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मंत्री जी दिल्ली नगर निगम का प्रचार कर रहे हैं तो इहां प्रचार लागी काहे नाहीं बुलाते, पार्षद जी

पटना : ए भाई देखिए, मंत्री जी शुरू से हमारे वार्ड में आते रहे हैं. एगो, दूगो नहीं, अकेले हमार वार्ड में विभाग से लेकर नगर निगम तक का पांच से अधिक योजना का उद्घाटन किये हैं. हम उनको प्रचार लागी तो बुला ही सकते थे, बाकी पेच इ है कि अपने राज्य में पार्टी […]

पटना : ए भाई देखिए, मंत्री जी शुरू से हमारे वार्ड में आते रहे हैं. एगो, दूगो नहीं, अकेले हमार वार्ड में विभाग से लेकर नगर निगम तक का पांच से अधिक योजना का उद्घाटन किये हैं. हम उनको प्रचार लागी तो बुला ही सकते थे, बाकी पेच इ है कि अपने राज्य में पार्टी स्तर का चुनाव नहीं होता, सीधे कोई पार्टी अपने बैनर तले नगर निगम चुनाव नहीं लड़ती.
एेसे में वह चाह कर भी हमारा प्रचार नहीं कर सकते. आप लोग जानते ही हैं कि प्रचार करना होता, तो हमर वार्ड छोड़ कर मंत्री जी कहीं नहीं जाते. शाम को चुनावी जनसंपर्क अभियान के दौरान वार्ड पार्षद महोदय मंत्री जी का नाम लेकर माहौल को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे थे. पार्षद महोदय ने बात खत्म की, तभी आवाज आयी, बनियेगा तेज, अबहिये न मंत्री जी दिल्ली से नगर निगम का चुनाव प्रचार कर लौटे हैं, जब उ नगर निगम के चुनाव में दिल्ली जा सकते हैं, तो इंहा काहे नहीं प्रचार कर सकते.
भाजपा और जदयू के अधिक हैं नेता
इस समय जो पार्षद हैं, उनमें से सबसे अधिक भाजपा अौर जदयू को समर्थन करनेवाले लोग हैं. मेयर पर जब भी अविश्वास प्रस्ताव आता है. इसमें भी फलां गुट व फलां गुट का नाम समर्थन व विरोध में रहता है. राजद के समर्थनवालों की संख्या भी ठीक-ठाक है. मजे की बात यह है कि केंद्रीय योजनाओं का उद्घाटन भाजपा नेताओं से कराया जा रहा है. वहीं सरकार के निश्चय की योजनाओं को पूरा करने व उद्घाटन के लिए राज्य सरकार के नेताओं को बुलाया जा रहा है.
परदे के पीछे हैं दल, पार्टी सपोर्ट करे न करे, पार्टी से तो सब जुड़े हैं
बिहार में नगर निगम का चुनाव किसी राजनीतिक पार्टी के बैनर तले नहीं होता, जैसा दिल्ली या अन्य और राज्यों में होता है. इस बात का मलाल भले ही नये पार्षद प्रत्याशियों को रहे न रहे, लेकिन नगर निगम के अधिकांश पुराने पार्षदों को जरूर है, क्योंकि पुराने पार्षदों में से अधिकांश लोगों ने बतौर वार्ड पार्षद से इतर पार्टी का दामन जरूर थाम लिया है. एेसे में पुराने लोगों को लगता है कि अगर पार्टी स्तर पर चुनाव होता, तो चुनाव में उनको अपना लेखा-जोखा न देकर पार्टी के राज्य स्तर या देश स्तर के काम का हवाला देकर चुनाव में अपने पक्ष में माहौल खड़ा कर लिया जाता और जीत दर्ज करने में आसानी होती.

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