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योगी से यह उम्मीद कि वह उत्तर प्रदेश में लागू करें शराबबंदी

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने कहा है कि न सिर्फ अवैध बूचड़खानों, बल्कि राज्य में इस तरह की अन्य कई चीजों को भी बंद किया जायेगा. उनका आशय अपराध, भ्रष्टाचार और दंगों से है. उनके शासन के एंटी रोमियो दस्ते तो सक्रिय भी हो चुके हैं. वे कहते […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने कहा है कि न सिर्फ अवैध बूचड़खानों, बल्कि राज्य में इस तरह की अन्य कई चीजों को भी बंद किया जायेगा. उनका आशय अपराध, भ्रष्टाचार और दंगों से है. उनके शासन के एंटी रोमियो दस्ते तो सक्रिय भी हो चुके हैं. वे कहते हैं कि कानून का शासन उनकी पहली प्राथमिकता है. ये सब सराहनीय कदम हैं.
पर योगी जी से उत्तर प्रदेश और बिहार के अनेक लोगों को यह भी उम्मीद है कि वह शराबबंदी की दिशा में भी जल्द ही ठोस कदम उठाएंगे. उत्तर प्रदेश में शराबबंदी का लाभ बिहार को भी मिलेगा, क्योंकि कुछ अपराध तो शराबखोरी की उपज हैं. कानून का शासन लागू करने में शराबबंदी सहायक होगी. बिहार में शराबबंदी के अच्छे नतीजे मिल रहे हैं. हालांकि अभी बिहार सरकार को शराब के अवैध धंधे में लगे माफियाओं को पूरी तरह पराजित करना बाकी है. जाहिर है कि शराबबंदी की उम्मीद एक योगी मुख्यमंत्री से नहीं की जाएगी तो किससे की जाएगी! संभवतः इसी उम्मीद में वाराणसी की महिलाओं ने शराब के खिलाफ उग्र आंदोलन भी किया है.
इसी मंगलवार को वहां की महिलाओं ने सड़कों पर उतर कर शराब की दुकानों में जबर्दस्त तोड़फोड़ की. नशे की दुकानों पर पथराव भी किया. याद रहे कि महिलाओं की मांग पर ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गत साल राज्य में शराबबंदी लागू की. संभवतः वाराणसी की महिलाएं बिहार की महिलाओं की ही राह पर हैं. यदि आदित्य नाथ जी ने इस दिशा में जल्द कोई कदम नहीं उठाया तो उनके राज्य में ऐसे शराब विरोधी आंदोलन तेज हो सकते हैं. शराबखोरी का सर्वाधिक खराब असर महिलाओं पर ही पड़ता है. परिवार के परिवार बर्बाद होते रहे हैं. बिहार में शराबबंदी से ऐसे अनेक परिवारों की दशा अब सुधरी है जिन परिवारों के मुखिया पहले नशा करते थे और अपने ही परिवार के साथ मारपीट करते थे. उत्तर प्रदेश जैसे आसपास के राज्यों में शराबबंदी लागू हो जाने पर बिहार में भी इसे सफलतापूर्वक लागू करने में सुविधा होगी. अभी तो बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों के नशेबाज बगल के राज्य में जाकर पी लेते हैं.
बिहार में गांधी जी के प्रवास के प्रारंभिक ठौर
चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी के अवसर पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि महात्मा गांधी अपने बिहार प्रवास में किन-किन लोगों के यहां ठहरे थे. गांधी जी 1917 में सात लोगों के यहां बारी-बारी से ठहरे. बापू ने जिनका आतिथ्य स्वीकार किया उनके नाम हैं मोतिहारी के बाबू राम दयाल प्रसाद, बेतिया के बाबू हजारी मल और उनके छोटे भाई सूर्य मल, मुजफ्फरपुर के वकील गंगा प्रसाद सिंह, मोतिहारी के बाबू गोरख प्रसाद, लौकरिया के बाबू खेंधर प्रसाद राय, मुरली भरवा के पंडित राज कुमार शुक्ल के गांव में और बेलवा के संत राउत. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इनमें से कुछ प्रमुख व्यापारी थे. व्यापारियों ने ब्रिटिश सरकार की नाराजगी की परवाह किये बिना गांधी जी को अपने यहां रखा था.
राम मंदिर पर खुशवंत सिंह का सुझाव
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को हल करने के लिए मशहूर पत्रकार और लेखक दिवंगत खुशवंत सिंह ने एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था कि मुसलिम समुदाय अयोध्या, काशी और मथुरा की मसजिदों की जमीन हिंदुओं को सौंप दें. इसके बदले हिंदू संगठन 3997 मसजिदों पर से अपना दावा छोड़ दें. पर इस सुझाव पर भी समझौता नहीं हो सका. कैसे होगा? विवाद को जारी रखने में कुछ लोगों और संगठनों को लाभ जो है! इस विवाद से एक तरफ जहां वोट मिलते हैं तो दूसरी ओर समुदायों को गोलबंद करने में कुछ नेताओं को सुविधा होती है. याद रहे कि हिंदू संगठन का दावा है कि मध्ययुग में इस देश के चार हजार मंदिरों को तोड़कर उसकी जमीन पर मसजिदें बनवा दी गयी थीं.
वाराणसी का ज्ञानव्यापी मसजिद इसका जीता जागता उदाहरण है.
सजा होने पर ताजिंदगी चुनाव से वंचित क्यों नहीं : चुनाव आयोग चाहता है कि जिस नेता को गंभीर आपराधिक मामलों में कोर्ट से सजा हुई है, उसे पूरी जिंदगी चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने शपथपत्र में यह बात कही है. अभी प्रावधान यह है कि यदि किसी को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो सजा की अवधि खत्म होने के बाद भी छह साल तक उस पर चुनाव लड़ने पर पाबंदी है. याद रहे कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में लोकहित याचिका दायर की है. हाल में केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण व सही फैसला किया है. उस फैसले के तहत यदि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के आरोप में किसी व्यक्ति का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द होता है तो उसे बाकी जीवन ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिलेगा. जब ट्रैफिक नियम तोड़ने पर ऐसी सजा तो गंभीर अपराध में सजा पाने के कुछ साल के बाद फिर चुनाव लड़ने की सुविधा क्यों? उम्मीद है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के पक्ष का समर्थन करेगी.
प्रधानमंत्री की सलाह और पर भी लागू : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के उत्तर प्रदेश के सांसदों से कहा है कि वे पुलिस और प्रशासन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाएं और ट्रांसफर-पोस्टिंग से दूर रहें. यह एक अच्छी सलाह है. उत्तर प्रदेश के सांसदों के बहाने यह अन्य राज्यों के भाजपा सांसदों के लिए भी मोदी जी का एक संदेश है. अन्य दलों को भी चाहिए कि वे अपने जन प्रतिनिधियों को ऐसी ही सलाह दें. पर इस मामले में कुछ दलों के साथ बुनियादी दिक्कतें हैं. इस देश के जो जनप्रतिनिधि अपने दलीय सुप्रीमो को भारी चंदा देकर चुनावी टिकट हासिल करते हैं, वे सुप्रीमो की हर सलाह नहीं मानते. उन्हें यह भी लगता है कि अगली बार इस दल से टिकट नहीं मिलेगा तो अधिक चंदा देने पर दूसरे दल से मिल जाएगा. भारी चंदा अनेक मामलों में टिकट की समस्या हल कर देता है. इसका एक ही उपाय है. पर क्या कोई इस सलाह को मानेगा? क्या राजनीतिक दल, दल बदलुओं को टिकट देना बंद करेंगे? यदि बंद कर दें तो किसी दलीय नेता को अपने सांसदों-विधायकों से इतना जोर देकर यह नहीं कहना पड़ेगा कि वे पुलिस के काम में हस्तक्षेप नहीं करें.
सांसदगण अपने शीर्ष नेता का इशारा समझ लेंगे. याद रहे कि इस देश के आपराधिक प्रवृति के अनेक जन प्रतिनिधि पुलिस पर दबाव बना कर ही कानून की गिरफ्त से लंबे समय तक बचे रहते हैं. साथ ही अपने लोगों को बचाते हैं. इससे कानून का शासन लागू करने में दिक्कतें आती हैं. कभी तो दलीय सुप्रीमो उस जन प्रतिनिधि के लिए पुलिस पर दबाव बनाते हैं तो कभी खुद जन प्रतिनिधि यह काम कर लेता हैं.
और अंत में : हाल में मुझे केंद्र सरकार के पटना स्थित एक ऑफिस में जाने का मौका मिला. कार्य संस्कृति तो कुल मिलाकर ठीक ठाक ही लगी. वहां कोई सामान्य नागरिक भी अपना जायज काम आसानी से करा सकता है.
पर उस दफ्तर के शौचालय की हालत दयनीय लगी. वहां की गंदगी प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ा रही थी. क्या ऐसे दफ्तरों में सफाई पर खर्च करने के लिए पैसों का प्रावधान नहीं होता? यदि होता है तो उसका सही इस्तेमाल होता है? यदि सरकार अपने दफ्तरों को स्वच्छ नहीं रख सकती, तो वह पूरे देश में स्वच्छता अभियान को सफल कैसे बनाएगी?

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