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नीतीश कैबिनेट ने रियल एस्टेट के क्षेत्र में इस नये एक्ट को दी मंजूरी, अब बिल्डर नहीं कर सकेंगे मनमानी

पटना : बिहार राज्य मंत्रिपरिषद ने बिहार अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम 2017 को आज मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में आज संपन्न राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों से नगर विकास और आवास विभाग के प्रधानसचिव चैतन्य प्रसाद ने बताया कि भारत सरकार द्वारा दिनांक 25 मार्च 2016 को […]

पटना : बिहार राज्य मंत्रिपरिषद ने बिहार अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम 2017 को आज मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में आज संपन्न राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों से नगर विकास और आवास विभाग के प्रधानसचिव चैतन्य प्रसाद ने बताया कि भारत सरकार द्वारा दिनांक 25 मार्च 2016 को अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 अधिसूचित किया गया था.

उन्होंने बताया कि इस अधिनियम के माध्यम से उपभक्ताओं के हितों की रक्षा करने रियल स्टेट लेनदेन मेंं निष्पक्षता लाने एवं समय पर परियोजनाओं के कार्यान्वयन में मार्ग प्रशस्त के उद्देश्य से इस अधिनियम के अधीन बिहार अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2017 बनाया गया है.

मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के प्रधानसचिव ब्रजेश महरोत्रा के साथ पत्रकारों को संबोधित करते हुए चैतन्य ने बताया कि इस अधिनियम के माध्यम से प्रत्येक राज्य में एक रियल स्टेट नियामक प्राधिकार (रियल स्टेट रेगुलेटरी अथारिटी) बनाने का प्रावधान किया गया है, जिसके समक्ष किसी भी बिल्डर के विरुद्ध शिकायत के निवारण के लिए उपभोक्ता द्वारा अपना मामला दायर किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि आवासीय एवं व्यवसायिक दोनों तरह के नयी परियोजनाओं के यह अधिनियम तो लागू होगा ही साथ ही चल रहे प्रोजेक्ट जिनका पूरा करने का प्रमाण पत्र अभी तक नहीं लिया गया है, उन पर भी यह अधिनियम लागू होगा.

चैतन्य ने बताया कि ऐसे सभी अचल सम्पदाओं को प्राधिकार में निबंधित करना होगा, जिसमें भूमि का आकार 500 वर्ग मीटर से अधिक हो अथवा अपार्टमेंट में फ्लैट की संख्या 8 या उससे अधिक हो. सभी अचल सम्पदा की परियोजनाओं का निबंधन प्रधिकार के साथ करने के बाद ही कोई डेवलपर उक्त परियोजना केा विज्ञप्ति करने, विपणन करने, ब्रिकी करने इत्यादी के लिए सक्षम हो सकेगा. उन्होंने बताया कि परियोजनाओं के निबंधन के लिए डेवलपर को परियोजना का पूर्ण विवरण का प्रारुप जमा करना होगा और प्राधिकार के वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जायेगा.

प्रसाद ने बताया कि बिहार अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम 2017 के द्वारा यह अनिवार्य किया गया है कि डेवलपर को परियोजना में जो भी राशि प्राप्त होती है उसका 70 प्रतिशत एक अलग बैंक खाता में जमा करेगा और परियोजना के अभियंता, वास्तुविद एवं चार्टर्ड एकाउंटेट के प्रमाण पत्र के आधार पर उसी अनुपात में राशि की निकासी कर सकेगा, जिस अनुपात में परियोजना का औसत काम पूरा हुआ हो.

उन्होंने कहा कि डेवलपर उपभोक्ता से बुकिंग राशि या एडवांस राशि के रुप में अपार्टमेंट-प्लॉट के मूल्य का 10 प्रतिशत की राशि नही ले सकेगा. चैतन्य ने बताया कि अधिनियम का एक महत्वपूर्ण शर्त यह भी है कि डेवलपर द्वारा कारपोरेट क्षेत्र के आधार पर ही किसी भी परियोजना की अपार्टमेंट को बेचा जा सकेगा. कारपोरेट क्षेत्र की परिभाषा में अपार्टमेंट में वास्तविक उपयोग में आने वाले पूर्ण क्षेत्र के क्षेत्रफल को रखा गया है, जो बाहरी दीवार के अंदर है. उन्होंने कहा कि बालकनी, बरामदा एवं सर्विस शाफ्ट इत्यादि को इसमें शामिल नहीं किया गया है. यदि परियोजना में विलंब होता है तो डेवलपर को उपभोक्ता को उसके द्वारा दिये गये राशि पर ब्याज भी देना पड़ेगा.

चैतन्य ने बताया कि डेवलपर किसी भी अपार्टमेंट के प्लान में जब तक कोई परिवर्तन नहीं कर सकेंगे, जब तक इसके लिए उपभोक्ता लिखित अनुमति नहीं देता है. उपभोक्ता अपार्टमेंट में किसी तरह की त्रुटि के लिए कब्जे के एक वर्ष के बाद भी उसे ठीक करने की मांग कर सकता है.

प्रसाद ने बताया कि बिहार अचल सम्पदा (विनियमन और विकास) अधिनियम 2017 के माध्यम से रियल स्टेट नियामक प्राधिकार के पूर्णकालिक स्थापना तक नगर विकास और आवास विभाग के तत्काल प्रधानसचिव को प्राधिकार के रुप में नामित किए जाने का प्रस्ताव है. उन्होंने बताया कि अधिनियम की धारा-43(4) के आलोक में राज्य में रियल स्टेट अपीलीय न्यायधिकरण की स्थापना तक राज्य में प्रभावी भूमि न्यायाधीकरण को तत्काल अपीलीय न्यायाधिकरण के रुप मे नामित किए जाने का प्रस्ताव है. धारा-75 के अधीन रियल स्टेट रेगुलेटरी कोष का गठन किया जाना है.

उन्होंने बताया कि उपर्युक्त के अतिरिक्त रियल स्टेट नियामक प्राधिकार के वेबसाइट का विकास धारा- 34 के अंतर्गत राज्य सरकार के परामर्श से प्राधिकार द्वारा जिला न्यायाधीश स्तर के न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्त अधिनियम के विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत मुआवजा के निर्धारण के लिए धारा-71 के तहत एवं नियामक प्राधिकार की स्थापना के तीन माह के अंदर धारा-85 के तहत उक्त प्राधिकार द्वारा नियमावली अधिसूचित किया जाना है.

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चैतन्य ने बताया कि अधिनियम की धारा- 22 के तहत रियल स्टेट नियामक प्राधिकार के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति तथा धारा-46:3: के तहत रियल स्टेट अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की अनुशंसा के आलोक में की जायेगी। उक्त चयन समिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनके प्रतिनिध, नगर विकास एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव एवं विधि सचिव शामिल होंगे.

उन्होंने बताया कि इस नियमावली के प्रभावी होने से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा होगी, रियल स्टेट लेन-देन में निष्पक्षता सुनिश्चित होगी एवं रियल स्टेट के क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी.

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