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बिहार की बड़ी चुनौतियां : कई परियोजना अधर में, 15 साल से घिसट रहा गांधी सेतु, पढ़े पूरी कहानी

बिहारवासियों के लिए 2016 कई मायनों में उपलब्धियों भरा रहा, वहीं नये साल में लोग कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के पूरे होने की उम्मीद संजो रहे हैं. आम लोगों से जुड़ी कई परियोजनाओं की प्रगति काफी धीमी हैं, जिन्हें इस साल पूरी करने की बड़ी चुनौती है. उत्तर व दक्षिण बिहार की लाइफलाइन गांधी सेतु की […]

बिहारवासियों के लिए 2016 कई मायनों में उपलब्धियों भरा रहा, वहीं नये साल में
लोग कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के पूरे होने की उम्मीद संजो रहे हैं. आम लोगों से जुड़ी कई परियोजनाओं की प्रगति काफी धीमी हैं, जिन्हें इस साल पूरी करने की बड़ी चुनौती है. उत्तर व दक्षिण बिहार की लाइफलाइन गांधी सेतु की मरम्मत बहुप्रतीक्षित है. इस सेतु के जीर्णोद्धार का काम प्रधानमंत्री के हाथों 15 जनवरी को शुरू होने की संभावना है. राज्य में 10 नये मेडिकल कॉलेज अस्पताल की स्थापना की उम्मीद पिछले साल पूरी नहीं हो सकी . सड़क की बात करें, तो पटना-बक्सर, एनएच 31 बख्तियारपुर-मोकामा फोर लेन, एनएच-77 हाजीपुर-मुजफ्फरपुर खंड सहित कई महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण होना बाकी है. वहीं दो भागों में बंटे मिथिलांचल को जोड़ने वाले रेल महासेतु का निर्माण अब भी अधर में है. गया में रोपवे के बनने का अब भी लोगों को इंतजार है. पशुपालन विभाग की कुछ योजनाओं की रफ्तार भी धीमी है. आज के बिग इश्यू में हम राज्य की ऐसी महत्वपूर्ण योजनाओं की पड़ताल कर रहे हैं, जिन्हें नये साल में पूरा करना सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती बनी हुई है.
प्रमोद झा
पटना : प्रीस्ट्रेड कंक्रीट बैलेंस कैंटीलीवर तकनीक से बना 34 साल पुराना महात्मा गांधी सेतु पर परिचालन सामान्य करना सरकार के लिए इस साल बड़ी चुनौती है. पिछले 15 साल से गांधी सेतु को समय-समय पर दुरुस्त किया जा रहा है, लेकिन अब तक मरम्मत नहीं हुई. अब सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर को बदल कर उसे दुरुस्त करने की तैयारी हो रही है. फरवरी से सेतु के अप स्ट्रीम की कटिंग शुरू होने की संभावना है. उत्तर व दक्षिण बिहार की लाइफलाइन गांधी सेतु से टॉल टैक्स से लगभग 140 करोड़ की वसूली हुई. सेतु की मरम्मत पर लगभग 200 करोड़ अब तक खर्च हुए हैं. पांच साल पहले पाया संख्या 46 के धंसने के बाद अपस्ट्रीम हिस्से में परिचालन बंद कर दिया गया था. बाद में उसकी मरम्मत के लिए उस हिस्से की कटिंग का काम किया गया. अब जापान की संस्था जायका के सुझाव पर सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर को बदल कर स्टील का स्ट्रक्चर बनाया जायेगा.
सालों पहले गड़बड़ी हुई थी उजागर
गांधी सेतु में वर्ष 1992 में गड़बड़ी उजागर हुई थी. सेतु के दोनों साइड लगे कैंटीलीवर में झुकाव होने से सेतु पर दवाब बनने लगा था. कैंटीलीवर की मरम्मत कर उसे दुरुस्त किया गया था. मरम्मत करनेवाले इंजीनियरों ने सेतु पर ओवरलोड परिचालन पर रोक लगाने की बात कही थी. इसकी अनदेखी हुई. सेतु में कुछ न कुछ गड़बड़ी को लेकर 2001 के बाद उसे समय-समय पर दुरुस्त किया जा रहा है. सेतु की पाया संख्या 46 के धंसने के बाद ओवरलोड वाहनों के परिचालन पर रोक लगायी गयी.
जायका ने दिया सुझाव
सेतु की पूरी मरम्मत का निर्णय जापान की संस्था जायका के सुझाव पर हो रहा है. जायका के एक्सपर्ट ने 2014 के अक्तूबर माह में निरीक्षण किया था. निरीक्षण के बाद सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर कंक्रीट को बदल कर स्टील का बनाने का सुझाव दिया था. जायका के सुझाव पर केंद्र सरकार ने ऊपरी स्ट्रक्चर को बदलने का निर्णय लिया.
जांच में सेतु के पिलर ठोस
ऊपरी स्ट्रक्चर को बदलने के बाद वाहनों के परिचालन को लेकर सेतु के पिलर उस भार को सहने में सक्षम है या नहीं, इसकी जांच हुई है. सेतु के पिलर की मजबूती के लिए आइआइटी रूड़की के विशेषज्ञ ने मई, 2016 में पिलर के नीचे की मिट्टी व कंक्रीट की जांच की. लगभग दो माह रह कर विशेषज्ञों ने नमूना कलेक्शन कर आइआइटी रूड़की के लैब में जांच की. जांच में डिस्ट्रक्टिव व नन डिस्ट्रक्टिव तरीके में सेतु के पिलर ठोस पाये गये.
सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर बदलने का काम ज्वाइंट वेंचर में होगा. इसमें रूस की कंपनी फिबमॉफ व मुंबई की कंपनी एफकॉन्स शामिल हैं. गांधी सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर की मरम्मत पर लगभग 1742 करोड़ खर्च होंगे. गांधी सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर को बदलने का काम साढ़े तीन साल में पूरा होना है. सेतु के ऊपरी स्ट्रक्चर के बदलने के लिए कटिंग का काम जनवरी में शुरू होने की संभावना थी. लेकिन प्रकाशोत्सव को लेकर गांधी सेतु के निर्माण में देरी हो रही है. जानकारों के अनुसार फरवरी में काम शुरू होने की संभावना है. निर्माण एजेंसी द्वारा हाजीपुर साइड में बेस कैंप तैयार करने के लिए जमीन की तलाश की जा रही है. इसके लिए लगभग 100 एकड़ जमीन की जरूरत है. कंपनी को हाजीपुर छोर पर 40 एकड़ जमीन मिली है.
विखंडित मिथिलांचल को जोड़ने का सपना अधूरा
सुपौल. बात वर्ष 1934 की है, जब भूकंप के तगड़े झटके ने मिथिलांचल को दो हिस्सों में बांट दिया. वक्त बदला और सड़क महासेतु के रूप में दोनों हिस्सा एक बार फिर जुड़ चुका है, लेकिन यातायात के सबसे बड़े साधन के रूप में स्थापित रेलवे संपर्क अब भी स्थापित नहीं हो सका है. पूर्व में इस ट्रैक पर रेल का परिचालन होता था, लेकिन भूकंप ने एक ही झटके में कोसी नदी पर बने रेल पुल का वजूद ही मिटा दिया. 06 जून 2003 को जब सड़क और रेल महासेतु का निर्माण एक बार फिर आरंभ हुआ, लगा कि सब कुछ फिर से सामान्य हो जायेगा. कुछ हद तक सपने सड़क महासेतु के निर्माण से पूरे भी हुए. वर्ष 2012 में इस पुल पर वाहनों का परिचालन आरंभ हो गया, लेकिन रेल महासेतु का निर्माण अब भी अधर में है. राशि का अभाव और निर्माण कंपनी का लचर रवैया दोनों को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया जा सकता है, लेकिन इसके पीछे की एक हकीकत यह भी है कि महासेतु पर रेल परिचालन के लिए इस ट्रैक के कुछ हिस्से में जमीन का अधिग्रहण का मामला विवादों में है. तीन एकड़ विवादित जमीन पर किसानों ने बांस-बल्ला डाल कर अपना मालिकाना हक जताया है. मामला डीएम के जनता दरबार में पहुंचा. जांच भी हुई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. राज्य और केंद्र सरकार दोनों एक-दूसरे पर आक्षेप तो करती है, लेकिन समस्या के समाधान को लेकर कोई भी आगे नहीं बढ़ रहा है.
ट्रेनें तो चली पर सड़क मार्ग से यात्रा का अब भी इंतजार
मुंगेर. वर्षों के इंतजार के बाद गत वर्ष 2016 में गंगा रेल सह सड़क पुल बनकर तैयार हो गया और अप्रैल 2016 से रेल पुल पर ट्रेनों का परिचालन भी प्रारंभ हो गया. लेकिन अभी भी क्षेत्र के लोगों को सड़क यात्रा का इंतजार है. पुल तो बनकर तैयार है किंतु एप्रोच पथ नहीं होने के कारण सड़क यातायात प्रारंभ नहीं हो पाया है. नये साल 2017 में लोगों को उम्मीद है कि गंगा पुल का एप्रोच पथ बनेगा और मुंगेर से खगड़िया-बेगूसराय के बीच सीधी सड़क सेवा प्रारंभ हो जायेगी.
गंगा पुल को एनएच 80 से जोड़ने के लिए मुंगेर क्षेत्र में 48 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. पुल का एप्रोच पथ मुंगेर में जहां एनएच 80 में मिलेगा. वहीं बेगूसराय में 31 से जुड़ेगा. जहां कुल 9 किलोमीटर लंबी एप्रोच सड़क का निर्माण किया जाना है. यह पथ मुंगेर शहर के दस वार्डों से होते हुए 34 गांवों होकर गुजरेगी. जिसमें कुल 48 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होना है. जिसकी प्रक्रिया तीव्र गति से
चल रही.
भूमि अधिग्रहण के लिए जिला से एनएचएआइ को पत्र भेज कर 30 करोड़ रूपया का डिमांड किया गया है. गंगा पुल के एप्रोच पथ बन जाने से मुंगेर-खगड़िया-बेगूसराय के साथ ही उत्तर एवं पूर्व बिहार की दूरी काफी कम हो जायेगी. इस पुल के माध्यम से मुंगेर से सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर, बेगूसराय, दरभंगा, मुजफ्फरपुर सहित अन्य जिलों का सीधा सड़क संपर्क मुंगेर से होगा और लगभग सभी जिलों की वर्तमान सड़क मार्ग की दूरी 100 किलोमीटर तक घट जायेगी.
सिस्टम की सुस्ती में फंसे राज्य के मेडिकल कालेज
शशिभूषण कुंअर
पटना : राज्य में स्थापित होनेवाले 10 नया मेडिकल कॉलेज अस्पताल सरकारी तंत्र की सुस्ती में फंस गये हैं. इसके निर्माण और एमसीआइ से मान्यता मिलने पर राज्य में मेडिकल कॉलेज अस्पतालों की संख्या कुल 19 हो जाती. साथ ही सीटों की संख्या में भी एक हजार की बढ़ोतरी हो जायेगी. राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल, मधेपुरा के निर्माण की घोषणा तो 2006-07 में ही हुई थी. इसके साथ घोषित होनेवाले वर्द्धमान आयुर्विज्ञान संस्थान,पावापुरी और राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल,बेतिया में चार सत्र में नामांकन हो चुका है. बाद में शुरू किया गया इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिकल कॉलेज में भी एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई आरंभ हो चुकी है. राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल,बेतिया में अभी तक भवन निर्माण का कार्य नहीं हुआ है. यहां पर विद्यार्थियों के रहने के लिए न तो छात्रावास है और न ही शैक्षिनिक कार्यों के लिए उपयुक्त भवन और लैब की व्यवस्था.
राज्य मंत्रिपरिषद ने 15 मई, 2014 को तीन मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के लिए प्रति कॉलेज 657 पदों की स्वीकृति दे दी है. अभी तक जिलाधिकारियों द्वारा जमीन के चयन और उसके प्रस्ताव मिलने के इंतजार में दो साल से प्रोजेक्ट अधर में लटका है. इसी तरह से मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत पांच नये मेडिकल कालेजों के खोलने की घोषणा की गयी है. साल 2016 बीत जाने के बाद भी अभी तक जमीन चिह्नित करने और उसे अधिग्रहित करने की कार्रवाई पूरी नहीं की गयी है. मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल सीतामढ़ी, राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल महुआ (वैशाली), राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल,भोजपुर (आरा), राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल, बेगूसराय और राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल, मधुबनी शामिल हैं. इनमें भोजपुर और वैशाली में जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित हो गयी है. अभी छपरा, समस्तीपुर, बेगूसराय और मधुबनी में जमीन का क्लियरेंस होना बाकी है. सीतामढ़ी में अभी तक जमीन नहीं मिल पायी है. मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत निर्मित होनेवाले मेडिकल कालेजों के निर्माण में अभी जमीन क्लियरेंस कराने में ही यह वित्तीय वर्ष गुजर जायेगा.
रफ्तार नहीं पकड़ सकीं रोजगार देनेवाली योजनाएं
कुलभूषण
पटना : इस साल राज्य में लोगों को रोजगार देने की योजनाएं धरातल पर उतरने की उम्मीद है. ऐसी योजनाओं में मुर्गी ग्राम योजना, समेकित बकरी और भेड़ विकास योजना और मिनी डेयरी योजना शामिल हैं. इन योजनाओं को शुरू करने का उद्देश्य ही लोगों को घर बैठे रोजगार और आमदनी इतनी बढ़ानी थी कि उनके जीवन स्तर को उठाया जा सके. लोगों को कुपोषण की समस्या से मुक्त किया जा सके.
लगभग तीन साल पहले शुरू हुई योजनाओं में राज्य में 2012-15 तक 5.45 लाख बीपीएल परिवारों को 45 मुर्गा देने की तैयारी की गयी थी. इसके लिए 13 जिलों का चयन भी किया गया था. योजना पूरी तरह लागू होने के बाद राज्य सरकार ने जीविका समूह की महिलाओं द्वारा चूजा वितरण योजना शुरू की गयी. इस योजना को शुरू हुए भी तीन साल बीत गये हैं, लेकिन राज्य के सभी बीपीएल परिवार को मिलने के बजाय अब तक मात्र 3072 परिवार को 175296 चूजे का लाभ मिल सका . जीविका और पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस योजना में कई प्रयोग शुरू होने के कारण अब तक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका है.
इस योजना के तहत सरकार जीविका के माध्यम से दस रुपये चूजा की दर से एक परिवार को 25 चूजा तक देने की योजना शुरू की. यहां चूजे की आपूर्ति की जिम्मेवारी सरकार के कुक्कुट पालन प्रक्षेत्र यानी सरकारी मुर्गा फार्म को दी गयी . बाद में इस योजना के तहत दस रुपये चूजे की ही दर से 45 से 150 चूजा तीन से छह बार में एक परिवार को देने की योजना बनी. अब भी इस योजना को राज्य के बीपीएल परिवार तक नहीं पहुंचाया जा सका है.
पशुपालन विभाग द्वारा जारी सूचना के अनुसार 2016-17 में 52110 परिवारों के बीच 1554664 चूजे बांटे जा सके. राज्य में इस योजना को लागू किया गया होता तो राज्य के भूमिहीन परिवार को मुर्गा पालन से जोड़कर पलायन, कुपोषण को दूर कर लोगों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता था. राज्य में पशुपालन की इन योजनाओं से बड़ा लाभ मिल सकता था, क्योंकि राज्य की बड़ी आबादी छोटे किसान हैं. इन्हें इतनी जमीन नहीं है कि वे व्यापक पैमाने पर खेती कर सकें, लेकिन वे बकरी पालन, मुर्गा पालन कर अपनी आमदनी को एक मझोले किसान के बराबर कर सकते हैं.
नहीं स्थापित हो सके पांच हजार मुर्गीवाले 82 लेयर फार्म
राज्य में दूसरे राज्यों से मुर्गा ओर अंडे की आयात को कम करने के लिए राज्य सरकार ने पांच हजार मुर्गी क्षमता के 82 लेयर मुर्गी फार्म की स्थापना की योजना बनायी थी. इसके लिए 2016-17 में 19.88 करोड़ रुपये स्वीकृत किया गया था. इसमें पांच हजार मुर्गी की क्षमता वाले 46 और 10 हजार मुर्गी की क्षमता वाले 36 इकाई की स्थापना का लक्ष्य तय किया गया था. राज्य सरकार ने इस योजना में सामान्य जाति के लाभुकों को 30 प्रतिशत और एससी-एसटी श्रेणी के लोगों के लिए 40 प्रतिशत और बैंक ऋण के ब्याज पर 50 प्रतिशत अनुदान देना तय किया गया था. अब तक इस महत्वपूर्ण योजना पर कोई काम शुरू नहीं हो सका है. एक अनुमान के मुताबिक इस योजना के लागू होने से राज्य के कम आमदनी वाले लोगों को घर बैठे बड़ी आमदनी के साथ उन्हें कुपोषण की समस्या से छुटकारा मिल जाता. हालांकि राज्य सरकार देरी से ही सही इस योजना को पूरे राज्य में लागू करने की तैयारी में जुटी है. इस योजना से राज्य में आंध्रप्रदेश समेत अन्य राज्यों से अंडा और मुर्गा के आयात को कम किया जा सके.
विश्वविद्यालय का सरजमीं पर उतरने का है इंतजार
पूर्णिया. संकल्प यात्रा के क्रम में 16 दिसंबर 2013 को सीएम नीतीश कुमार ने पहली बार जिला मुख्यालय में सीमांचल के शैक्षणिक विकास के लिए विश्वविद्यालय स्थापना की घोषणा किया था. उसके बाद विश्वविद्यालय की स्थापना का इंतजार होता रहा. 13 जून 2016 को जब सीएम नशामुक्ति अभियान के तहत जिले में जीविका दीदियों की जागरूकता रैली में शामिल हुए थे, तब उन्होंने प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के दौरान अपनी घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश भी दिये थे. लेकिन आदेश के छह माह से अधिक बीत चुके हैं और आज भी विश्वविद्यालय फाइल से बाहर नहीं निकल पाया है. 13 जून को सीएम के आदेश के बाद जिला प्रशासन गंभीर हुआ और विवि के लिए जमीन की तलाश भी आरंभ कर दी गयी.
इसके लिए मुख्यालय के खुश्कीबाग स्थित कृषि फार्म की जमीन का प्रस्ताव जुलाई माह के अंत में राज्य सरकार को भेज दिया गया. साथ ही विवि का तात्कालिक कार्यालय पूर्णिया कॉलेज के नवनिर्मित परीक्षा भवन में खोले जाने का प्रस्ताव भी भेजा गया.
इस बीच पूर्णिया के साथ ही पटना में विवि स्थापना को लेकर 30 जुलाई को राज्य कैबिनेट की भी स्वीकृति मिल गयी. वहीं अगस्त माह में इसके लिए बकायदा गजट का प्रकाशन भी कर दिया गया. लेकिन इसके बाद से इस दिशा में पहल सिफर है और अब तक विवि स्थापना को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है.
मंत्रालय को तीसरी बार भेजा डीपीआर
सबौर से रमजानीपुर के बीच लगभग 31 किमी लंबी नेशनल हाइवे 80 का बनाने का रास्ता साफ नहीं हो सका है. राष्ट्रीय उच्च पथ प्रमंडल, भागलपुर ने तीसरी बार डीपीआर को स्वीकृति के लिए मंत्रालय भेजा है. इससे पहले लगभग 68 करोड़ का डीपीआर स्वीकृति के लिए भेजा था, जिसे मंत्रालय ने यह कह कर लौटा दिया था कि सबौर से कहलगांव के बीच बाढ़ में डूबने वाले मार्ग पर नये पुल को शामिल किया जाये.
बाढ़ के बाद मंत्रालय से लौटाये गये डीपीआर में मसाढ़ू पुल सहित चार पुल-पुलिया के बनाने की राशि को प्राक्कलन में शामिल कर 101 करोड़ के डीपीआर को स्वीकृति के लिए मंत्रालय भेजा. हाल के कुछ दिन पहले इसे भी लौटा दिया गया. विभागीय अधिकारी के अनुसार पीसीसी बनाने पर आपत्ति पर डीपीआर में 31 किमी लंबी पीसीसी सड़क की योजना शामिल किया गया था. तीसरी बार मंत्रालय भेजा गया 82 करोड़ का डीपीआर अलकतरा वाली सड़क का है, जिसमें 14 किमी तक सड़क के दोनों ओर नाला बनाने सहित मसाढ़ू पुल व आठ पुलिया का बनाना शामिल है. डीपीआर बनाने और इसे संशोधित करने वाली एजेंसी पटना की ट्रांसटेक कंपनी है.
अगर मंत्रालय मंजूरी देती है, तो इस साल सबौर से रमजानीपुर तक एनएच 80 का बनना संभव होगा. इधर पटना-बक्सर फोर लेन बनने का काम पिछले पांच साल से नहीं शुरू हो सका है. इस साल इस सड़क के काम शुरू होने की संभावना है. फोर लेन के लिए जमीन नहीं मिलने से सड़क निर्माण का काम जस का तस है.
जमीन नहीं मिलने से अटका है काम
एनएच 31 बख्तियारपुर-मोकामा फोर लेननिर्माण के लिए जमीन नहीं मिलने के कारण सड़क निर्माण काम शुरू नहीं हो सका है. पहले भी जमीन नहीं मिलने के कारण सड़क निर्माण के लिए टेंडर निकालने के बावजूद बार-बार रद्द करना पड़ा. एक बार फिर से सड़क निर्माण के लिए कांट्रैक्टर का चयन हुआ है. लेकिन अभी मात्र 46 फीसदी जमीन अधिग्रहण हुआ है. इस वजह से काम शुरू नहीं हो सका है. फोर लेन का निर्माण 90 फीसदी जमीन अधिग्रहण होने के बाद ही संभव है. शेष जमीन अधिग्रहण के लिए प्रक्रिया चल रही है.
एनएचएआइ ने जमीन अधिग्रहण के लिए संबंधित अधिकारी के पास 224. 52 करोड़ जमा किया है. इसमें किसानों को 131 करोड़ राशि वितरण हुआ है.बख्तियारपुर से मोकामा के बीच 45 किलोमीटर फोर लेन बनाने का काम पूरी तरह ग्रीनफील्ड एलायनमेंट है. इसमें नये वाइपास का निर्माण होना है. नये वाइपास के निर्माण के लिए 240 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है. अभी 46 फीसदी जमीन मिली है. जमीन नहीं मिलने के कारण पहले दो बार वर्ष 2014 व 2015 में टेंडर निकालने के बाद उसे रद्द करना पड़ा था.
एक बार फिर फोर लेन बनाने के लिए कांट्रैक्टर का चयन फरवरी 2016 में हुआ. कांट्रैक्टर द्वारा फोर लेन बनाने के लिए कैंप लगा कर सर्वे शुरू किया गया है. लेकिन जमीन नहीं मिलने के कारण काम आगे नहीं बढ़ा है.फोर लेन के निर्माण पर 837 करोड़ खर्च होंगे. फोर लेन बनाने का काम बीएससीपीएल एजेंसी करेगी. इपीसी मोड पर बननेवाले फोर लेन का काम ढाई साल में पूरा करना है.

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