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Thursday, March 28, 2024

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क्या अमेरिका से भरी झोली लेकर लौटेंगे पीएम मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों के दौरान एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि अब देशों के कूटनीतिक रिश्ते वाणिज्य-व्यापार से संचालित होंगे. मोदी यह भी कह चुके हैं कि वे गुजराती हैं और बिजनेस को अच्छी तरह समझते हैं. मोदी की कूटनीति का बेहद अहम तत्व भारत में वाणिज्य-व्यापार का विस्तार, निवेश बढ़ाना, […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों के दौरान एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि अब देशों के कूटनीतिक रिश्ते वाणिज्य-व्यापार से संचालित होंगे. मोदी यह भी कह चुके हैं कि वे गुजराती हैं और बिजनेस को अच्छी तरह समझते हैं. मोदी की कूटनीति का बेहद अहम तत्व भारत में वाणिज्य-व्यापार का विस्तार, निवेश बढ़ाना, भारतीय कामगारों को विश्व स्तर पर रोजगार सुनिश्चित कराना जैसे तत्व हैं. ऐसे में अब जब पीएम मोदी का बहुचर्चित पांच दिवसीय अमेरिका दौरा अंतिम दौर में पहुंच चुका है और उनके व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच द्विपक्षीय संबंधों को लेकर औपचारिक बातचीत होने वाली है, तो ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि क्या अमेरिका से पीएम मोदी अपनी झोली भर कर लौंटेंगे. जिसमें आतंकवाद से लड़ाई के लिए दोनों देशों की साझा रणनीति के साथ निवेश, रक्षा सौदे, वीजा नियमों में ढील, भारतीय आइटी उद्योग के लिए संभावनाएं आदि शामिल होंगी.
सोमवार के रात्रि भोज में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजराती में केम छो यानी कैसे हैं मिस्टर प्राइम मिनिस्टर संबोधन से स्वागत कर दोनों देशों के रिश्ते पर जमी बर्फ को पिघलाने के संकेत दिया. दरअसल, ओबामा ने मोदी की उस स्टाइल को ही अपनाया, जिसमें वे जिस देश में जाते हैं, वहां की भाषा अवश्य बोलते हैं. मोदी की मातृभाषा गुजराती में ओबामा ने उनका स्वागत कर दोनों देशों के रिश्तों के प्रति गर्मजोशी दिखायी. हालांकि नवरात्र की वजह से मोदी ने रात्रिभोज में सिर्फ गर्म पानी पिया. पर, जिस उत्साह से दोनों नेताओं ने भेंट की उससे भारत-अमेरिका के रिश्तों के नये युग की शुरुआत का भी संकेत मिल रहा है. प्रधानमंत्री ने खुद ट्विट कर कहा, ‘ओबामा और मैंने साङोदारी के लिए वह दृष्टिकोण साझा किया, जिसमें हमारे देश समूची मानवता के लाभ के लिए काम करते हैं.’ दोनों नेताओं के बीच यह बैठक 90 मिनट चली.
विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता शैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत मुख्यत: एक-दूसरे को जानने और कार्यभार संभालने के उनके शुरुआती अनुभवों पर केंद्रित रही. प्रवक्ता का यह बयान इस बात का संकेत है कि दोनों नेता भारत-अमेरिकी साङोदारी व कूटनीति के एक नये युग की शुरुआत के लिए एक-दूसरे को जान व समझ रहे हैं. अकबरुद्दीन के अनुसार, रात्रिभोज बैठक अत्यंत सफल वार्ता रही और उन्होंने एक-दूसरे से जुड़ने के लिए विचार साझा किये. मंगलवार को जब दोनों नेता औपचारिक रूप से मिलेंगे तब मूलभूत मुद्दों पर बात करेंगे.
भारत-अमेरिका : चलें साथ-साथ
बाद में दोनों देशों ने फॉरवर्ड टुगेदर वी गो यानी चलें साथ-साथ नाम से एक विजन स्टेटमेंट जारी दिया, जिसमें रणनीतिक साङोदारी के साथ आतंकी खतरों से निबटने और जन संहारक हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए काम करने की बात कही गयी है. इस विजन स्टेटमेंट में कहा गया है कि भारत-अमेरिका साङोदारी बाकी विश्व के लिए एक आदर्श होगी. यह साझा बयान इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अभी दो दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में आतंकवाद के खतरों के प्रति विश्व समुदाय को चेताते हुए इसके लिए साझा प्रयास के महत्व का उल्लेख किया था. उन्होंने कहा था कि यह दुखद है कि कई देश आतंकवाद का घिनौना रूप नहीं समझ पाये. उन्होंने कहा था कि इसे राजनीतिक लाभ-हानि से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता और दुनिया के सभी देशों को एक साथ मिल कर कदम उठाना होगा. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव ने कहा कि सुरक्षा सहयोग, आर्थिक सहयोग व जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों के हल से जुड़े समझौतों में भी हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि अपने भारतीय समकक्षों के साथ मिलजुल कर काम करते हुए हम आगे बढ़ सकते हैं. अमेरिकी प्रशासन की ओर से यह बयान भी आया है कि सुरक्षा परिषद में भारत की भूमिका अहम है.
निजी रिश्तों की पुट और आतंकवाद से लड़ाई की प्रतिबद्धता
कूटनीतिक संबंधों को निजी जुड़ाव की पुट देने की अपनी कला के तहत मोदी ने ओबामा को महात्मा गांधी की गीता दी. उन्हें महान अमेरिकी नेता मार्टिन लूथर किंग की भारत यात्र के दौरान का वीडियो भी दिया. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मार्टिन लूथर के बहाने पीएम मोदी ने वैश्विक शांति के लिए दोनों देशों की साङोदारी के महत्व को रेखांकित किया. अमेरिकी प्रशासन के बयानों व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र संघ में दिये गये बयान से स्पष्ट है कि दोनों देशों की रिश्तेदारी का सबसे अहम आधार आतंकवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता ही है. भारत की भौगोलिक स्थिति में अमेरिका को इस मुद्दे पर अपना सबसे अहम साङोदार बनाने का कारक है. हाल में जब अलकायदा के प्रमुख ने दक्षिण एशिया खासकर भारत में अपना केंद्र बनाने का बयान दिया, ऐसे में उसके खिलाफ दोनों देशों की रणनीतिक साङोदारी और भी अहम हो जाती है.
औपचारिक वार्ता में कौने से अहम मुद्दे होंगे
जब भारत व अमेरिका के शीर्ष नेताओं व प्रतिनिधिमंडल की मंगलवार को बैठक होगी, तब आतंकवाद व वैश्विक शांति के अतिरिक्त उसमें निवेश, वीजा नियम, सूचना प्रौद्योगिकी, फर्मा सेक्टर जैसे अहम क्षेत्र बातचीत के केंद्र में होंगे. आइएसआइएस के खतरों को लेकर भी दोनों नेता अहम बातचीत करेंगे. भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी है. भारत के 70 प्रतिशत रक्षा अमेरिका से होते हैं. जानकारों के अनुसार, दोनों देशों के बीच रक्षा सौदे 42 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है.
बिजनेस लीडरों से बातचीत के अच्छे संकेत
सोमवार को अमेरिका के शीर्ष बिजनेस लीडरों से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात के अच्छे संकेत दिख रहे हैं. वैश्विक इन्वेस्टमेंट कंपनी ब्लैक रॉक 2015 की शुरुआत में भारत में ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट करने को राजी हो गयी है. बोइंग के प्रमुख जेम्स मैंकलर्नी ने भी पीएम मोदी से मुलाकात को अच्छा व संतुष्टिजनक बताया व उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने की बात कही. पेप्सिको की प्रमुख इंदिरा नूई ने पीएम मोदी के नजरिये की तारीफ की. मोदी ने अमेरिकी बिजनेस लीडरों को भरोसा दिलाया कि वे स्थिरता वाले कानून लायेंगे, टैक्स नीति में अचानक बदलाव नहीं होगा, सरकार कोई ऐसी नीति नहीं बनायेगी जिससे उन्हें अचानक झटका लगे. उन्होंने स्पष्ट किया है कि मुङो कानून के क्षेत्र में काम करना है. सरकार ने संकेत दिया है कि वह बिजनेस में बाधा बनने वाले कई कानूनों को संसद के शीतकालीन सत्र में बदलने के अभियान की शुरुआत करेगी. कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उन्होंने एक अवसर के रूप में लेने की बात कहते हुए कहा है कि इससे हम सीख लेकर कदम आगे बढ़ायेंगे. यानी मोदी व्यापारिक समूहों को यह आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनके लिए पारदर्शी नियम कानून होंगे, जिससे सरकार से सुविधाएं हासिल करने में आसानी होगी और कॉरपोरेट करप्शन यानी कारोबारी भ्रष्टाचार की ऐसी स्थिति नहीं बनने देंगे, जिससे बिजनेस समूहों को भविष्य में भारत में कोई दिक्कतें हो, जैसा कि पिछली सरकार के समय देखा गया.
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