीम की खेती करने में करीब छह लाख रुपये का खर्च आता है. इसमें प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन मालिक को करीब 2.50 लाख रुपये (वैसे जमीन मालिक को जिनकी अपनी जमीन होती है और जो कमाई में हिस्सा नहीं लेते), वन विभाग व पुलिस को करीब 1.50 लाख, नक्सलियों-उग्रवादियों को करीब एक लाख, मजदूरों को करीब 50 हजार, पोस्ता का बीज, जमीन तैयार करने, खाद, पटवन आदि पर करीब 50 हजार रुपये का खर्च आता है. इस तरह अफीम की खेती करनेवाले को प्रति एकड़ करीब 20 लाख रुपये की कमाई होती है. जबकि तस्करों (जहां खेती होती है, वहां से माल खरीद कर बाहर के बाजार में बेचनेवाला) को करीब 21 लाख रुपये की कमाई होती है.
जो हैं प्रभावित इलाके
चतरा : कान्हाचट्टी प्रखंड के सहोर, हड़गड़, रोपनीटांड़, चौरटांड़, बेंगोकला, टुड़ाग, सहातु, बेड़ना, बाराटांड़ व गड़िया. कुंदा प्रखंड का चिलोय, चेतमा, सिंदरी, ककनातु, इचाक व रजवार. प्रतापपुर प्रखंड का हिंदियाकला, दुंदु, अदौरिया, बामी, कुंडी, सतबहिनी, बौराशरीफ, हेसातु, नवादा, शिकारपुर व एघारा. सदर प्रखंड के सिकिद, बेरियोतरी, कच्चा, मोकतमा, बैदाल, गंभारतरी व बरैनी. हंटरगंज प्रखंड के मानामात, सजनी, दुरंगी, ढोलटंगवा, घटदारी, बंदरचुंआ, गिद्धातरी, चकला, अकता, पिपरा, राजगुरु, ननहुआतरी, पहसवार, बेंगवातरी, गुवे व पंडरकोला. लावालौंग प्रखंड के हांहे, टिकदा, सुलमा, रिमी, बनवार, खपरमहुआ व साजीबार तथा टंडवा प्रखंड के कुछ जंगली क्षेत्र में
लातेहार : बालूमाथ, बारियातू, हेरहंज तथा मनिका प्रखंड के नवादा, घुटाम, टोंटी, रहेया, हेरहंज, बालुभांग, सोहगढ़ा, डाकादीरी, जवांबार, लेवराही, बेलवाडीह, झोंक, चाड़ी, दौरा महल, खीराटांड़, गुगई, कटांग, इचाक, खीरादोहर, पसांगन, रेवत सहित दर्जनों गांव.
खूंटी : मुरहू व अड़की के सीमावर्ती इलाके व खूंटी का पूर्वोत्तर क्षेत्र.
मेदिनीनगर : पांकी व मनातू प्रखंड के सीमावर्ती इलाका.
साहेबगंज : उधवा प्रखंड के श्रीधर दीयारा, राजमहल प्रखंड के पलासी, बरहरवा प्रखंड के डुमारी व सदर प्रखंड के लाल बथानी दीयारा, गुमानी व बरहेट सहित अन्य गांवों में.
दुमका : रानीश्वर, शिकारीपाड़ा, टोंगरा व मसलिया तथा आसपास के गांव.
पाकुड़ : मिर्जापुर व सीमावर्ती इलाका.
जामताड़ा : नाला व कुंडहित प्रखंड के कई गांव.
रामगढ़ : बरकाकाना व गोला का इलाका.
गुमला : कामडारा के गांव.
फरक्का से सटे बंगाल का इलाके.
(सभी आंकड़े जिलों व जानकारों से प्राप्त सूचना के आधार पर)
झारखंड : इस वर्ष 6.37 अरब के अवैध कारोबार का अनुमान
कब होती है खेती : पोस्ते की खेती अक्तूबर से शुरू होती है. एक एकड़ के लिए एक किलोग्राम बीज का उपयोग होता है. अच्छी फसल के लिए उर्वरकों का भी इस्तेमाल किया जाता है. वन क्षेत्र में पंप से पटवन की भी व्यवस्था होती है. बीज बोने के 20 से 25 दिन के बाद इसकी निराई-गुड़ाई (कोड़ाई) की जाती है. 90 दिनों में पोस्ते के पौधे में फूल निकलना शुरू हो जाता है. इसी क्रम में पौधों में चीरा लगाने की प्रक्रिया की जाती है. चीरा लगाने के बाद दूसरे दिन उससे निकले गाढ़ा द्रव्य को जमा कर उसे अफीम बनाया जाता है.
कैसे होती है कमाई : एक एकड़ जमीन में करीब 40 किलो गीली अफीम निकलती है. एक किलो गीली अफीम का दाम स्थानीय बाजार में करीब 40 हजार होता है. इस प्रकार राज्य के 2450 एकड़ जमीन पर लगे पोस्ता के पौधे से करीब 98000 किलो अफीम का उत्पादन होगा. स्थानीय बाजार में इसका मूल्य करीब 3.92 अरब होते हैं. पोस्ता की खेती से प्राप्त डोडा व डस्ट और पोस्ता से प्रति एकड़ 10 लाख की कमाई होती है. 2450 एकड़ जमीन पर लगे पोस्ते की खेती से 2.45 अरब की कमाई होती है.
कौन हैं खरीदार
अफीम की खरीदारी करने यूपी, हरियाणा राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, बांग्लादेश, बिहार नेपाल समेत अन्य क्षेत्र से व्यापारी आते हैं.
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