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Friday, March 29, 2024

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अर्श से फर्श पर आयीं अम्मा

सेंट्रल डेस्क देखो ऐसा भी वक्त जीवन में आता है, जब अच्छा खासा दोस्त भी दुश्मन बन जाता है. और जब दोस्त दुश्मन बन जाये, तो किसी को अर्श से फर्श पर आने में वक्त नहीं लगता. अन्नाद्रमुक की सर्वे-सर्वा और चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता इसका उदाहरण हैं. चार दशक के अपने […]

सेंट्रल डेस्क

देखो ऐसा भी वक्त जीवन में आता है, जब अच्छा खासा दोस्त भी दुश्मन बन जाता है. और जब दोस्त दुश्मन बन जाये, तो किसी को अर्श से फर्श पर आने में वक्त नहीं लगता. अन्नाद्रमुक की सर्वे-सर्वा और चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता इसका उदाहरण हैं. चार दशक के अपने राजनीतिक कैरियर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. सत्ता के सीर्ष पर तो वह मेहनत से पहुंचीं, लेकिन उन्हें अर्श से फर्श पर लाने में कभी उनके मित्र रहे डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने सबसे बड़ी भूमिका निभायी.

कहानी 18 साल पुरानी है. जब 1996 में स्वामी जयललिता के दुश्मन बने और उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करायी. एफआइआर दर्ज होने से जांच शुरू होने में देर नहीं हुई, क्योंकि तब डीएमके सत्ता में थी. कई कारणों से मामले की सुनवाई में लंबा वक्त लग गया, लेकिन आखिरकार ‘अम्मा’ को फिर मुख्यमंत्री की कुरसी छोड़नी पड़ी. प्रदेश की दूसरी महिला मुख्यमंत्री को दूसरी बार जेल जाना पड़ा. वर्ष 2000 में कोर्ट ने उन्हें तांसी घोटाला से जुड़े दो मामलों में क्रमश: दो और तीन वर्ष के सश्रम कारावास के साथ 10,000 और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनायी थी. अब आय से अधिक संपत्ति मामले में चार साल की सजा हुई है. अम्मा के लिए यह बड़ा झटका है.

कर्नाटक के एक अयंगर परिवार में जन्मीं जयललिता जयराम के दादा मैसूर राजघराने के डॉक्टर थे. मैसूर के महाराजा जयचामराजेंद्र वोडेयर से परिवार के जुड़े होने के कारण उनके परिवार के लोगों के नाम के पहले ‘जय’ जोड़ने की परंपरा है. तमिल अभिनेत्री कोमलावल्ली की बेटी जयललिता की शुरुआती शिक्षा दीक्षा बेंगलुरु के बिशप कॉटन गल्र्स स्कूल और चेन्नई के चर्च पार्क प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट में हुई. जयललिता दक्षिण की बड़ी फिल्म स्टार बनीं. उन्होंने 140 से अधिक फिल्मों में काम किया. बॉलीवुड में भी हाथ आजमाये, लेकिन सफलता नहीं मिली.

दक्षिण के सबसे बड़े सुपरस्टार और भारत के सबसे प्रतिष्ठित नेताओं में एक एमजी रामचंद्रन के कहने पर जयललिता राजनीति में आयीं. एमजीआर ने अन्नाद्रमुक के टिकट पर 1984 में उन्हें राज्यसभा भेजा. रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता बड़ी नेता के रूप में उभरीं. उनके कड़े तेवर के कारण उन्हें ‘पुराचि थलाइवी’ (क्रांतिकारी नेता) नाम मिला. अब लोग उन्हें ‘अम्मा’ कहते हैं. पूरे फॉर्म में आने के बाद वर्ष 1991 में उन्होंने कांग्रेस से गंठबंधन किया और राजीव गांधी की हत्या के बाद चले सहानुभूति लहर से अभूतपूर्व बहुमत से सत्ता में आयीं. उनका 1991-96 का पहला कार्यकाल बहुत बुरा रहा, क्योंकि उनकी विश्वस्त शशिकला के परिवार के कारण उन पर कई आरोप लगे. उनके दत्तक पुत्र के भव्य शादी समारोह की आलोचना हुई.

वर्ष 1996 विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार के व्यापक आरोप अन्नाद्रमुक के लिए घातक साबित हुए. डीएमके-टीएमसी गंठबंधन को शानदार जीत मिली. जयललिता भी हार गयीं. उन्हें गिरफ्तार किया गया. उनके विरुद्ध कई मामले दर्ज हुए. चुनावी हार को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने भाजपा से गंठबंधन किया और अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए का हिस्सा बनीं. 1999 में विश्वास मत के दौरान सरकार गिराने के लिए वह बदनाम भी हुईं. अन्नाद्रमुक की ‘आयरन लेडी’ 2001 में राज्य की सत्ता में लौटीं. सीएम बनीं. तांसी भूमि घोटाला में दोषी ठहराये जाने के परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति खारिज कर दी. उन्हें पद छोड़ना पड़ा. जयललिता ने अपने विश्वस्त ओ पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बना कर प्रशासन की डोर अपने हाथों में रखीं. इस मामले में बरी होने के बाद दिसंबर, 2001 में वह फिर सत्ता में लौटीं, लेकिन 2006 में उनकी पार्टी हार गयी और डीएमके सरकार बनी. एक बार फिर 2011 में उन्होंने शानदार बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. डीएमके को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा तक नहीं मिला.

एक्ट्रेस से सीएम और अब जेल

15 वर्ष की उम्र में फिल्मी कैरियर शुरू किया

विद्यार्थी के तौर पर पढ़ाई में काफी रुचि रही

बाद में तमिल की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री बनीं

एमजीआर के साथ 28 फिल्मों में काम किया

1987 में पूरी तरह से उभरीं

1987 में एमजीआर के निधन के बाद पूरी तरह उभरीं. 1989 में पहली बार विधानसभा पहुंचीं. विपक्ष की नेता बनीं. द्रमुक से जुड़ी घिनौनी घटना के कारण पार्टी के खिलाफ उग्र तेवर अपनाये. पार्टी को एकजुट किया. तब से वह पार्टी की निर्विवाद नेता बनी हुई हैं.

18 साल क्यों चली सुनवाई?

जयललिता पर आय से अधिक संपत्ति का मामला 18 वर्ष पहले दर्ज हुआ. फैसला आने में इतना वक्त लगने के पीछे कई वजह रही. डीएमके ने मामले की सुनवाई तमिलनाडु से बाहर कराने पर जोर दिया. अभियुक्त के वकील की ओर से अलग-अलग कारणों से कई बार सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुईं. उन कारणों पर एक नजर

डीएमके ने सुनवाई तमिलनाडु से बाहर कराने पर जोर दिया

अभियुक्तों की ओर से कई बार कोर्ट में अलग-अलग कारणों से याचिका दाखिल की गयी, जिससे सुनवाई बाधित हुई

जयललिता से 1,339 सवालों के जवाब मांगे गये थे. मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्हें समय निकाल कर इन सवालों का जवाब देना था, इसमें भी काफी समय लगा

आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट की रोक और विशेष कोर्ट को चेन्नई से बेंगलुरु शिफ्ट करने में ही छह साल लग गये

चेन्नई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए डीएमके महासचिव अनबाझगन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दी. इस वजह से भी मुकदमे की सुनवाई में विलंब हुआ

250 से अधिक लोगों का बयान दर्ज हो चुका था. मुकदमा अन्य राज्य में ट्रांसफर होने के बाद फिर से गवाही शुरू हुई. बड़ी संख्या में गवाह बयान से पलट गये. उन्होंने कोर्ट में बयान दिया कि उनसे ‘जबरन’ बयान लिया गया

अभियोजन पक्ष की कमजोर दलील के कारण सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेशी से छूट दे दी

मुकदमे की सुनवाई जल्दी ही पूरी हो गयी होती, यदि अभियोजन ने आय से अधिक संपत्ति के मामले को ‘लंदन होटल केस’ से अलग नहीं किया होता. दोनों मामले एक साथ चलते, तो बचाव पक्ष के लिए मुश्किलें खड़ी हो जातीं, लेकिन अभियोजन ने स्वेच्छा से इस मामले को वापस ले लिया. विशेष सरकारी वकील ने दलील दी कि इंग्लैंड जाकर सबूत जुटाने में काफी वक्त लग जाता

तांसी घोटाला में हुई थी सजा

‘ज या पब्लिकेशन केस’ में जयललिता को तीन साल के सश्रम कारावास और 10,000 रुपये जुर्माना की सजा सुनायी गयी थी

‘सासी इंटरप्राइजेज केस’ में कोर्ट ने जयललिता को दो साल के सश्रम कारावास और 5,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनायी थी

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

चूंकि मैंने निर्णय नहीं देखा है. इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.

राजनाथ सिंह, गृह मंत्री

घटनाक्रम पर एक नजर

सीएम के रूप में कार्यकाल

1991-1996 पूरा किया कार्यकाल

2001 में सीएम बनीं, इस्तीफा देना पड़ा

2002 में फिर सीएम बनीं

2011-2014 (आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार, चार साल की सजा सुनायी गयी और कानून मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए बाध्य

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