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मुंबई से आ रहीं नकली दवाएं

भंडाफोड़. मोटी कमाई के फेर में जिंदगी से हो रहा खिलवाड़ आनंद तिवारी पटना : नकली दवाओं के कारोबार ने पटना को अपनी चपेट में ले लिया है. पटना में थोक और रिटेलर मिला कर रोजाना पांच करोड़ रुपये की दवाओं का कारोबार होता है. इसमें से करीब एक करोड़ रुपये की अमानक दवाओं की […]

भंडाफोड़. मोटी कमाई के फेर में जिंदगी से हो रहा खिलवाड़
आनंद तिवारी
पटना : नकली दवाओं के कारोबार ने पटना को अपनी चपेट में ले लिया है. पटना में थोक और रिटेलर मिला कर रोजाना पांच करोड़ रुपये की दवाओं का कारोबार होता है. इसमें से करीब एक करोड़ रुपये की अमानक दवाओं की खपत रोजाना शहर में हो रही है. सभी अमानक दवाएं गया से लायी जा रही हैं. वहीं, गया में दवाएं मुंबई से लायी जा रही हैं. मोटी कमाई के फेर में चल रही नकली दवाओं की बिक्री के खेल में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है. इसका खुलासा बुधवार को पुलिस विभाग और औषधि विभाग ने किया है. सूत्रों का दावा है कि यदि मामले की ठीक से जांच की जाये, तो स्वास्थ्य व औषधि विभाग में कई अफसरों की गरदन फंस सकती है.
ट्रेन से आती है दवाओं की खेप
नकली दवाओं की खेप के साथ मंगलवार को पकड़े गये दोनों युवकों सुनील कुमार और बबलू ने स्वीकार किया कि ट्रेन के माध्यम से मुंबई से गया करोड़ों रुपये की दवाई आती है. ये दवाएं प्राइवेट टैक्सी, कार और बसों के माध्यम से पटना पहुंचायी जाती हैं. इसके बाद अलग-अलग स्थान पर डिस्ट्रीब्यूटरों के माध्यम से सप्लाइ की जाती है. ऐसी दवाएं रोग ठीक नहीं करतीं, बल्कि सप्लायरों की जेब गरम करती है. इस खुलासे के बाद पुलिस और औषधि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी गुपचुप तरीके से मामले की जांच के आदेश दिये हैं. ऐसे में दोनों विभाग की टीम गया में छापेमारी कर सकती है.
छापेमारी के बाद जीएम रोड में तैनात दो ड्रग इंस्पेक्टर घेरे में
पटना. मंगलवार को जीएम रोड में नकली दवाओं के गोरखधंधे के भंडाफोड़ के बाद से इस इलाके में तैनात दो ड्रग इंस्पेक्टर जांच के घेरे में आ गये हैं. दोनों ड्रग इंस्पेक्टर ने चार माह में सिर्फ 53 दुकानों की जांच की, जबकि यहां 840 दुकानें हैं. ड्रग इंस्पेक्टरों ने जांच में दुकानों को सही बताया है. इसमें एक इंस्पेक्टर ने 42 तथा दूसरे ने 11 दुकानों की जांच की है.
चार दुकानों पर की गयी छापेमारी में बिना बिल एवं एक्सपायरी दवाएं मिली थीं. जबकि अधिकारियों का कहना है कि एक ड्रग इंस्पेक्टर को हर माह कम से कम 20 दुकानों की जांच का निर्देश दिया गया है. अक्तूबर के बाद ड्रग इंस्पेक्टरों की जांच की रिपोर्ट औषधि विभाग को नहीं मिली है. ड्रग कंट्रोलर रवींद्र कुमार सिन्हा ने बताया कि पुलिस विभाग की ओर से की गयी छापेमारी के बारे में औषधि विभाग को जानकारी नहीं थी. वहीं जिन दो इंस्पेक्टरों का नाम आ रहा है उनको बाकी दुकानों में छापेमारी क्यों नहीं हुई इसके बारे में स्पष्टीकरण मांगा जायेगा.
जो दुकानदार मांगने पर भी पक्का बिल नहीं दें, समझ लें कि दवाओं में गड़बड़ी है
दवा के पीछे बैच नंबर, मैनुफैक्चरिंग डेट, एमआरपी पर अगर मोहर लगा हो और प्रिंटिंग आधी अधूरी हो ब्लू प्रिंट और ग्रीन प्रिंट की जगह दूसरे रंग के प्रिंट लगा हो दवा की कोडिंग सही नहीं हो, ब्रांडिंग सही नहीं हो कुछ ऐसी दवाएं जिनका उपयोग आम हैं, उनकी कीमतों में फर्क हो सिफैक्सिम, पेंटॉप, ओपलोक्सासिन, सिप्रो, टर्बोसिड जैसी एंटीबायोटिक दवाएं जेनरिक में बहुत सस्ती हैं. इसी कॉफिगरेशन की महंगी दवाएं दी जाती हैं.
टर्गोसिड दवा की एमआरपी 1910 रुपये है, जबकि प्राइवेट अस्पताल में यह दवा केवल 500 रुपये में उपलब्ध करा देते हैं. लेकिन संचालक मरीज को 1900 में ही उपलब्ध कराता है.
गया से आनेवाली आम दवाइयां
कैंसर, किडनी, टीवी, खांसी, वायरल, प्रोटीन की कमी होने पर दी जानेवाली दवाएं, महंगी एंटीबायोटिक के अलावा दिमागी बीमारी, नींद, खांसी और कफ संबंधी दवाएं मुंबई सं गया होकर अधिक आती हैं.
बिना बिल मिलती हैं सस्ती दवाएं
गया से दवाई लाने पर दवा विक्रेताओं को रिकॉर्ड नहीं रखना होता है. वहां दवाएं सस्ती मिलती हैं. इससे मेडिकल स्टोर संचालक को फायदा मिलने के साथ सरकार को टैक्स भी नहीं देना पड़ता.

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