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शुक्रिया डिवाइडर ! आपने बांटा नहीं मुश्किल घड़ी में पनाह दिया है

जद्दोजहद. बाढ़ ने छीना आिशयाना, रहने का िठकाना बना एनएच-31 िजला समेत सीमांचल में काल बन कर आयी बाढ़ ने लाखों लोगों का आिशयाना और उनके खाने पर आफत ला दी. इस कारण अब लोग एनएच 31 पर बने िडवाइडर के सहारे अपना समय गुजारने को िववश हो गये हैं. पूर्णिया : इलाके में जब […]

जद्दोजहद. बाढ़ ने छीना आिशयाना, रहने का िठकाना बना एनएच-31

िजला समेत सीमांचल में काल बन कर आयी बाढ़ ने लाखों लोगों का आिशयाना और उनके खाने पर आफत ला दी. इस कारण अब लोग एनएच 31 पर बने िडवाइडर के सहारे अपना समय गुजारने को िववश हो गये हैं.
पूर्णिया : इलाके में जब महानंदा, कनकई और परमान उफनायी तो अपने इर्द-गिर्द गांवों में तबाही मचाती हुई उस इलाके तक जा पहुंची, जिससे उसका दूर-दूर का रिश्ता नहीं था. ऐसे में लोग अपना घर-बार छोड़ एनएच और एसएच की ओर रूख किया. मुश्किल की इस घड़ी में एनएच 31 स्थित डिवाइडर लोगों के लिए आश्रय स्थल साबित हुआ. डिवाइडर का शाब्दिक अर्थ बांटने वाला होता है. लेकिन यहां डिवाइडर विभिन्न जाति और धर्म के लोगों को निरपेक्ष भाव से जोड़ने में कामयाब रहा
. विस्थापन के बाद डिवाइडर पर शरण लिए हुए लोगों के बीच जाति और धर्म के मसले गौण रहे. शाम ढलते ही जब लोग वापस डिवाइडर पर स्थित तंबू में पहुंचते थे तो आपस में अपने-अपने गांव की हालात की चर्चा करते और एक-दूसरे के दर्द पर मलहम लगाने की कोशिश करते नजर आये. डगरूआ से आगे सड़क पर बने डिवाइडर पर मुनिया टोला के सैकड़ों लोग रह रहे हैं. यहां रह रहे शत्रुघ्न महतो कहते हैं ‘ घर-द्वार छूटा तो आज सड़क ही सहारा बना हुआ है ‘ . वहीं मुन्नी देवी कहती है ‘ कहां जाते, कौन जगह देता, उससे तो बेहतर सड़क का यह डिवाइडर है ‘ .
अब डिवाइडर छोड़ गांव वापस लौटने लगे लोग : कल तक एनएच 31 के डिवाइडर पर बेलगच्छी से लेकर बायसी तक जहां 25 से 30 हजार लोग शरण लिए हुए थे, वहां शनिवार को इन विस्थापितों की संख्या बमुश्किल एक से दो हजार नजर आयी. दरअसल नदियों का कहर समाप्त हुआ तो डगरूआ से लेकर बायसी और अमौर से लेकर बैसा तक बाढ़ का पानी कम होता नजर आया. लोगों में थोड़ी उम्मीद जगी तो लोग अपने घर वापस लौटने लगे. दरअसल लगातार तीन-चार दिनों से बारिश नहीं हो रही है, ऐसे में लगातार नदियों के जलस्तर में कमी आ रही है और इसका असर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में देखा जा रहा है. शनिवार को डिवाइडर से वापस अपने गांव लौट रहे बुआरी के मो मुस्ताक कहते हैं ‘ अपने मिट्टी से हर किसी को लगाव होता है. जो बीत गया, उसे छोड़ अब आगे की सोचनी है ‘ .
जीवन की डोर बनी नाव, हो रही अवैध वसूली : बायसी अनुमंडल के पूरे इलाके में अधिकांश सड़क मार्ग ध्वस्त है. लिहाजा नाव ही एकमात्र सहारा शेष रह गया है.
सच तो यह है कि जीवन की डोर अब नाव बन चुकी है. सरकारी नाव नाकाफी साबित हो रहा है तो लोग जुगाड़ तकनीक से केले की थंब और थर्मोकॉल की मदद से नाव का निर्माण कर जीवन को पटरी पर वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं. हाल यह है कि अपने घरों तक पहुंचने के लिए लोग एक पेड़ से दूसरे पेड़ में रस्सी बांध कर पतवार की बजाय इसी की मदद से नाव का परिचालन कर रहे हैं. लेकिन नाव की आड़ में अब अवैध वसूली भी आरंभ हो चुकी है. अमौर प्रखंड के असरना निवासी विवेकानंद झा और मो जुबेर बताते हैं कि गांव से अमौर पहुंचने के लिए सरकारी नाव उपलब्ध है. इस नाव पर बाइक वाले लोगों से 50 रूपये, साइकिल वालों से 40 रूपये और समान्य लोगों से 30 रूपये की वसूली की जा रही है. वहीं कई इलाके के लोग नाव के अभाव में परेशान हैं. मलियाबाड़ी और मो एजाजुल बताते हैं कि ‘ पूरा गांव पानी से घिरा है और केले की थंब के नाव से लोग आवागमन कर रहे हैं. अधिकारियों से गुहार लगाने के बावजूद नतीजा सिफर रहा है ‘ . बायसी के एसडीएम शशांक शुभंकर कहते हैं कि अवैध वसूली की शिकायत की जांच करा कर कार्रवाई की जायेगी.
सामुदायिक किचेन बन रहा है मददगार : सरकारी स्तर पर बाढ़ पीड़ितों के बीच मदद की हरसंभव कोशिश की जा रही है. इस कड़ी में राहत शिविर के अलावा सामुदायिक किचेन बड़ा मददगार साबित हो रहा है. बाढ़ग्रस्त इलाके में जगह-जगह सामुदायिक किचेन में लोगों को भोजन कराया जा रहा है और कई जगहों पर होटलों को भी सामुदायिक किचेन में तब्दील कर दिया गया है. रौटा बाजार में सामुदायिक किचेन में तब्दील होटल दीनानाथ में श्रीपुर निवासी दो सगे भाई विक्रम और विकास निषाद से मुलाकात हुई. विकास ने बताया ‘ घर में खाने के सामान नहीं हैं. रात पूरा परिवार चूड़ा खाकर बिताया. इसलिए यहां खाने चला आया ‘ .
…. अम्मी, हम्मै घर आबै छी तोरा सनि किरंग छै
सबसे मुश्किल की घड़ी उनलोगों के लिए है, जिन्होंने बाढ़ के कहर में अपनों को खो दिया है. ऐसे लोगों के लिए वर्ष 2017 की यह त्रासदी ऐसे घाव के रूप में उम्र भर सालती रहेगी, जो कभी भरी नहीं जा सकती है. अमौर प्रखंड के भवानीपुर टोला के मो कादिर और उनकी पत्नी शहनाज बेगम ने इस बाढ़ में अपने 15 वर्षीय बेटे को खो दिया है. बमुश्किल दो दिन पहले ज्ञानडोभ के पास लाश मिली तो उसे सुपुर्द-ए-खाक किया गया. मो कादिर कहते हैं ‘ एक बाप के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि उसे बेटे के जनाजे में शामिल होना पड़े ‘ . बताया जाता है कि मो कादिर का बेटा मो शहबाज अपने ननिहाल सिमलबाड़ी गया था. सैलाब आने के बाद 13 अगस्त की सुबह उसने अपने नाना-नानी को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया, लेकिन खुद को सुरक्षित नहीं रख पाया. मौत से पहले शहबाज ने अपनी अम्मी से भी बातचीत की थी. नम आंखों से शहनाज बेगम कहती है कि मौत से पहले शहबाज ने कहा था ‘ अम्मी, हम्मै घर आबै छी, तोरा सनि किरंग छै, चिंता नै करय ‘ .

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