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तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्‍या सोचता है बिहार का आवाम … जानें

पटना : तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम काेर्ट के फैसले पर मुस्लिम समुदाय ने स्वागत किया है. जहां इस्लाम के जानकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम समाज की मान्यताओं का हिस्सा बताया, वहीं मुस्लिम युवाओं, युवतियों और महिलाओं में मिश्रित राय देखने को मिली. इन सभी से प्रभात खबर से बातचीत के […]

पटना : तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम काेर्ट के फैसले पर मुस्लिम समुदाय ने स्वागत किया है. जहां इस्लाम के जानकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम समाज की मान्यताओं का हिस्सा बताया, वहीं मुस्लिम युवाओं, युवतियों और महिलाओं में मिश्रित राय देखने को मिली. इन सभी से प्रभात खबर से बातचीत के प्रमुख अंश.

फैसले का किया एहतराम

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधािनक करार देने के बाद मुस्लिम महिलाएं और युवाओं में खुशी का माहौल है. वे इसे एेतिहािसक फैसला बता रहे हैं.
रिश्ते खत्म होते हैं
तीन तलाक से वैवाहिक रिश्ते खत्म करना सही नहीं है. रिश्ते ईश्वर बनाते हैं, उसे इंसान तोड़ नहीं सकता. ईश्वर की कृपा इसी में है कि दोनों जीवन साथी ताउम्र एक साथ प्रेम व खुशी से जीवन बिताएं. जो एक-दूसरे को पंसद कर ईश्वर व समाज के सामने जीवनसाथी के तौर पर जीवन गुजारने की कसम लेते हैं, अगर कोई कसम को तोड़ता है, तो ईश्वर, समाज व जीवनसाथी को धोखा देता है. न्यायालय का फैसला उचित है. फादर सुरेश, पादरी की हवेली स्थित चर्च के पल्ली पुरोहित
नाइंसाफी है तीन तलाक
तीन तलाक स्त्री जाति के साथ नाइंसाफी व जुल्म का प्रतीक है. सिख धर्म में भी इसकी इजाजत नहीं है. जत्थेदार ने बताया कि प्रभु नाम का स्मरण व धर्म के प्रति जागृति से मनुष्य के अंदर पनप रही तलाक की विकृति को दूर किया जा सकता है. कानून के भरोसे इसे नहीं रोका जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि लोगों में धर्म व शिक्षा का संस्कार हो. क्योंकि धर्म व शिक्षा इंसान को जमाने में हर बुराई से दूर रखते हैं. जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह खालसा, तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब
फैसला मुस्लिम समाज की मान्यताओं का आईना
अदालत ने जो फैसला दिया है दरअसल वह मुस्लिम समाज की मान्याताओं को ही दर्शाता है. मुसलमानों में ज्यादातर लोग तीन तलाक को अनुचित मानते हैं. लिहाजा अदालत के पांच जजों की बेंच का फैसला काबिल ए एेहतराम है. रिजवान इसलाही
तलाक का नाम सुनते ही जमीन कांप उठती है
खुद कुरआन ने तलाक की एक ऐसी बुराई से तुलना की है, जिसका नाम सुनते ही जमीन कांप उठती है. तलाक का फैसला दरअसल पति-पत्नी के विवाद को खत्म करने का अंतिम विकल्प है. तलाक का नकारात्मक असर परिवार पर ही पड़ता है. अनवारुल
इस्लामिक विचारों का प्रतिबिंब है फैसला
सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस्लाम के चारों प्रमुख स्कूल ऑफ थॉट्स (मकतबा-ए-फिक्र) के विचारों को प्रतिबिंबित करता है. इन चारों विचारधाराओं में ज्यादातर विचारधाराएं इस बात पर एक मत हैं कि एक ही बार में तीन तलाक कहना अनुचित है. इर्शादुल हक
कई बड़े देशों में तीन तलाक बैन
मुसलमानों में तीन तलाक को लेकर कई राय हैं. कई बड़े देशों में तीन तलाक बैन है. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर है. सुप्रीम कोर्ट को स्थिति सुधारने के लिए सरकार को निर्देश देना चाहिए. अफजल इमाम, पूर्व मेयर
महिलाओं की राय
तीन तलाक शरीयत में नहीं है. कुछ अशिक्षितों के तीन तलाक दिये जाने के आधार पर हम सभी को गलत नहीं कह सकते हैं. सेक्स शिक्षा के बाद हमें मैटरनल एजुकेशन भी देना चाहिए, ताकि गृहस्थी की गाड़ी ठीक-ठाक चल सके. डॉ मजहबीं नाज, मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बिहार को-आर्डिनेटर :
इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं को ताकत मिली है. अब तक एक वर्ग अपनी मनमानी करता था. अब महिलाओं को एक हथियार मिलेगा. अख्तरी बेगम, ईजाद संस्था की निदेशक
मुस्लिम महिलाओं के हक में अच्छा फैसला, कानून बनने का इंतजार कर रहे हैं. इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं को सशक्त होने का मौका मिलेगा. शाहिदा बारी, सोशल एक्टिविस्ट, बेटी जिंदाबाद
सुप्रीम कोर्ट के वर्डिक्ट का हम स्वागत करते हैं, लेकिन तलाक के अलावा भी अन्य मुद्दे हैं. मुसलिम महिलाओं की शिक्षा को न्यायपालिका व सरकार को आगे आना चाहिए. शाजिया कैसर, महिला व्यवसायी
ट्रिपल तलाक एक बार में गलत है. यह इस्लामिक विचारों के विपरीत है. इससे महिलाओं पर अत्याचार हो रहा था. यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं के हक में आया है. डॉ रक्षिंदा करीम, स्टूडेंट
इनकी कहानी, इन्हीं की जुबानी…जब दिल के अरमां आंसुओं में बह गये
तलाकशुदा महिलाओं ने कोर्ट के फैसले को सराहते हुए कहा कि फैसला पहले आ गया होता तो कई जिंदगियां खुशहाल होतीं. मुस्लिम महिलाओं में तलाक एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनने के साथ ही उनके जीवन में ग्रहण लग जाता है. उनकी जिंदगी जहां एक ओर निकाह से शुरू होती है, वहीं दूसरी ओर तलाक पर समाप्त हाे जाती है. ऐसी ही कई महिलाओं की जिंदगी में निकाह के अरमान तब आंसुओं में तब्दील हो गये, जब उनके शौहर ने उन्हें तीन तलाक कह जिंदगी से बेदखल कर दिया. ऐसी ही महिलाओं ने बताया कि वह किस तरह से तीन तलाक की शिकार हैं.
शौहर को नहीं भाया पढ़ा-लिखा होना
फुलवारीशरीफ की नाजिया खातून के निकाह के अरमान पूरे भी नहीं हुए थे कि उसके जीवन में तलाक की काली रात आ गयी. नाजिया के निकाह के सारे सपने चूर-चूर हो गये. क्योंकि उसके शौहर ने उसे तलाक दे दिया था. नाजिया के शौहर को उसका पढ़ा-लिखा होना रास नहीं आया आैर उसेे मौखिक तलाक दे दिया. इसके लिए इमारत-ए-शरिया से जाकर कागजी तलाक का पेपर बना लिया और उसे घर से निकाल दर-दर की ठाेकरें खाने के लिए छोड़ दिया.
फोन पर बात करना तलाक का कारण
वहीं, पटना सिटी निवासी जीनत की शादी के एक साल भी नहीं हुआ था कि उसका आशियाना बिखर गया. कसूर बस इतना था कि वह फोन पर अपने मायके में बात किया करती थी, जो उसके शौहर को पंसद नहीं था. इस कारण उसे तलाक दे दिया गया. जीनत ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके निकाह के अरमां यूं बिखर जायेंगे. इसके बाद अब वह एकल जिंदगी जीने को मजबूर है.
हर सितम आखिरी सोच कर सहती रही
दानापुर निवासी फातिमा की शादी के पांच वर्ष हुए थे. वह कभी पति के हाथों, तो कभी ससुरालवालों के हाथों रोज पिटती रहती थी. पर वह कभी पति या ससुराल वालों की शिकायत नहीं करती. वह अपने पति के हर सितम को यह सोच कर सहती की शायद यह आखिरी सितम हो. आखिरकार तंग आकर फातिमा ने ससुरालवालों के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा दी. इसके इस कदम से उसके पति ने गुस्से में आकर उसे तलाक दे दिया.

मनमानी करने वालों पर चोट

जिले के कॉलेजों में पढ़ने वाले मुस्लिम युवाओं ने भी किया फैसले का स्वागत
शरीयत के कानून के मुताबिक ही कोर्ट का फैसला आया है. इस्लाम में तलाक को व्यावहारिक तौर पर रखा गया है. आपकी अपने पार्टनर से नहीं निभ रही है, तो तलाक दे दें. इंस्टेंट तीन तलाक इसमें शामिल नहीं हैं. फैयाज इकबाल, पर्यावरण कर्मी
ट्रिपल तलाक एक बार में कहने का कोई नियम शरीयत में भी नहीं है. पहली बार तलाक कहने के बाद एक महीने का गैप होता है. दूसरी बार कहने पर भी एक महीने का वक्त तय होता है. इस बार भी आपको लगता है कि नहीं निभ सकती है, तो फिर तीसरे तलाक का ऑप्शन है. रूमी काजी एकता, होटल व्यवसायी
सुप्रीम कोर्ट का फैसला उस मानसिकता को भी खत्म करेगा, जो यह मान कर चलता है कि वह अपने मन की करेगा. ट्रिपल तलाक पर पूरी तरह बैन होना चाहिए था. यही तो शरीयत भी कहती है. काजी नकीब, युवा कांग्रेस नेता
हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हैं. तुरंत तीन तलाक दे देने जैसे सिस्टम को खत्म होना ही चाहिए था. अब अदालत ने इस मामले पर संसद से कहा है कि वह कानून बनाये. उम्मीद है कि इस मामले पर इसलामी विद्वानों को संतुलित नुमाइंदगी दी जायेगी. मो जबिबुल्लाह उर्फ मुन्ना, युवा जदयू नेता
फैसला समाज की बेहतरी के लिए
इस्लाम के जानकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया मुस्लिम समाज की मान्यताओं का हिस्सा
शरीयत का गहन अध्ययन कर उलेमाओं को इस बात पर चर्चा करनी होगी कि शरीयत में औरतों को जो ऊंचा स्थान दिया गया है, उसके हिसाब से कानून हो. औरतों के हक की रक्षा की बात हो. तारिक नसीम
उच्चतम न्यायालय का निर्णय अपनी जगह पर सही हो सकता है, लेकिन शरीयत नाम की भी कोई चीज होती है. तीन तलाक ही नहीं बल्कि तलाक शब्द ही इस्लाम में बुरा माना गया है. इसलिए इसमें सुधार की आवश्यकता तो है. लेकिन शरीयत के साथ छेड़छाड़ कर नहीं. हसीना खातुन
कुरान में जो हुक्म दिया गया है, तलाक की जो बात बतायी गयी है, वह सबसे अच्छी है. मगर लोग इसका गलत लाभ उठा रहे हैं. यह नहीं होना चाहिए. उलेमाओं को यही बात लोगों को बतानी होगी. मोतिउर रहमान
यह फैसला उन लोगों के लिए आईना है, जो शरीयत का गलत फायदा उठते हैं. फैसले पर गौर करना होगा कि हम कहां पर गलत कर रहे थे. उसके बाद सख्त कानून बने ताकि कोई शरीयत का गलत लाभ उठा औरत की जिंदगी बर्बाद न करे.
गुड्डू खान
जब हमने शरीयत के आदेश का गलत इस्तेमाल किया तब मामला अदालत तक गया. इसलिए हम सब को इस बात पर अमल करना होगा कि जो हुक्म तलाक का बताया गया, हम उस पर अमल कर रहे हैं. अर्स अला फरीदी
शरीयत में औरत को जो स्थान दिया है, क्या हम घर की औरतों को उनका पूरा हक दे रहे हैं. अगर हम ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो हम अपनी मां, बहन, पत्नी सब के सात नाइंसाफी कर रहे हैं. इसके लिए उलेमाओं को जागरूकता अभियान चलाना होगा. नसरूर अजमल

मुसलमानों को मायूस होन की जरूरत नहीं, सचिव इमारत ए शरिया

पर्सनल लॉ को संविधान की धारा 25 के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है. उसमें कोर्ट द्वारा न तो हस्तक्षेप किया जा सकता है, न कोर्ट द्वारा उसे चुनौती दी जा सकती है. फैसले का यह हिस्सा हमारे लिए सुखद बात है. मौलाना अनिसुर रहमान कासमी ,
इमारत ए शरिया के महासचिव

निर्णय का हम आदर करते हैं. लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि जजों के दरम्यान निर्णय लेने में मतभेद है. किसी धार्मिक व्यवहार को रेगुलेट करने को धार्मिक जानकारों का निर्णय अहम होता है. सज्जादननशीन सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनएमी ,खानकाह मुनएमि या मीतन घाट दरगाह शरीफ

संविधान में मिली धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए, सरकार को तीन तलाक से ज्यादा इस पर विचार करना चाहिए कि जिसके पति मर जाते हैं, उनकी जिंदगी कैसे गुजरे, मामला शरीयत से जुड़ा है. गुलाम रसूल बलियावी, इदार-ए-सरिया के अध्यक्ष व विधान पार्षद

फैसला आया है इस पर मुसलमान उलेमाओं को एकजुट हो कर एक फैसला लेना होगा, जिससे किसी को तकलीफ न हो. शरीयत में जो बात कही गयी है, इंसाफ और हक के साथ कही गयी है, उस पर अमल हो. मोहसिन अली

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