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ठिकाने की तलाश में दर-दर भटक रहा जिला दिव्यांग केंद्र

केंद्र की स्थापना वर्ष 2011 में की गयी थी. इस केंद्र के उपकरण व साज-सज्जा जापानी मॉडल पर आधारित हैं. इस तरह के केंद्र देश भर में चुनिंदे जगहों पर ही स्थापित िकये गये हैं. पूर्णिया : दिव्यांगों को नयी जिंदगी देने के लिए बनाया गया जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र आज खुद नि:शक्तता का शिकार […]

केंद्र की स्थापना वर्ष 2011 में की गयी थी. इस केंद्र के उपकरण व साज-सज्जा जापानी मॉडल पर आधारित हैं. इस तरह के केंद्र देश भर में चुनिंदे जगहों पर ही स्थापित िकये गये हैं.

पूर्णिया : दिव्यांगों को नयी जिंदगी देने के लिए बनाया गया जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र आज खुद नि:शक्तता का शिकार है. केंद्र के निर्माण को करीब एक वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन यह केंद्र स्थायी ठिकाने की तलाश में दर-बदर भटक रहा है. अब तक दो बार इसका कार्य स्थल परिवर्तित हो चुका है.
दोनों ही बार खाली कमरों के रहते हुए भी इसे समुचित जगह नहीं मिल पायी है. इसका नतीजा यह है कि इस केंद्र के कई महत्वपूर्ण उपकरण आज तक उपयोग में नहीं लाये जा सके हैं. वर्तमान में रेडक्रॉस भवन के प्रथम तल में यह केंद्र संचालित है. इसके अधिकांश उपकरण कमरे में महज शोभा की वस्तु बन कर रह गये हैं. उन्हें सुसज्जित करने के लिए रेडक्रॉस सोसाइटी की ओर से पर्याप्त जगह नहीं दी जा रही है, जबकि इसी तल में पूर्व से बैंक का संचालन होता था. हैरानी की बात यह है कि विकलांग केंद्र का कोई पुरसाहाल नहीं है और सभी जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं.
जापानी मॉडल पर आधारित है केंद्र
भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से खास कर दिव्यांग बच्चों के लिए इस केंद्र की स्थापना वर्ष 2011 में की गयी थी. इस केंद्र के उपकरण व साज-सज्जा जापानी मॉडल पर आधारित है. इस तरह के केंद्र देश भर में चुनिंदे जगहों पर ही स्थापित है. बताया जाता है कि जो बच्चे जन्म के बाद निर्धारित अवधि में खड़े होना व चलना आरंभ नहीं करते हैं और जो बच्चे नहीं बोल पाते हैं, उन बच्चों को इस केंद्र में अभ्यास और थेरेपी के जरिये चलने और बोलने में सक्षम बनाया जाता है.
इसके लिए 6 महीने से लेकर दो साल तक का वक्त लगता है. जानकारों की मानें तो इस केंद्र में उम्दा क्वालिटी के उपकरण मौजूद हैं, जो इस प्रकार के बाल रोगियों के लिए रामबाण से कम नहीं है. लेकिन विडंबना यह है कि यह जापानी प्रविधि के मशीन रख-रखाव और जगह के अभाव में निरर्थक साबित हो रहे हैं. मशीन और उपकरणों में जंग और दीमक लगने की नौबत आ गयी है.
समय पर मानदेय नहीं मिलने से कई कर्मी दे चुके हैं इस्तीफा : केंद्र दिनों दिन समस्या और कुव्यवस्था का शिकार होते जा रहा है. केंद्र में काम करने वाले कर्मियों को समय पर मानदेय नहीं मिलने से कई कर्मियों ने अब तक इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने वालों में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, सीनियर आर्थोटिस्ट, सीनियर स्पीच थेरेपिस्ट और जूनियर स्पीच थेरेपिस्ट आदि शामिल है. नतीजतन जिन बच्चों को बोलने में समस्या है उनका उपचार यहां नहीं हो पा रहा है.
वर्तमान में पांच कर्मी कार्यरत हैं, पिछले तीन साल से इन कर्मियों को मानदेय नहीं मिला है. सूत्र बताते हैं कि विविध खर्च का ऑडिट नहीं होने के कारण मानदेय मिलने में बाधा बनी हुई है. कर्मी पार्ट टाइम दूसरा काम करके अपना खर्च चलाने को मजबूर हैं.
दिव्यांग केंद्र में सुविधाओं का टोटा
लाखों का खर्च कर खरीद किये गये उपकरण अब अधिकारियों की ढुलमुल रवैये के कारण कुव्यवस्था का शिकार हो गया है. सदर अस्पताल में कई भवन खाली पड़े हुए हैं, जो वर्षों से प्रयोगविहीन है. सरकार ने लाखों खर्च कर भवन तो बना दिया लेकिन अधिकारियों की इच्छा शक्ति के अभाव में खाली पड़ा हुआ है. इन खाली पड़े भवनों में विकलांग पुनर्वास केंद्र को आसानी से कमरा उपलब्ध कराया जा सकता है. लेकिन पता नहीं किस वजह से आम नागरिक की सुविधा के लिए बने विकलांग केंद्र
को एक कमरा तक नसीब नहीं हो पा रहा है, जबकि विकलांग केंद्र पूर्णिया ही नहीं पूरे बिहार के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. जगह की कमी के कारण उपकरणों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. कई महत्वपूर्ण उपकरण जगह की कमी के कारण प्रयोगविहीन है और रेडक्रॉस भवन के एक कोने में फेंका हुआ है. कहा जाये तो विकलांग पुनर्वास केंद्र प्रशासनिक उपेक्षा की वजह से लाचार नजर आ रहा है.
इस बात की जानकारी नहीं थी कि दिव्यांग पुनर्वास केंद्र महज एक कमरे में सिमट कर रह गया है. आम लोगों की सुविधा के लिए इस केंद्र को स्थान उपलब्ध कराया जायेगा, ताकि अधिक से अधिक बच्चे लाभान्वित हो सके. एक सप्ताह के अंदर समस्या का समाधान कर लिया जायेगा.
प्रदीप कुमार झा, डीएम, पूर्णिया.
दिव्यांग पुनर्वास केंद्र केंद्र सरकार के तहत संचालित है. इसकी देखभाल की जिम्मेदारी रेडक्रॉस को सौंपी गयी है. वहीं इसके संचालन के लिए रेडक्रॉस को ही आवंटन भी भेजा जाता है. इसमें जिला प्रशासन की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है. इसका समुचित देखभाल और फंड रेडक्रॉस की देखरेख में होता है. इसके पुनर्वास के लिए जिम्मेदारी रेडक्रॉस है.
प्रदीप कुमार, सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा सह नोडल पदाधिकारी.

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