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भूमि अधिग्रहण बिल : खोया जनाधार वापस लाने के लिए सोनिया का बडा हथियार

नयी दिल्ली : देश में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और रोज़गार के नए अवसर पैदा करने के लिए मोदी सरकार के मन में उपजा भूमि अधिग्रहण बिल अब सरकार के लिए जंजाल बन गया है. जहां राज्य सभा में इस बिल को पास कराना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है वहीं देश में […]

नयी दिल्ली : देश में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और रोज़गार के नए अवसर पैदा करने के लिए मोदी सरकार के मन में उपजा भूमि अधिग्रहण बिल अब सरकार के लिए जंजाल बन गया है. जहां राज्य सभा में इस बिल को पास कराना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है वहीं देश में जन विरोध बढता जा रहा है. इन सब के बीच कांग्रेस को अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल के रुप में एक बडा हथियार मिल गया है. इसलिए कांग्रेस किसी भी सूरत में इस मौके को गंवाना नहीं चाह रही है.

भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर ज्यों-ज्यों मोदी सरकार नरम पड रही है कांग्रेस अपना दबाव बढाती जा रही है. आज ही सोनिया गांधी ने इस बाबत केंद्रीय परिवहन मंत्री नीतीन गडकरी को एक पत्र लिखा है कि वह नए विधेयक में किये गए किसी बदलाव का समर्थन नहीं करती है.

सोनिया गांधी ने अपने पत्र में सरकार से क्षुद्र राजनीतिक मानसिकता से ऊपर उठने और संप्रग के भूमि विधेयक को सम्पूर्ण रूप से वापस लाने को कहा. मोदी सरकार के विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बातचीत की पेशकश को ठुकराते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज कहा कि किसान विरोधी कानून थोप देने के बाद बहस की बातंे करना सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वानुमति बनाने की परंपरा का उपहास करने जैसा है. उन्होंने इस विधेयक को देश की रीढ तोडने वाला बताते हुए कहा कि वह कभी इसका समर्थन नहीं कर सकतीं.

सोनिया ने आरोप लगाया कि ‘‘ अदूरदर्शी ’’ मोदी सरकार उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए झुकी पडी है. उन्होंने मांग की कि संकीर्ण राजनीति से उपर उठकर 2013 में संप्रग द्वारा लाये गये भूमि अधिग्रहण कानून को समग्रता में वापस लाया जाये. सोनिया गांधी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के पत्र का कडे शब्दों में जवाब देते हुए कहा, ‘‘संशोधन आप बिना किसी भी बहस और चर्चा से गुजरे ले आये हैं. सरकार द्वारा मनमाने ढंग से किसान विरोधी कानून थोप देने के बाद बहस की बातें करना राष्ट्रीय महत्व की नीतियां लागू करने के पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वानुमति बनाने की परंपरा का उपहास करने के बराबर है.’’

भूमि विधेयक का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी के रुप में पेश करने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए सोनिया ने अपने जवाब में कहा, ‘‘किसान हमारे देश की रीढ हैं और हर हाल में उनके हितों की रक्षा होनी ही चाहिए और इस पर कांग्रेस कोई समझौता नहीं कर सकती. हम इस देश की रीढ तोडने वाले किसी कानून का कभी समर्थन नहीं कर सकते. इसलिए मैं आपसे आग्रह करती हूं कि संकीर्ण पक्षपातपूर्ण राजनीति से उपर उठें और 2013 के उस कानून को समग्रता में वापस लायें जो कि हमारे किसान भाइयों एवं बहनों की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल था.’’

किसानों की हमदर्द बन मोदी सरकार पर हमला

कांग्रेस अध्‍यक्ष ने कहा कि भाजपा नेता का एक विवादस्‍पद कानून को लेकर बहस के लिए आमंत्रित करना सहमति बनाने की परंपरा का मजाक बनाने जैसा है. सोनिया एनडीए सरकार पर आरोप लगा रही है कि यह किसान विरोधी सरकार है. गौरतलब है कि गडकरी ने भी पत्र लिखकर सोनिया को बहस के लिए चुनौती दी थी.

सोनिया ने पत्र में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार गरीब विरोधी है. कुछ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सरकार समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों के साथ समझौता कर रही है.

इधर अन्ना ने भी दी मोदी को बहस की चुनौती

भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर विरोध जता रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने विधेयक के विवादास्पद प्रावधानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहस करने की चुनौती दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मसले पर खुली बहस करने की चुनौती देते हुए समाजसेवी अन्ना हजारे ने कहा कि केंद्र सरकार और उसके मंत्री नीतीन गडकरी की तैयारी कमजोर है. इस मसले पर कैमरे के सामने प्रधानमंत्री के साथ व्यापक बहस की जा सकती है.

पहले गडकरी ने बिल पर सोनिया और अन्ना को बहस के लिए चुनौती दी थी

गौरतलब है कि इसी माह केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गड़करी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे समेत कई राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को खुली बहस के लिए पत्र लिखा था. इसमें गडकरी ने कहा था कि अगर कांग्रेस को इस बिल पर आपत्ति है तो इसके लिए वह खुली बहस के लिए तैयार है.

इधर कांग्रेस का संगठनात्मक चुनाव भी होने वाला है और इसके कार्यक्रम की घोषणा भी कर दी गयी है. ऐसा माना जा रहा है कि इस चुनाव में राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. ऐसे में सोनिया गांधी चाह रही है कि भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर वह अपना जनाधार मजबूत कर ले ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में राहुल के नेतृत्व में पार्टी को इसका लाभ मिले.

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