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देश के लोक उपक्रमों की जमीन पर किसानों का पहला हक

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक ताजा खबर के अनुसार केंद्र सरकार के लोक उपक्रमों की करीब 10 लाख एकड़ जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है. या तो इनके बेहतर इस्तेमाल का सरकार प्रबंध करे या फिर इस जमीन को बेचकर उन पैसों को बेहतर काम में लगाये. याद रहे कि कभी ये जमीन […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
ताजा खबर के अनुसार केंद्र सरकार के लोक उपक्रमों की करीब 10 लाख एकड़ जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है. या तो इनके बेहतर इस्तेमाल का सरकार प्रबंध करे या फिर इस जमीन को बेचकर उन पैसों को बेहतर काम में लगाये. याद रहे कि कभी ये जमीन किसानों से ही ली गयी थी. आज सबसे खराब आर्थिक स्थिति इस देश के किसानों की है. ऐसा इसलिए है क्योंकि किसानों को उनके उत्पादों की कीमत खुद तय करने की अनुमति नहीं है. बेहतर तो यही होगा जिस तरह सिंगूर में अधिग्रहित जमीन फिर किसानों के पास चली गयी, उसी तरह लोक उपक्रमों की जमीन का इस्तेमाल किसानों के भले के लिए हो.
जिस तरह के उपयोग के लिए जमीन अधिग्रहित की जाती है, वैसा उपयोग संभव नहीं होने पर कानूनन जमीन पूर्व के जमीन मालिकों के पास चली जानी चाहिए. पर जो जमीन लोक उपक्रमों के पास है, उसके कई पूर्व मालिकों का संभवत: अब अता-पता भी नहीं होगा.
इसलिए एक दूसरा उपाय यह हो सकता है. नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के प्रारंभिक दिनों में 60 साल से अधिक उम्र के किसानों को मासिक पेंशन देने के प्रस्ताव पर विचार हुआ था. पर, पैसे की कमी आड़े आ गयी. इस 10 लाख एकड़ जमीन को बेचकर इसकी धनराशि के सूद से इस देश के किसानों के लिए पेंशन राशि का प्रबंध हो सकता है. एक अनुमान के अनुसार इस जमीन की कीमत करीब ढाई लाख करोड़ रुपये होगी.
इससे अधिक पैसे भी मिल सकते हैं. इस जमीन को लीज पर भी दिया जा सकता है. पेंशन की शुरुआत किसानों के उन परिवारों से हो जिस परिवार का कोई भी व्यक्ति नौकरी नहीं करता. याद रहे कि केंद्र सरकार के कुल 298 उपक्रमों के पास जमीन हैं. 158 उपक्रम ही फायदे में हैं. जो फायदे में हैं, उनके पास भी कुछ ऐसी जमीन है जिसका उनके लिए अब कोई उपयोग नहीं है. 26 उपक्रम तो बिक्री के लिए उपलब्ध हैं.
किसान पेंशन के फायदे : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह कहा करते थे कि जब तक इस देश में किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी, तब तक उद्योग का भी भरपूर विकास नहीं होगा. जब किसानों की आय बढ़ेगी तभी वे ऐसे-ऐसे करखनिया उत्पाद खरीदेंगे जो वे अभी नहीं खरीद पा रहे हैं. अब तक की सरकारों ने किसानों की आय बढ़ाने का समुचित प्रयास नहीं किया. तो पेंशन ही सही. पेंशन के पैसे परोक्ष रूप से औद्योगीकरण थोड़ा बढ़ायेंगे. कुल मिलाकर उससे देश को लाभ ही होगा. याद रहे कि जब-जब सरकारी कर्मचारियों को नया वेतनमान मिलता है तो खबर आती है कि अब कार और दूसरे करखनिया उत्पाद की बिक्री बढ़ेगी. बढ़ती भी है. कार तो नहीं, पर अधिकतर किसान पैसे के अभाव में साइकिल खरीदने को भी तरसते हैं.
पुलिस हेल्पलाइन एक युगांतकारी प्रयास
अन्य राज्यों के साथ-साथ बिहार में भी अभी यही आम धारणा है कि पैसे या उच्चस्तरीय पैरवी के बिना पुलिस थानों से किसी को कोई मदद नहीं मिलने वाली. थोड़े से अपवादों की बात यहां नहीं की जा रही है. पर बुधवार से पटना में शुरू पुलिस हेल्पलाइन की स्थापना से यह धारणा बदल सकती है. पर, शर्त यह है कि पुलिस हेल्पलाइन ठीक ढंग से काम करे.
यानी उसी तरह काम करे जिस मंशा से राज्य सरकार ने इसकी शुरुआत की है. यदि ऐसा हुआ तो सरकार का यह युगांतकारी प्रयास साबित होगा. इस हेल्पलाइन को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान से जोड़कर देखने पर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. पिछले दिनों उन्होंने कहा कि जो डॉन होगा, वह जेल जायेगा. संभव है कि मुख्यमंत्री का इशारा राज्य के बड़े डॉन की ओर हो. पर राज्य की कमजोर और गरीब जनता जगह-जगह सक्रिय मिनी डॉन से भी परेशान रहती है. पीड़ित लोगों को लगता है कि उनकी गुहार पर पुलिस सक्रिय नहीं होने वाली. इसलिए सहन करो. बरदाश्त करने के साथ ही अनेक लोगों की धारणा सरकार और सत्ताधारी दल के प्रति बदलने लगती है.
इससे सरकार को नुकसान होता है. इसके लिए अधिकतर मामलों में स्थानीय पुलिस दोषी होती है न कि राज्य की राजनीतिक कार्यपालिका.पुलिस महकमे में भी कुछ ऐसे अफसर हैं जो ईमानदारी से काम करना चाहते हैं. ऐसे अफसर हेल्पलाइन को चलायें और थानों को टाइट करते रहें. यदि ऐसा सचमुच हुआ तो राज्य के कमजोर वर्ग के लोगों को लगेगा कि उनके लिए नया युग आ रहा है. याद रहे कि पैसे, पद और प्रभाव वाले लोग तो पुलिस से भी किसी तरह अपना काम करवा ही लेते हैं.
पर गरीबों को यह लगता है कि गाढ़े वक्त में भी उनकी गुहार कोई सुनने वाला नहीं है. याद रखना चाहिए कि कमजोर और छोटे बड़े डॉन से प्रताड़ित लोग सभी जातियों और समुदायों में हैं.
अपनी माफी याद रखेंगे काटजू?: यह अच्छा हुआ कि मार्कंडेय काटजू ने बिहार पर अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांग ली. उन्होंने बिहार की भावना को समझा है. पर सवाल है कि क्या अपनी आदत से लाचार काटजू अपनी यह माफी याद रखेंगे क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि उन्होंने किसी की भावना के साथ खिलवाड़ किया है. उनके दादा व स्वतंत्रता सेनानी कैलाशनाथ काटजू के महान कर्मों के प्रशंसकों को मार्कंडेय जी खुश कर देंगे यदि वह भविष्य में ऐसा कोई विवादास्पद बयान नहीं देंगे.
पर अनेक लोगों को अब भी लगता है कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे. जब 2012 में उन्होंने कहा था कि ‘इस देश के 90 प्रतिशत लोग मूर्ख हैं तो भी उन्होंने एक बड़ी आबादी की भावना को चोट पहुंचायी थी.
उन्होंने 2015 में कहा कि ‘महात्मा गांधी ब्रिटिश एजेंट थे और सुभाष चंद्र बोस जापान के एजेंट थे.’भावनाएं तब भी आहत हुई थीं. इस तरह के उनके अन्य कई बयान समय-समय पर आते रहे. बेहतर होगा कि अब वे अपनी प्रतिष्ठा व शक्ति को बेहतर कामों में लगायें. इससे पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत केएन काटजू की आत्मा को शांति मिलेगी.
अब जरा बड़े काटजू के बारे में : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहने के बाद कैलाशनाथ काटजू पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने थे. एक कंपनी ने उनके पुत्र शिवनाथ काटजू को अपनी कंपनी के निदेशक मंडल में रखने का ऑफर दिया. कंपनी ने राज्यपाल काटजू से मदद लेने की उम्मीद में उनके पुत्र को ऐसा प्रस्ताव दिया. पर,बड़े काटजू ने अपने पुत्र को क्या लिखा,उसे आज की पीढ़ी के लिए जानना जरूरी है. लोकलाज व नैतिकता का ध्यान रखने वाले कैलाशनाथ काटजू ने लिखा कि उस कंपनी में हमारे शेयर बहुत कम हैं.
कम शेयर के आधार पर तुम्हें निदेशक मंडल में रखा जाना मुझे युक्तिसंगत नहीं लगता. इसलिए यदि तुम निदेशक मंडल में शामिल होने की सहमति दोगे तो मुझे बता देना. मैं तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा. बस मैं राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर वकालत करने के लिए इलाहाबाद आ जाऊंगा. शिवनाथ जी ने अपने पिता की इज्जत रखी. पर,उनके पुत्र मार्कंडेय जी तो कभी माफी मांग रहे हैं तो कभी राज्य सभा उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास कर रही है.
और अंत में : 350 वें प्रकाश पर्व की तैयारी को सफल बनाने के प्रयास में राज्य सरकार गंभीरता से लगी हुई है. पर पटना साहिब इलाके के सौंदर्यीकरण के काम में लगे निचले स्तर के सरकारीकर्मियों के सुस्त रवैये से जिलाधिकारी व आयुक्त नाराज लग रहे हैं. देखना है कि बिहार की इज्जत बचाने के लिए बड़े अफसरगण निकम्मे तंत्र को किस हद तक चुस्त बना पाते हैं. याद रहे कि प्रकाश उत्सव में शामिल होने के लिए दुनिया भर से सिख धर्मावलंबी यहां पहुंचेंगे.

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