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भोपाल गैस कांड के 32 साल, अब भी न्याय एवं मुआवजे के लिए जूझ रहे हैं पीड़ित

भोपाल : विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदियों में शामिल ‘भोपाल गैस कांड’ के 32 साल गुजर जाने के बाद भी इससे प्रभावित लोग एवं उनकी आगे की पीढियां स्वास्थ्य सुविधाओं, मुआवजा, राहत और पुनर्वास के लिये जूझ रही हैं. इसके साथ ही पीडितों को इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों एवं तत्कालीन यूनियन कार्बाइड के प्रमुख […]

भोपाल : विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदियों में शामिल ‘भोपाल गैस कांड’ के 32 साल गुजर जाने के बाद भी इससे प्रभावित लोग एवं उनकी आगे की पीढियां स्वास्थ्य सुविधाओं, मुआवजा, राहत और पुनर्वास के लिये जूझ रही हैं. इसके साथ ही पीडितों को इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों एवं तत्कालीन यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन (अब दिवंगत) को कथित रुप से भगाने वाले लोगों को सजा दिलाने के लिए लडना पड रहा है.

भोपाल गैस पीडित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने आज कहा, ‘‘हादसे के तीन दशक बाद भी न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार ने इसके नतीजों और प्रभावों का कोई समग्र आकलन करने की कोशिश की है. इसके लिए कोई उपचारात्मक कदम भी नहीं उठाया गया है.” उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘14-15 फरवरी 1989 को केंद्र सरकार और कम्पनी के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम के पांचवें हिस्से से भी प्रभावितों को मिला है. नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवजा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय सभी के लिए लडना पड रहा है.”
भोपाल गैस पीडितों के लिए काम कर रहे जब्बार के अनुसार 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि में शहर स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कारखाने से निकली घातक जहरीली मिथाइल आयसोसायनेट :मिक: गैस से हुई इस त्रासदी के असर से अब तक 20,000 से ज्यादा लोग मारे गए और लगभग साढे पांच लाख लोगों पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पडा. जब्बार ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास के इलाके में पेड-पौधों और पशु-पक्षियों पर हुआ असर भी उतना ही गम्भीर था. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के नियंत्रण में था, जो अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, और अब डाओ केमिकल कम्पनी, (यू.एस.ए.) के अधीन है.
उन्होंने आरोप लगाया कि लंबे अरसे से बीमार लोगों, बुजुगोंर्, निशक्त लोगों, विधवाओं और समाज के अन्य अतिसंवेदनशील तबकों द्वारा झेली जा रही तमाम सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समुचित निदान करने में राज्य सरकार नाकाम रही है.अब्दुल जब्बार ने कहा कि मुआवजा के नाम पर पीडितों को जो थोडा पैसा मिला था, वो इनकी रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए भी काफी नहीं है. काम करने की क्षमता में आई कमी के साथ इनके लिए उपयोगी काम मिलना और सम्मानजनक जीवन-यापन करना भी एक चुनौती बन गई है.
जब्बार ने कहा, राज्य सरकार को इन अतिसंवेदनशील गैस प्रभावितों की ओर पहले की तुलना में और अधिक ध्यान और सहायता मुहैया कराने की सख्त जरुरत है. उन्होंने कहा कि 1969 से 1984 तक चले यूनियन कार्बाइड के कामों के कारण कारखाने के अहाते में और आसपास जहरीला कचरा जमा होता रहा था जिससे यहां की जमीन और भूजल बहुत दूषित हो गया है. उन्होंने कहा, ‘‘इसके उलट इस समस्या को कम आंकते हुए यह दिखाया जा रहा है कि मामला केवल कारखाने में जमा 345 टन ठोस जहरीले कचरे के निपटारे का ही है.”
जब्बार ने बताया कि ठीक इसी तरह से मेरे (अब्दुल जब्बार खान) और शहनवाज खान द्वारा 15 जून 2010 में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) भोपाल ने 19 नवंबर 2016 को सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी मोती सिंह और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी स्वराज पुरी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 212, 217 और 221 के तहत केस दर्ज करने का आदेश दिया. इन दोनों पर सात दिसंबर 1984 को वॉरेन एंडरसन को आश्रय देने और उसे भोपाल से भागने में मदद करने का आरोप है. उन्होंने कहा कि सिंह एवं पुरी दोनों को आठ दिसंबर 2016 को कोर्ट में उपस्थित होने के समन जारी किये गए हैं.
इसी बीच, भोपाल गैस पीडितों के लिये काम करने वाले पांच गैर सरकारी संगठनों ने भोपाल गैस कांड की 32 वीं बरसी के मौके पर तीन दिसंबर को भोपाल में अमेरिका झंडा और दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों का लोगो :चिन्ह: जलाने की घोषणा की है. भोपाल गैस पीडित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने बताया, ‘‘हम तीन दिसंबर को भोपाल गैस कांड की बरसी के मौके पर अमेरिका के झंडे और दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों डॉव केमीकल और ड्यूपांट के लोगो (चिन्ह) जलायेंगे.”

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