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6 जून तक सैकड़ों ट्रेनें रद्द होने से यात्रियों में भारी आक्रोश, क्या यही हैं रेलवे के अच्छे दिन !

– मुकुंद हरि – देश में भीषण गर्मी पड़ रही है और इसके साथ ही स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां भी चल रही हैं. नौकरीपेशा लोग भी अपने बच्चों की छुट्टियों के मुताबिक परिवार के साथ घूमने या अपने घर और रिश्तेदारों के यहां जाने के लिए इस वक्त रेलवे का उपयोग करते हैं. ट्रेन […]

– मुकुंद हरि –

देश में भीषण गर्मी पड़ रही है और इसके साथ ही स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां भी चल रही हैं. नौकरीपेशा लोग भी अपने बच्चों की छुट्टियों के मुताबिक परिवार के साथ घूमने या अपने घर और रिश्तेदारों के यहां जाने के लिए इस वक्त रेलवे का उपयोग करते हैं. ट्रेन में टिकट मिलना ऐसे ही इतना मुश्किल है, ऊपर से रेलवे के नये नियम के मुताबिक, रिजर्वेशन टिकट के लिए चार महीने पहले टिकट बुक कराना पड़ता है. इसके अलावा आकस्मिक कारणों और गंभीर बीमारियों और अन्य चिकित्सकीय सेवाओं के लिए भी छोटे शहरों से लोग बड़े शहरों में डॉक्टरों और अस्पतालों में जाते हैं, जिसके लिए उन्हें काफी पहले से नंबर लगाना पड़ता है.
लेकिन पिछले चार दिनों में भारतीय रेल ने देश के विभिन्न हिस्सों में करीब 314 जोड़ी ट्रेनों को रद्द कर दिया है. 314 जोड़ी ट्रेनों का मतलब कुल मिलकर 627 ट्रेनें है. इसके अलावा आंशिक रूप से रद्द की गयी ट्रेनों का आंकड़ा भी 312 है.
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6 जून तक सैकड़ों ट्रेनें रद्द होने से यात्रियों में भारी आक्रोश, क्या यही हैं रेलवे के अच्छे दिन! 3
अभी तक रेलवे की अधिकारिक जानकारी के मुताबिक 27 मई से 6 जून तक कुल 374 जोड़ी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है, जिनकी कुल संख्या करीब 748 है. ऐसे में आम जनता को कितनी परेशानी उठानी पड़ रही है, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. रेलवे का कहना है कि गुर्जर आन्दोलन से रेलवे को हर दिन करीब 15 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा लेकिन देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक यातायात का माध्यम रहने वाली भारतीय रेल ने एक बार भी अपने ट्रेनों के रद्द होने को लेकर लाखों यात्रियों को होने वाली परेशानी का जिक्र नहीं किया. इसके अलावा रेलवे की तरफ से यात्रियों को वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं दी और न ही रद्द हुए टिकटों पर यात्रा करने वाले यात्रियों को अगले दिन या और किसी ट्रेन से यात्रा पूरी करने का कोई अवसर दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार के लिए रेलवे सिर्फ पैसे कमाने का माध्यम है और यात्रियों की परेशानी से इसका कोई लेना-देना नहीं है.
आइये, आपको रद्द हुई ट्रेनों से परेशान हुए कुछ यात्रियों की आपबीती बताते हैं ताकि आप समझ सकें कि ट्रेनों को इतनी भारी संख्या में कैंसिल करने से लोग किस तरह से प्रभावित हुए हैं. यहां भुक्तभोगी यात्रियों के अनुरोध पर हमने उनके वास्तविक नाम की जगह बदले हुए नामों का उपयोग किया है लेकिन जो घटनाएं हैं वो वास्तविक हैं.
अपनी कैंसरग्रस्त मां का इलाज करने पटना से मुंबई नहीं जा सके कबीर
पटना के रहने वाले कबीर कुमार को अपनी मां के कैंसर के इलाज के लिए पटना से मुंबई जाना था. कबीर ने 27 मई का पटना से नयी दिल्ली तक का राजधानी एक्सप्रेस का टिकट लिया था. 28 मई को दिल्ली पहुंचकर कबीर वहां से शाम 4:30 बजे नयी दिल्ली-मुंबई राजधानी पकड़कर 29 मई की सुबह 8:30 बजे मुंबई पहुंचकर अपने कुछ महीनों पूर्व लिए गए अप्वाइंटमेंट के आधार पर सुबह 10 बजे टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में डॉक्टर को दिखाने वाले थे. लेकिन 27 मई को कबीर को पता चला कि नयी दिल्ली-मुंबई राजधानी अपने निर्धारित समय से करीब 12-13 घंटे की देरी से चल रही है, जिसकी वजह से कबीर अगर उस ट्रेन से मुंबई जाने की कोशिश करते तो भी वो अपने सही समय सुबह 8:30 की जगह रात 9:00 -10:00 बजे तक मुंबई पहुंच पाते. ऐसे में हॉस्पिटल की तरफ से उनको दिया गया पूर्व निर्धारित समय रद्द हो जाता और वे चाहकर भी डॉक्टर को नहीं दिखा पाते. इसके अलावा कबीर को पटना से मुंबई के लिए किसी अन्य ट्रेन में भी इस अकस्मात यात्रा के लिए टिकट नहीं मिल पाया. ऐसे में कबीर को अपनी मां के इलाज के लिए दिखाने जाने का टिकट रद्द करना पड़ा और मुंबई के अस्पताल में अपनी मां को दिखाने के लिए अगला नंबर मिलने के लिए उन्हें कई महीनों का इंतजार करना पड़ेगा. आप समझ सकते हैं कि रेलवे की तरफ से राजधानी जैसी ट्रेन को भी सही समय से नहीं चला पाने की अक्षमता से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को इतनी परेशानी उठानी पड़ रही है तो आम लोगों की स्थिति क्या होगी.
पटना से रद्द होने वाली ट्रेनों में कोटा-पटना एक्सप्रेस, अहमदाबाद-पटना सुपर फास्ट एक्सप्रेस, पटना-अहमदाबाद अजीमाबाद एक्सप्रेस, कोटा-पटना एक्सप्रेस, पटना-अहमदाबाद प्रीमियम स्पेशल सुपर फास्ट एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें शामिल हैं.
बच्चे की गर्मी की छुट्टियों में इलाहाबाद नहीं जा सकीं रांची की काम-काजी महिला अनु
रांची में रहने वाली अनु रंजन अपने बच्चे के स्कूल में चल रही गर्मी की छुट्टियों में रांची से इलाहाबाद जाने वाली थीं. इसके लिए उन्होंने 28 मई को रांची से नयी दिल्ली जाने वाली झारखंड स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस में बड़ी मुश्किल से टिकट आरक्षित करवाया था. यात्रा के दिन ऐन वक्त पर अनु जब अपने बच्चों और परिवार के साथ स्टेशन पहुंचीं तो उन्हें बताया गया कि उनकी ट्रेन कैंसिल हो गयी है. इसके अलावा जब उन्होंने कैंसिल ट्रेन की जगह रेलवे की तरफ से वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में पूछा तो उन्हें कहा गया कि उनकी ट्रेन रैक के अभाव में रद्द हुई है और इसके लिए रेलवे की तरफ से कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है.
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6 जून तक सैकड़ों ट्रेनें रद्द होने से यात्रियों में भारी आक्रोश, क्या यही हैं रेलवे के अच्छे दिन! 4
रांची से झारखंड स्वर्ण जयंती के अलावा रांची-अजमेर एक्सप्रेस, रांची-नयी दिल्ली गरीब रथ सुपर फास्ट एक्सप्रेस, वाराणसी-रांची एक्सप्रेस जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनें भी कैंसिल हुई हैं. रांची जैसी जगहों से यात्रा करने वाले मुसाफिरों के लिए परेशानी और ज्यादा इसलिए भी बढ़ गयी है क्योंकि रेल के मामले में आज भी ये इलाका बहुत पिछड़ा हुआ है. देश की राजधानी दिल्ली के लिए भी यहां से बहुत सीमित संख्या में ट्रेनें चलती हैं, उस पर भी सप्ताह के सातों दिन रांची से दिल्ली के लिए महज एक ट्रेन राउरकिला-जम्मूतवी ही उपलब्ध हो पाती है. ऐसे में रांची जैसे शहरों से जाने या यहां आने वाले यात्रियों के लिए इस रूट की एक भी ट्रेन का कैंसिल होने बहुत ज्यादा परेशानी की बात है क्योंकि ट्रेन कैंसिल होने के बाद दूसरी ट्रेन का विकल्प उन्हें मिलना लगभग नामुमकिन हो जाता है.
कोलकाता में इलाज करने गए प्रो. कौशल किशोर घर वापस न जा सके
ट्रेन रद्द होने के चक्कर में एक अन्य व्यक्ति भी नियत दिन पर अपने घर न जा सके. बिहार के सीवान जिले के रहने वाले एक प्राध्यापक श्री कौशल किशोर श्रीवास्तव अपना इलाज करवाने परिवार के साथ कोलकाता गए हुए थे. कोलकाता में लगभग एक महीने तक अपना इलाज करवाने के बाद प्रो. श्रीवास्तव को वापस अपने घर जाना था. इसके लिए उन्होंने हावड़ा से पटना का टिकट बड़ी मेहनत के बाद तत्काल कोटे से बुक करावाया था लेकिन यात्रा के पहले इन्हें भी यही जानकारी मिली कि इनकी ट्रेन रद्द हो गयी है. रद्द टिकट के बदले में अगले दिन के लिए भी किसी टिकट की वैकल्पिक व्यवस्था रेलवे की तरफ से नहीं की गयी. ऐसे में बीमार मरीज के साथ इनके परिजनों को वापस घर आने के लिए हावड़ा में ही रुककर और इन्तजार करना पड़ा.
हावड़ा से रद्द हुई प्रमुख ट्रेनों में हावड़ा-नयी दिल्ली युवा एक्सप्रेस, हावड़ा-जोधपुर एक्सप्रेस, उद्यान आभा तूफान एक्सप्रेस, कटवा-हावड़ा लोकल, पूर्वा एक्सप्रेस, जोधपुर-हावड़ा सुपर फास्ट एक्सप्रेस, हावड़ा-दिल्ली-कालका सुपर फास्ट एक्सप्रेस, हावड़ा-बीकानेर सुपर फास्ट एक्सप्रेस, बीकानेर-हावड़ा एक्सप्रेस और हावड़ा-नयी दिल्ली सुपर फास्ट एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें शामिल हैं.
रेलवे की क्षमता और कार्य-कुशलता पर उठते हैं सवाल
नयी सरकार के आने के बाद से देश भर में ट्रेनों के देरी से चलने का चलन सा बन चुका है. इस साल मार्च महीने के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल कांग्रेस के शासन काल में मार्च 2014 में जहां देश भर में करीब 84 फीसदी ट्रेनें सही समय पर चलती थीं, वहीं इस साल यानी मार्च 2015 के आंकड़ों के मुताबिक नयी सरकार के कार्यकाल में अब महज 79 फीसदी रेलगाडियां ही सही समय पर चल पा रही हैं. जबकि, नॉर्दर्न रेलवे के आंकड़े को देखें तो इसमें सबसे ज्यादा गिरावट आई है. सही समय पर चलने को लेकर पिछले साल मार्च 2014 में जहां करीब 82 फीसदी ट्रेनें राइट टाइम पर चलती थीं, वहीँ इस साल मार्च 2015 में ये आंकड़ा नीचे गिरकर 60 प्रतिशत पर आ गया है. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को भी इतनी शिकायतें मिलीं थी कि उन्हें रेल मंत्रालय से इस सम्बन्ध में पूछताछ करनी पद गयी थी.
लेकिन इसके बाद भी ट्रेनों के सही समय पर चलने को लेकर रेलवे की कार्यशैली नहीं सुधरती दिखाई दे रही. रेलवे का कहना है कि आरक्षण को लेकर गुर्जर आन्दोलन की वजह से ट्रेनें कैंसिल करनी पड़ी. अब सवाल ये उठता है कि जब सरकार और रेलवे को ये पता है कि भारतीय रेल देश के नागरिकों को यात्रा सुविधा मुहैया करने वाली सबसे बड़ा सार्वजनिक माध्यम है तो फिर रोज करोड़ों लोगों को ढोने वाली रेलवे की चाल सुचारू बनाये रखने के लिए सरकार और रेलवे ने कोशिश क्यों नहीं की! रेलवे को अकारण रोकना और इसकी सेवा को बाधित करना दंडनीय अपराध है तो फिर एक आन्दोलन की वजह से सैकड़ों-हजारों बीमार लोगों को अपना इलाज करने के लिए यात्रा से वंचित होना पड़ा, उसके लिए रेलवे ने कोई विकल्प क्यों नहीं उपलब्ध कराया! जिन लोगों ने चार महीने पहले से अपनी छुट्टियों की प्लानिंग करते हुए परिवार के साथ यात्रा करने के लिए टिकट बुक कराया था, उनकी हानि का क्या होगा! क्या इससे रेलवे की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठेगा !
रेलवे को अपने शुल्क नियमों और सेवा में करना होगा सुधार
एक तरफ रेलवे ने नियम बनाया है कि अगर आपको ट्रेन में आरक्षण चाहिए तो 120 दिन यानी चार महीने पहले ही टिकटों की बुकिंग करवानी होगी लेकिन इसके एवज में न तो टिकट बुक कराने वाले यात्रियों को कोई ब्याज मिलता है और न ही टिकट कैंसिल करवाने पर कैंसिलेशन चार्ज में ही कोई रियायत मिलती है. फिर रेलवे के नियमों पर सवाल उठने लाजिमी हैं. जब एक साथ सैकड़ों ट्रेनें यूं रद्द की जा रही हैं तो इसका सीधा मतलब निकलता है कि रेलवे अपनी सेवा को सही तरीके से चलाने में सक्षम नहीं है. इसके लिए रेल मंत्रालय को गहराई से विचार करने की जरुरत है कि भविष्य में अगर ऐसी स्थिति आती है तो कम से कम जिन यात्रियों के टिकट उनकी ट्रेनें रद्द होने से कैंसिल हों, उन्हें इसके एवज में दूसरी ट्रेन में टिकट मुहैया कराने का विकल्प दिया जाए. इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर लोगों की ये मांग है कि चार महीने पहले से टिकटों के आरक्षण से रेलवे को जो सैकड़ों करोड़ रुपये मिलते हैं, उसके एवज में या तो यात्रियों को निश्चित ब्याज मिलना चाहिए या फिर टिकट कैंसिल करवाने पर लगने वाले कैंसिलेशन शुल्क पर छूट मिलनी चाहिए और जिन शहरों में ट्रेनों का अभाव है, वहां और ज्यादा ट्रेनें चलायी जायें ताकि यात्रियों को अपने गंतव्य तक जाने की सुविधा मिल सके.

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